Supreme Court SIR Aadhar Order: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 8 सितंबर को कहा कि चुनाव आयोग को आधार को 12वें प्रमाण के रूप में स्वीकार करना होगा। लेकिन यह भी साफ किया कि यह नागरिकता का सबूत नहीं होगा। चुनाव आयोग ने कोर्ट के आदेश से सहमति जताई है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) को सोमवार को आदेश दिया कि बिहार में आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए। अदालत ने यह आदेश उन शिकायतों के बाद दिया जिनमें कहा गया था कि चुनाव अधिकारी पूर्व निर्देशों के बावजूद इसे मान्यता देने से इनकार कर रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आधार को नागरिकता का सबूत नहीं माना जाएगा। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहमति जताई है।
लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने आधार को औपचारिक रूप से अपनी स्वीकृत पहचान प्रमाणों की सूची में जोड़ने के खिलाफ भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की आपत्तियों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि यह दस्तावेज नागरिकता स्थापित नहीं कर सकता है, लेकिन यह पहचान और निवास का एक वैध प्रमाण बना हुआ है।
अदालत ने आदेश दिया कि "आधार कार्ड को चुनाव आयोग द्वारा 12वें दस्तावेज़ के रूप में माना जाएगा। हालाँकि, अधिकारियों के लिए आधार कार्ड की वैधता और वास्तविकता की जाँच करना स्वतंत्र है। यह स्पष्ट किया जाता है कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं माना जाएगा।" अदालत ने निर्देश दिया और कहा कि चुनाव आयोग अपने क्षेत्रीय अधिकारियों को निर्देश जारी करे।
यह निर्देश महत्वपूर्ण है क्योंकि चुनाव आयोग को आधार को 11 अन्य दस्तावेजों के समान मानना होगा। साथ ही मतदाता की पहचान और उसका पता साबित करने के लिए चुनाव आयोग को इसकी प्रामाणिकता को सत्यापित करना होगा।
आधार पर आदेश से पहले तीखी बहस
लाइव लॉ के मुताबिक आदेश पारित होने से पहले याचिकाकर्ता के वकीलों और चुनाव आयोग के वकीलों के बीच तीखी बहस हुई। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग पर जानबूझकर आधार को सूची से बाहर रखने का आरोप लगाया। कपिल सिब्बल ने कोर्ट रूम में कहा- "वे जो कर रहे हैं वह चौंकाने वाला है... बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) को आधार स्वीकार करने के लिए फटकार लगाई जा रही है। हम मतदाता पंजीकरण अधिकारियों द्वारा जारी किए जा रहे नोटिस दिखा सकते हैं जिनमें कहा गया है कि 11 अधिसूचित दस्तावेज़ों के अलावा कोई अन्य दस्तावेज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा। अगर आधार जैसे सर्वमान्य दस्तावेज़ को अस्वीकार किया जा रहा है, तो यह सभी को साथ लेकर चलने वाली पहल कहाँ है?"जब कोर्ट ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता चाहते हैं कि मतदाता की स्थिति केवल आधार के आधार पर तय की जाए, तो सिब्बल ने जवाब दिया: "मैं पहले से ही 2025 की मतदाता सूची में हूँ। कुछ साबित करने का सवाल ही कहाँ है? बीएलओ मेरी नागरिकता तय नहीं कर सकते।"
चुनाव आयोग के वकील की नागरिकता को लेकर दलील
इसके बाद कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की ओर रुख किया, जिन्होंने कहा कि आधार पहले से ही स्वीकार किया जा रहा है। लेकिन यह "नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता।" उन्होंने तर्क दिया कि मतदाता सूची तैयार करते समय नागरिकता के सवालों पर विचार करने का संवैधानिक अधिकार आयोग को है: "संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जहाँ एक सांसद नागरिक नहीं रह जाता और राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सलाह पर कार्य करता है। इसी तरह, मतदाता सूची तैयार करने के लिए, चुनाव आयोग नागरिकता पर विचार कर सकता है।"अदालत ने आधार का जिक्र न करने पर चिंता जताई
लेकिन अदालत ने अदालत में आयोग के रुख और ज़मीनी स्तर पर अधिकारियों को दिए गए निर्देशों के बीच अंतर पर चिंता जताई। अदालत ने पूछा, "हमारे बार-बार के आदेशों के बावजूद, इस प्रति में सिर्फ़ 11 दस्तावेज़ों का ज़िक्र क्यों है, आधार का नहीं? हम चाहते हैं कि आप इसे स्पष्ट करें।" द्विवेदी ने कहा कि वह जाँच करेंगे कि क्या "किसी ने गलती की है", लेकिन उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आयोग ने पिछले अदालती आदेश का "प्रचार" किया था कि आधार स्वीकार किया जाएगा।सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को आधार का महत्व बताया
बेंच ने दोनों पक्षों को यह भी याद दिलाया कि वैधानिक ढाँचा स्पष्ट है: आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं देखा जा सकता, लेकिन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत इसका महत्व है। जस्टिस बागची ने कहा, "कानून कहता है और न्यायिक आदेश भी कहता है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। लेकिन यह वास्तव में पहचान का प्रमाण है और इसका कुछ महत्व है। आपको इसे लेना चाहिए और इसकी जाँच करनी चाहिए।"सुप्रीम कोर्ट को आयोग के वकील से सवाल
जब वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और गोपाल शंकरनारायणन ने सिब्बल की आधार को स्पष्ट रूप से जोड़ने की दलील का समर्थन किया, तो बेंच ने आयोग के वकील द्विवेदी से पूछा: "आप इसे 12वें दस्तावेज़ के रूप में क्यों नहीं स्वीकार कर सकते? लेकिन दो दस्तावेज़ों - जन्म प्रमाण पत्र और पासपोर्ट को छोड़कर 11 में से बाकी सभी दस्तावेज़ भी नागरिकता के प्रमाण नहीं हैं। आप इसे क्यों नहीं स्वीकार करते।"आयोग के वकील की दलील
हालाँकि, द्विवेदी ने कहा, "पूरा विचार यह है कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल करने के लिए दबाव डाला जा रहा है। हम इसका दुरुपयोग नहीं होने दे सकते। 99.6% लोगों ने पहले ही 11 दस्तावेजों में से एक जमा कर दिया है। जिन 65 लाख लोगों को इससे बाहर रखा गया है, उनके लिए आधार की अनुमति दी जा रही है। अब लगभग 200 ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिनकी पहचान की जा रही है। हमें पूरी तस्वीर पर गौर करना होगा।"सिब्बल का पलटवार
सिब्बल ने पलटवार करते हुए कहा कि मुद्दा संख्या का नहीं, बल्कि सिद्धांत का है: "आधार को 12वें दस्तावेज़ के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया जाए, जिसकी जाँच चुनाव आयोग द्वारा की जाए। बीएलओ को नागरिकता का फ़ैसला ख़ुद करने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता।"
यह विवाद बिहार में मतदाता सूचियों के एसआईआर से उत्पन्न हुआ है, जहाँ पिछले महीने प्रकाशित मसौदा सूची से लगभग 65 लाख नाम बाहर कर दिए गए थे। आरजेडी के नेतृत्व में विपक्षी दलों का आरोप है कि तकनीकी बाधाओं और असंगत निर्देशों के कारण वास्तविक मतदाता मताधिकार से वंचित हो रहे हैं, जबकि चुनाव आयोग का कहना है कि लगभग दो दशकों से ऐसी कोई प्रक्रिया न होने के बाद यह संशोधन आवश्यक है।
1 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस आश्वासन पर गौर किया था कि दावे और आपत्तियाँ 1 सितंबर की वैधानिक समय सीमा के बाद भी स्वीकार की जाएँगी। मतदाताओं को ऑनलाइन दावे दर्ज कराने में मदद के लिए वॉलियंटियर्स की तैनाती का निर्देश दिया था। हालाँकि, आधार की स्थिति को लेकर लगातार बनी उलझन के कारण सोमवार को अदालत को आदेश जारी करना पड़ा।
इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से पहले SIR एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। विपक्षी दलों ने संसद में विरोध प्रदर्शन किया है और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को पत्र लिखकर राज्य विधानसभा चुनावों के इतने करीब इस "अभूतपूर्व" संशोधन पर विशेष चर्चा की मांग की है। कांग्रेस, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) सहित आठ दलों ने आशंका जताई कि इस प्रक्रिया को पूरे देश में दोहराया जा सकता है।