बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू को गुरुवार को ज़मानत दे दी। हनी बाबू यूएपीए के तहत पाँच साल से ज़्यादा समय से जेल में थे। उनके ऊपर माओवादियों से संबंध होने का आरोप लगाया गया था।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हनी बाबू
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के प्रोफेसर हनी बाबू को जमानत दे दी। उन्हें जुलाई 2020 में गिरफ्तार किए जाने के बाद से करीब पांच साल और दो महीने से अधिक समय जेल में बिताना पड़ा था। बाबू को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में माओवादियों से कथित संबंध और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले की साजिश रचने के आरोप में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अवैध गतिविधि निवारण अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था। उसी कड़ी में डीयू के एक और प्रोफेसर जीएन साईबाबा और फादर स्टेन स्वामी सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था। जीएन साईंबाबा और फादर स्टेन स्वामी की मौत हो चुकी है।
हनी बाबू पर यह भी आरोप लगाया गया था कि वे जी.एन. साईबाबा के समर्थन में बनी एक कमेटी का हिस्सा थे, जिन्हें माओवादी संबंधों के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 14 अक्टूबर 2022 को साईबाबा को बरी कर दिया था और दो साल बाद उनकी मौत बीमारी से हो गई। यह बीमारी जेल में रहने और सही इलाज न होने से हुई थी। आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाले फादर स्टेन स्वामी की मौत भी जेल में उचित इलाज सही समय पर न मिलने की वजह से हुई थी।
मामले की पृष्ठभूमि और कानूनी प्रक्रिया
हनी बाबू की गिरफ्तारी के बाद फरवरी 2022 में महाराष्ट्र के एक ट्रायल कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका और तीन अन्य लोगों की याचिकाओं को खारिज कर दिया था। सितंबर 2022 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद बाबू ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां जनवरी 2023 में एनआईए से जवाब मांगा गया। मई 2024 में बाबू ने अपनी विशेष अनुमति याचिका वापस ले ली और परिस्थितियों में बदलाव का हवाला देते हुए हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन करने की बात कही। इस मामले में आठ अन्य आरोपी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से जमानत प्राप्त कर चुके हैं।
जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बाबू को ट्रायल कोर्ट या हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर करने की अनुमति दी। उसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। विशेष कोर्ट में मुकदमे में देरी के कारण बाबू को लंबे समय से बिना ट्रायल के जेल में रखा गया था।
जमानत की शर्तें
जस्टिस ए.एस. गडकरी और जस्टिस रणजित सिंह राजा भोंसले की डिवीजन बेंच ने जमानत याचिका को मंजूर करते हुए बाबू को एक लाख रुपये के जमानती बॉन्ड और एक मुचलके के साथ रिहा करने का आदेश दिया। विस्तृत आदेश अभी जारी होना बाकी है। सुनवाई के दौरान बाबू के वकील युग मोहित चौधरी ने मुकदमे में अनावश्यक देरी का हवाला देते हुए जमानत की मांग की। उन्होंने कहा कि बाबू पांच साल से अधिक समय से जेल में हैं और ट्रायल कोर्ट में कार्यवाही में देरी हो रही है। दूसरी ओर, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने तर्क दिया कि आरोपी ने रोना विल्सन और सुधीर धावले जैसे अन्यों की तरह पर्याप्त समय जेल में नहीं बिताया है, इसलिए केवल लंबी कैद के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती।
क्या है भीमा कोरेगांव मामला
भीमा कोरेगांव मामला 1 जनवरी 2018 को पुणे के पास भीमा कोरेगांव गांव में हिंसा से शुरू हुआ था। उस दिन 1818 की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ पर लाखों दलित लोग विजय स्तंभ पर श्रद्धांजलि देने आए थे, लेकिन उन पर कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों से जुड़े लोगों ने हमला कर दिया। पथराव हुआ, गाड़ियां जलाई गईं और एक युवक राहुल फटांगले की मौत हो गई। इसके ठीक एक दिन पहले 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाडा में ‘एल्गार परिषद’ नाम का कार्यक्रम हुआ था, जिसमें दलित-बहुजन बुद्धिजीवियों ने मनुस्मृति और ब्राह्मणवाद के खिलाफ तीखे भाषण दिए थे। पुलिस का दावा है कि इसी कार्यक्रम की वजह से अगले दिन हिंसा भड़की।
शुरुआत में पुलिस ने हिंदुत्वादी नेता संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, लेकिन जांच का रुख अचानक बदल गया। पुणे पुलिस और बाद में एनआईए ने दावा किया कि एल्गार परिषद को माओवादियों ने फंड किया था और उसका मकसद देश में अशांति फैलाना व प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचना था। इसी आधार पर जून 2018 से लेकर 2020 तक देशभर में छापे मारकर 16 बुद्धिजीवियों, लेखकों, वकीलों, कवियों और प्रोफेसरों को गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू, कवि वरवरा राव, वकील सुधा भारद्वाज, आदिवासी कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी समेत कुल 16 लोग शामिल हैं। सभी पर UAPA के तहत देशद्रोह और माओवादी संबंधों के गंभीर आरोप लगाए गए।
सालों तक बिना मुकदमा शुरू हुए ही ज्यादातर आरोपी जेल में रहे। फादर स्टेन स्वामी की 2021 में जेल में ही मृत्यु हो गई। कई अंतरराष्ट्रीय फॉरेंसिक जांचों में पता चला कि कुछ आरोपियों के कंप्यूटर में हैकिंग के जरिए झूठे सबूत प्लांट किए गए थे। इसके बावजूद ट्रायल में भारी देरी हुई। 2022 से 2025 के बीच सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट ने लंबी कैद और सबूतों की कमजोरी का हवाला देते हुए एक-एक कर आनंद तेलतुंबडे, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, गौतम नवलखा, हनी बाबू समेत 13 लोगों को जमानत दे दी। 4 दिसंबर 2025 तक केवल तीन आरोपी ही जेल में बचे हैं।
भीमा कोरेगांव केस अब सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं रहा। यह दलित आत्मसम्मान, अभिव्यक्ति की आजादी, UAPA के दुरुपयोग और राज्य द्वारा असहमति को दबाने का प्रतीक बन गया है। एक तरफ दलित समुदाय इसे 1818 की अपनी ऐतिहासिक जीत का उत्सव मानता है, तो दूसरी तरफ सरकार और जांच एजेंसियां इसे माओवादी साजिश का नाम देती रही हैं। सात साल बाद भी मुकदमे की शुरुआत नहीं हुई है और ज्यादातर आरोपी जमानत पर बाहर हैं, जिससे इस पूरे केस की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।