अपना घर और देश छोड़कर सुनहरे भविष्य की तलाश में विदेश जाना कभी भी आसान फैसला नहीं होता। लेकिन हाल के आंकड़े एक चौंकाने वाली तस्वीर पेश कर रहे हैं। संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में लगभग 9 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है।
वर्ष 2022 के बाद से एक नया पैटर्न देखने को मिल रहा है, जहाँ हर साल 2 लाख से अधिक लोग अपना भारतीय पासपोर्ट सरेंडर कर रहे हैं।

प्रमुख आंकड़े: एक दशक का विश्लेषण

संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक, 2011 से 2024 के बीच कुल 20.6 लाख (2.06 मिलियन) भारतीयों ने अपनी नागरिकता त्यागी है। हैरान करने वाली बात यह है कि इस कुल संख्या का लगभग आधा हिस्सा पिछले पांच वर्षों में (कोविड-19 महामारी के दौरान और बाद में) दर्ज किया गया है।

क्यों हो रहा है यह बड़ा पलायन?

विदेश मंत्रालय ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा कि नागरिकता छोड़ने के कारण "व्यक्तिगत" होते हैं और कई लोगों ने "व्यक्तिगत सुविधा" के लिए विदेशी नागरिकता चुनी है। हालांकि, विशेषज्ञों और सोशल मीडिया चर्चाओं से कुछ ठोस कारण उभर कर सामने आए हैं:

1. दोहरी नागरिकता का अभाव (No Dual Citizenship)

भारतीय कानून (नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 9) के तहत, यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी दूसरे देश की नागरिकता लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता अपने आप खत्म हो जाती है। अमेरिका, यूके या कनाडा जैसे देशों में वोटिंग, सामाजिक सुरक्षा लाभ और सरकारी नौकरियों के लिए वहां की नागरिकता अनिवार्य है। ऐसे में प्रवासियों के पास भारतीय पासपोर्ट छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।

2. 'कामयाब' लोगों का पलायन (Secession of the Successful)

पूर्व पीएमओ सलाहकार संजय बारू ने अपनी किताब 'Secession of the Successful' में इसे पलायन का चौथा चरण बताया है। उनके अनुसार, अब केवल मजदूर या डॉक्टर-इंजीनियर ही नहीं, बल्कि अमीर और रसूखदार वर्ग (HNIs) के बच्चे भी देश छोड़ रहे हैं। मॉर्गन स्टेनली के आंकड़ों के अनुसार, 2014 से अब तक लगभग 23,000 भारतीय करोड़पति देश छोड़ चुके हैं।

3. जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life)

दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में प्रदूषण (Air Quality), ट्रैफिक जाम और बुनियादी ढांचे की कमी लोगों को बाहर जाने पर मजबूर कर रही है। सोशल मीडिया पर लोग अक्सर साफ हवा, बेहतर सुरक्षा, और विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन के लिए विदेश जाने की बात करते हैं। सीए और इन्फ्लुएंसर सार्थक आहूजा ने सोशल मीडिया पर लिखा है- "भारत में रहने वाले कई लोग आज की जीवनशैली से नाखुश हैं। एक अनुमान के मुताबिक, हर तीन में से एक IIT-ian विदेश में काम करने की इच्छा रखता है।"

ब्रेन ड्रेन और भविष्य की चुनौती

हालांकि भारत को विदेशों से मिलने वाला धन (Remittances) 2023 में $125 बिलियन तक पहुंच गया है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में कुशल और शिक्षित आबादी का नागरिकता छोड़ना चिंता का विषय है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, भारत अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों का सबसे बड़ा स्रोत देश है।
सरकार का रुख: सरकार का कहना है कि वह 'नॉलेज इकोनॉमी' के युग में ग्लोबल कार्यस्थल की क्षमता को पहचानती है और प्रवासी भारतीयों को देश की संपत्ति मानती है। लेकिन घरेलू स्तर पर वेतन समानता, जीवन स्तर और प्रतिभा निखारने में सुधार की जरूरत ज़रूर है। सरकार प्रवासी भारतीयों को पॉजिटिव मानती है लेकिन पलायन चिन्ता को बढ़ा रहा है।