Bihar Voter List Controversy: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 10 जुलाई को चुनाव आयोग से कहा कि आधार, वोटर आईकार्ड, राशन कार्ड को मान्य दस्तावेजों में शामिल करना चाहिए। मामले की सुनवाई 28 जुलाई को फिर होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। क्योंकि सुनवाई के दौरान इस पर रोक लगाने की मांग नहीं की गई। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) से आग्रह किया कि वह आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में किए जा रहे मतदाता सूची की विशेष गहन पड़ताल में मतदाताओं की पहचान साबित करने के लिए आधार, राशन कार्ड और मतदाता फोटो पहचान पत्र को मान्य दस्तावेजों के रूप में अनुमति देने पर विचार करे। गुरुवार की सुनवाई से एक बात साफ है कि उसने प्रक्रिया पर रोक लगाने का कोई आदेश पारित नहीं किया है। यानी बिहार में मतदाता सूची संशोधन की गहन पड़ताल जारी रहेगी।
बार एंड बेंच के मुताबिक अदालत ने आदेश में स्पष्ट कहा - "दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद, चुनाव आयोग ने बताया है कि मतदाताओं के सत्यापन के लिए दस्तावेजों की सूची में 11 दस्तावेज शामिल हैं और यह संपूर्ण नहीं है। इसलिए, हमारी राय में, यह न्याय के हित में होगा यदि आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को भी इसमें शामिल किया जाए। यह चुनाव आयोग पर निर्भर है कि वह दस्तावेज लेना चाहता है या नहीं। यदि वह दस्तावेज नहीं लेता है, तो उसे इसके लिए कारण बताना होगा और इससे याचिकाकर्ताओं को संतुष्ट होना होगा। इस बीच, याचिकाकर्ता अंतरिम रोक के लिए दबाव नहीं डाल रहे हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया, "मामले की सुनवाई की जरूरत है। इसे 28 जुलाई को उचित अदालत के सामने लिस्ट किया जाए। आयोग एक हफ्ते के भीतर 21 जुलाई तक या उससे पहले जवाबी हलफनामा दाखिल करे। 28 जुलाई से पहले जवाब दाखिल करे।"
तो आज की सुनवाई का निचोड़ क्या है
- अदालत ने बिहार मतदाता सूची के 'विशेष गहन पुनरीक्षण' (SIR) पर कोई राहत नहीं दी। क्योंकि स्टे मांगा नहीं गया।
- अदालत ने चुनाव आयोग को सलाह दी- आधार, वोटर पहचान पत्र और राशन कार्ड को दस्तावेज स्वीकार करना चाहिए।
- अगर आयोग इन्हें स्वीकार नहीं करता है तो कारण बताए और याचिकाकर्ताओं को भी संतुष्ट करे।
- सुप्रीम कोर्ट की दूसरी अदालत में 28 जुलाई को इस मामले की फिर सुनवाई होगी।
- सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा कि फिलहाल मतदाता सूची 28 जुलाई तक प्रकाशित न की जाए।
जस्टिस सुधांशु धूलिया ने शुरुआत में ही पूछा, "चुनाव आयोग की कार्रवाई में तर्क है। इसमें ग़लत क्या है?" उन्होंने कहा, "वे जो कर रहे हैं, वह संविधान के तहत अनिवार्य है। आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं जो संविधान के तहत अनिवार्य नहीं है।" लेकिन जब दलीलें दी गईं तो अदालत ने भी कहा प्रक्रिया से समस्या नहीं है लेकिन इसकी टाइमिंग से समस्या है।
इस सिलसिले में कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, अदालत ने कहा, "हमारे पास उन पर (चुनाव आयोग पर) संदेह करने का कोई कारण नहीं है। वे कह रहे हैं कि उनकी साख की जाँच की जाए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा चुनाव से चंद महीना पहले चुनाव आयोग द्वारा यह प्रक्रिया शुरू करने पर "गंभीर संदेह" जताया।
अदालत ने कहा, "आपकी (चुनाव आयोग की) प्रक्रिया समस्या नहीं है, बल्कि समय से समस्या है... बिहार में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से 'विशेष गहन पुनरीक्षण' (SIR) को क्यों जोड़ा जा रहा है? यह चुनावों के बाद या इस चुनाव से अलग क्यों नहीं हो सकता?" जस्टिस धूलिया ने कहा, "एक बार मतदाता सूची अंतिम रूप ले लेगी, तो अदालतें उसे नहीं छुएँगी... जिसका अर्थ है कि मताधिकार से वंचित व्यक्ति के पास चुनाव से पहले उसे (संशोधित सूची को) चुनौती देने का विकल्प नहीं होगा।"
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि मतदाता सूची में गैर-नागरिकों के नाम न रहें, यह सुनिश्चित करने के लिए गहन जाँच-पड़ताल करके मतदाता सूची को शुद्ध करने में कुछ भी गलत नहीं है। अदालत ने कहा, "लेकिन आप प्रस्तावित चुनाव से कुछ महीने पहले ही यह फैसला करते हैं? ऐसा क्यों?"
अदालत ने कहा, "यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा है... वे (याचिकाकर्ता) न केवल चुनाव आयोग की शक्तियों को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि प्रक्रिया को भी चुनौती दे रहे हैं..." अदालत ने याचिकाकर्ताओं के समूह द्वारा उठाए गए सवालों पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील शंकरनारायणन ने इस प्रक्रिया को पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह केवल इसके संचालन के तरीके को चुनौती दे रहे हैं, चुनाव आयोग की शक्ति को नहीं।
वरिष्ठ वकील शंकरनारायण ने अपने दलील की शुरूआत इस बात से की कि पिछले संशोधन के बाद से अब तक 10 बड़े चुनाव (अर्थात पांच लोकसभा और पांच राज्य विधानसभा) हो चुके हैं। वकील शंकरनारायण ने दलील दी कि संशोधन के अलावा, इन दस्तावेज़ों का चुनाव अतार्किक है। उन्होंने बताया कि अदालत के सदस्यों सहित कुछ वर्गों को छूट दी गई है। उन्होंने कहा, "वे केवल 11 दस्तावेज़ स्वीकार करेंगे... वे अपने ही मतदाता पहचान पत्र पर भी विचार नहीं करेंगे और वे माता-पिता के सत्यापन के लिए दस्तावेज़ मांग रहे हैं।"
वकील शंकरनारायणन ने कहा, "वे (चुनाव आयोग) कह रहे हैं कि आखिरी संशोधन 2003 में हुआ था, जब बिहार की आबादी चार करोड़ थी। अब यह लगभग 7.9 करोड़ है और तब से लगभग 10 चुनाव हो चुके हैं। और अब, जबकि चुनाव महीनों दूर हैं, वे यह कवायद कर रहे हैं... जिसमें मसौदा 30 दिनों में जारी करना है?" शंकरनारायण ने कहा, "हैरानी की बात है कि वे कह रहे हैं कि वे आधार स्वीकार नहीं करेंगे... अधिनियम में संशोधन के बावजूद, जो सत्यापन के लिए आधार की अनुमति देता है, अब वे कह रहे हैं कि इस पर विचार नहीं किया जाएगा।"
सुप्रीम कोर्ट ने इसके समय पर सवाल उठाया
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में मतदाता सूची के 'विशेष गहन पुनरीक्षण' (SIR) को लेकर चुनाव आयोग से कड़े सवाल पूछे। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले क्यों। अदालत ने इस प्रक्रिया की वैधता को स्वीकार किया, लेकिन चुनाव आयोग से पूछा कि उसने चुनाव से ठीक पहले यह प्रक्रिया क्यों शुरू की। अदालत ने चुनाव आयोग से कहा, "समस्या आपकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि समय की है..."पिछले महीने, चुनाव आयोग ने बिहार की मतदाता सूची में संशोधन का आदेश देते हुए कहा था कि पिछले 20 वर्षों में बड़े पैमाने पर नाम जोड़ने और हटाने से डुप्लिकेट प्रविष्टियों की संभावना बढ़ गई है। इस कदम की विपक्ष, खासकर कांग्रेस और राजद ने तीखी आलोचना की थी। आयोग ने यह आदेश देते हुए 11 दस्तावेजों में से कुछ दस्तावेज जमा कराने की शर्त रखी। उसने आधार, राशनकार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस को अमान्य दस्तावेज करार दिया। हालांकि आधार फिलहाल देश में हर काम के लिए स्वीकार किया जा रहा है। लेकिन आयोग को वो मंजूर नहीं।