पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक सत्तारूढ़ भाजपा को 2022-23 में चुनावी बांड के माध्यम से लगभग ₹1300 करोड़ प्राप्त हुए, जो उसी अवधि में कांग्रेस को उसी मार्ग से प्राप्त राशि से सात गुना अधिक था। चुनाव आयोग को सौंपी गई पार्टी की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में भाजपा का कुल योगदान ₹2120 करोड़ था, जिसमें से 61 प्रतिशत चुनावी बांड से आया था।
वकील प्रशांत भूषण ने कहा था- केंद्रीय चुनाव आयोग ने भी चुनावी बांड पर सवाल उठाए हैं। ईसीआई ने कहा है कि जहां तक पारदर्शिता का सवाल है, "इससे राजनीतिक दलों को चंदा देने के एकमात्र उद्देश्य के लिए फर्जी कंपनियों की स्थापना की संभावना खुल जाती है..." चुनाव आयोग ने इस ओर इशारा किया था! ऐसा लगता है कि इससे राजनीतिक दलों को धन चंदा देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली फर्जी कंपनियों के दरवाजे खुल जाएंगे। भूषण के मुताबिक सरकार ने कहा था कि ईसीआई ने कोई आपत्ति नहीं की? जबकि आयोग आपत्ति कर चुका है। मेरा मतलब है कि वे इसे बहुत लापरवाही से लेते हैं। आप जो चाहें कह सकते हैं और उससे बच सकते हैं।
प्रशांत भूषण ने कहा था- सरकार जो कह रही है यह उसके विपरीत है। वे कह रहे हैं कि उचित प्रतिबंध लगाए गए हैं...। राजनीतिक दलों की फंडिंग को अनुच्छेद 19(1)(2) के तहत किसी भी आधार पर कवर नहीं किया जा सकता है। भूषण ने कहा कि इसे जानने के अधिकार के दायरे में लाना इसलिए जरूरी है। क्योंकि अगर मुझे पता है कि इस पार्टी को उन कंपनियों द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है जिन्हें राजनीतिक दल द्वारा लाभ मिल रहा है - तो मुझे पता है कि यह पार्टी भ्रष्ट है क्योंकि यह अनिवार्य रूप से बदले में लाभ प्राप्त कर रही है। उन्होंने कहा कि ब्राज़ील के सुप्रीम कोर्ट ने एक न्यायिक आदेश द्वारा राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट चंदा देने पर रोक लगा दी है।
2017 में, तत्कालीन भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर उर्जित पटेल ने चुनावी बांड के दुरुपयोग की संभावना के बारे में बात की थी, खासकर शेल कंपनियों के जरिए सारा धन इसमें सफेद कर देने का खतरा उन्होंने बताया था।