नए साल की पूर्व संध्या पर गिग वर्कर्स ने ‘10 मिनट डिलीवरी’ के समय पर पाबंदी लगाने की मांग को लेकर हड़ताल की है। क्या हो सकता है इसका असर?
नए साल की पूर्व संध्या पर देशभर के डिलीवरी करने वाले गिग वर्कर्स हड़ताल पर उतर आए हैं। स्विगी, जोमैटो, जीप्टो, ब्लिंकिट, अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों से जुड़े हजारों डिलीवरी पार्टनर बुधवार को ऐप बंद करके काम रोक रहे हैं। इससे नए साल की पार्टी में खाना ऑर्डर करने वालों को काफी परेशानी हो सकती है, क्योंकि 31 दिसंबर इन कंपनियों के लिए सबसे व्यस्त दिन होता है। इससे पहले क्रिसमस पर भी ऐसी ही हड़ताल की गई थी जिसमें डिलीवरी सेवाएँ प्रभावित हुई थीं।
यह हड़ताल तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन यानी टीजीपीडब्ल्यूयू और इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यानी आईएफ़एटी के बैनर तले हो रही है। आईएफ़एटी ने केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मांडविया को लिखे एक ख़त में असुरक्षित 10 मिनट की डिलीवरी व्यवस्था पर रोक लगाने, सही मजदूरी देने, हाल ही में लागू नए श्रम कानूनों के तहत कंपनियों को नियमों में लाने और यूनियन बनाने तथा मोल-भाव करने के अधिकार को मान्यता देने की मांग की है।
टीजीपीडब्ल्यूयू के नेता शेख सलाउद्दीन ने कहा कि उनकी मुख्य मांग है कि प्लेटफॉर्म कंपनियां '10 मिनट डिलीवरी' का विकल्प पूरी तरह हटा दें, क्योंकि इससे कर्मचारियों पर बहुत दबाव पड़ता है और दुर्घटनाएं बढ़ती हैं। साथ ही, पुरानी पेमेंट व्यवस्था बहाल की जाए, जिसमें त्योहारों जैसे दशहरा, दीवाली और बकरीद पर अच्छी सैलरी और इंसेंटिव मिलते थे।
सलाउद्दीन ने एएनआई से कहा, 'हमारी मांग है कि पुरानी पेमेंट स्ट्रक्चर वापस लाई जाए और सभी प्लेटफॉर्म से 10 मिनट डिलीवरी का ऑप्शन हटाया जाए। हम बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन कंपनियां हमें धमकी दे रही हैं। वेयरहाउस के पास बाउंसर तैनात किए जा रहे हैं और कर्मचारियों के आईडी ब्लॉक किए जा रहे हैं। यह दबाव काम नहीं आएगा।'
क्रिसमस पर हड़ताल को लेकर सलाउद्दीन ने कहा कि 25 दिसंबर को हुई हड़ताल में पूरे देश से करीब 40 हजार कर्मचारी शामिल हुए थे, जिससे 50-60 प्रतिशत ऑर्डर डिले हो गए थे। उन्होंने चेताया, '25 दिसंबर सिर्फ ट्रेलर था, असली तस्वीर आज 31 दिसंबर को दिखेगी।' यूनियन का दावा है कि इस हड़ताल में 1.5 लाख से ज्यादा कर्मचारी हिस्सा ले रहे हैं।
कर्मचारियों की अन्य मांगें क्या हैं?
- एल्गोरिदम से कंट्रोल होने वाली सिस्टम में पारदर्शिता लाई जाए।
- सही इंसेंटिव दिए जाएं।
- शिकायत निवारण की अच्छी व्यवस्था हो।
- हेल्थ इंश्योरेंस, एक्सीडेंट कवर और पेंशन जैसी सोशल सिक्योरिटी मिले।
- महिलाओं के लिए सुरक्षित कामकाज, मेटर्निटी लीव और इमरजेंसी लीव हो।
- प्रति किलोमीटर कम से कम 20 रुपये की न्यूनतम दर।
- मनमाने तरीके से आईडी ब्लॉक करना बंद हो।
श्रम कानूनों के तहत आएँगी कंपनियाँ
इस साल की शुरुआत में सरकार ने सोशल सिक्योरिटी कोड को लागू किया, जिससे गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को पहली बार एक औपचारिक सुरक्षा व्यवस्था के दायरे में लाया गया। इससे इन कर्मचारियों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस पर रजिस्ट्रेशन हो सकेगा और वे स्वास्थ्य, विकलांगता, दुर्घटना बीमा और बुढ़ापे की सहायता जैसी योजनाओं का फायदा उठा सकेंगे। इसका मक़सद लाखों कर्मचारियों को उनकी गैर-परंपरागत नौकरी के बावजूद बुनियादी सुरक्षा देना है। सोशल सिक्योरिटी कोड, 2020 के तहत, पहली बार ‘गिग वर्कर्स’, ‘प्लेटफॉर्म वर्कर्स’ और ‘एग्रीगेटर्स’ कंपनियों की परिभाषा दी गई है।
इस कोड में गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए एक सोशल सिक्योरिटी फंड बनाने की योजना है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारें, कंपनियों की सामाजिक जिम्मेदारी की राशि, जुर्माने आदि से पैसा आएगा। अमेज़न, फ्लिपकार्ट, स्विगी और जोमैटो जैसी एग्रीगेटर कंपनियों को अपनी सालाना कमाई का 1-2 प्रतिशत इस फंड में देना होगा, लेकिन कुल योगदान कर्मचारियों को दी जाने वाली राशि के 5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगा।