वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकल प्रभाकर ने एक लेख में नरेंद्र मोदी सरकार, बीजेपी और संघ की तीखी आलोचना की है। उन्होंने इसके साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तारीफ की है।
अर्थव्यवस्था को लेकर चौतरफा आलोचना की शिकार नरेंद्र मोदी सरकार पर नया हमला बिल्कुल अनपेक्षित जगह से हुआ है, बिल्कुल यकायक और तेज भी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकल प्रभाकर ने
'द हिन्दू' अख़बार के लिए लिखे गए एक लेख में केंद्र सरकार के आर्थिक फ़ैसलों और नीतियों की आलोचना की है।
प्रभाकर ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि 'निजी ख़पत घट कर 3.1 प्रतिशत पर पहुँच गयी है, जो 18 महीने के सबसे निचले स्तर पर है, गाँवों में खपत तेजी से गिर रही है, मझोले, लघु और सूक्ष्म उद्योगों को बैंक से मिलने वाले कर्ज में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, निर्यात ठहरा हुआ है, सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर का अनुमान न्यूनतम स्तर पर है। लेकिन, सरकार की समझ में अब तक नहीं आया है कि अर्थव्यवस्था के साथ क्या दिक्क़त है।'
वित्त मंत्री के पति का मानना है कि सत्तारूढ़ बीजेपी के पास अर्थव्यवस्था को लेकर कोई साफ़ दृष्टि है ही नहीं, वह नेहरूवादी मॉडल का विरोध महज विरोध करने के लिए करती है, पर ख़ुद उसका अपना कोई मॉडल नहीं है, कोई सोच नहीं है। उन्होंने अपने लेख में लिखा:
नेहरूवादी समाजवाद के पैटर्न को भारतीय जनसंघ ने शुरू में ही खारिज कर दिया, पर वह अपनी कोई दृष्टि विकसित नहीं कर सका। पूंजीवाद और मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था से जुड़ी उसकी जो भी नीति है, उसने कभी उसे अपनाकर नहीं देखा। गाँधीवादी समाजवाद से बीजेपी का प्रेम बस कुछ महीने ही चल सका। वह सिर्फ़ 'नेति, नेति' (यह नहीं, यह नहीं) कहती रही, पर अपनी कोई 'नीति' नहीं बता सकी।
प्रभाकर ने बीजेपी की इस बात को लेकर आलोचना की है कि पार्टी सिर्फ़ नेहरूवादी मॉडल का हर बात में विरोध करती रहती है। उन्होंने कहा, 'चीजें 1991 में ही साफ़ हो गई थीं, पी. वी. नरसिंह राव और मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में लीक से हट कर जो काम किए, उन्हें आज भी चुनौती नहीं दी जा सकती है। उसके बाद से अब तक जितने दलों ने सरकार चलाई या सरकार का समर्थन किया, सबने उसी रास्ते को स्वीकार किया है।'
बीजेपी लगातार नेहरूवादी आर्थिक नीतियों पर चोट करती रही, उसके थिंकटैंक यह नहीं समझ रहे हैं कि यह हमला सिर्फ़ राजनीतिक है, यह आर्थिक आलोचना नहीं हो सकता। उन्होंने नेहरूवादी अर्थनीति के विकल्प के रूप में अपना कुछ तैयार करने या उसे ही अपना लेने पर काम कभी किया ही नहीं।
लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि प्रभाकर ने बीजेपी के मूल राजनीतिक प्रेरणा स्रोत दीन दयाल उपाध्याय के 'एकात्मवादी मानवतावाद' पर ज़बरदस्त चोट करते हुए उसे पूरी तरह खारिज कर दिया है। उन्होंने 'द हिन्दू' में छपे अपने लेख में लिखा है :
आज के बाज़ार से चलने वाले भूमंडलीकृत विश्व में एकात्मवादी मानवतावाद जैसे विचारों पर आधारित कोई नीति बन ही नहीं सकती, इस पर कोई व्यवहारिक नीति नहीं अपनाई जा सकती है।
उन्होंने बीजेपी को नरसिंह राव-मनमोहन सिंह को अपना रोड मॉडल बनाने की सलाह भी दे डाली। उन्होंने कहा कि जिस तरह कांग्रेस के वंशवाद की वजह से सरदार बल्लभ भाई पटेल को दरकिनार कर दिया गया और बीजेपी ने उन्हें अपना लिया, उसी तरह उसे मनमोहन सिंह को भी अपना लेना चाहिए।
प्रभाकर ने इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बीजेपी ने कभी भी नरसिंह राव की अर्थनीतियों को चुनौती नहीं दी। इसलिए बेहतर है कि वह अभी भी उनकी आर्थिक नीतियों को अपना ले ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डूबती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए एक ध्रुवतारा मिल सके, जिस ओर देख कर वह अपनी नैया पार लगा सकें।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस पर सरकार की ओर से सफ़ाई दी है। उन्होंने अपने पति की बातों को खारिज करते हुए सरकार का पक्ष रखा है, हालाँकि उनके तर्क बेहद कमज़ोर हैं। उन्होंने कहा है कि जीएसटी, दिवालियापन क़ानून और आधार कार्ड जैसे फ़ैसले बीते 5 साल में लिए गए हैं। उन्होंने जवाब देते हुए कहा है:
साल 2014 और 2019 के बीच कई अहम आर्थिक सुधार किए गए हैं, कांग्रेस ने तो जीएसटी लागू नहीं किया है न। दिवालिया क़ानून और आधार लागू किए गए और उनमें संशोधन किए गए हैं। उज्ज्वला स्कीम से 8 लाख महिलाओं को लाभ हुआ है। टैक्स में कई तरह के सुधार किए गए। सभी स्टार्ट अप को 1 अक्टूबर के बाद से सबसे कम टैक्स चुकाना होगा। इसकी तारीफ भी तो की जानी चाहिए।
यह भी अजब इत्तिफाक़ है कि जिस दिन प्रभाकर का लेख अख़बार में छपा और वित्त मंत्री ने उसका जवाब दिया, उसी दिन भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया। वह नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की कई बार आलोचना कर चुके हैं। निर्मला सीतारमण जिस जीएसटी की बात करते हुए पति पर चोट करती हैं और कहती हैं जीएसटी के लिए सरकार की तारीफ की जानी चाहिए, बनर्जी ने उसी जीएसटी पर सरकार की आलोचना की थी। उन्होंने एक बार जब वह भारत आये थे तब कहा था कि 'जीएसटी को बेहतर तरीके से लागू किया जाना चाहिए था, हो सकता है लंबे समय के लिए यह अच्छा हो, पर अभी तो इससे व्यापारियों को बहुत दिक्क़तों का सामना करना पड़ेगा।'