loader

हिमंत जैसे नेता किस आधार पर मुसलिम आबादी पर उठाते हैं सवाल?

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने मुसलिमों की जनसंख्या पर एक बयान देकर फिर से इस विवाद को जन्म दिया है कि क्या मुसलिमों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है? या फिर इसमें कोई सचाई है कि मुसलिमों की आबादी बेतहाशा बढ़ रही है? आख़िर हिमंत बिस्व सरमा ने राज्य के अल्पसंख्यक मुस्लिम लोगों से जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक अच्छी परिवार नियोजन नीति अपनाने की अपील क्यों की? या जब तक मुसलिम जनसंख्या को लेकर दक्षिणपंथी विचार वाले नेता बयान क्यों देते रहते हैं?

वास्तविकता जानने के लिए जनसंख्या बढ़ने की रफ़्तार को समझना होगा। इसे कुल प्रजनन क्षमता यानी टीएफ़आर के आँकड़ों से समझा जा सकता है। प्रजनन क्षमता से मतलब है कि देश में हर जोड़ा औसत रूप से कितने बच्चे पैदा करता है। किसी देश में सामान्य तौर पर टीएफ़आर 2.1 रहे तो उस देश की आबादी स्थिर रहती है। इसका मतलब है कि इससे आबादी न तो बढ़ती है और न ही घटती है। फ़िलहाल भारत में टीएफ़आर 2.2 है। 

ताज़ा ख़बरें

अब यदि हिंदू और मुसलिम में अलग-अलग इस टीएफ़आर को देखें तो हालात किसके ज़्यादा सुधरे हैं, यह काफ़ी अहम हो जाता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफ़एचएस के आँकड़ों से इसे समझा जा सकता है। इसके 2005-06 के आँकड़ों के अनुसार देश में मुसलिमों का टीएफ़आर 3.4 था जो 2015-16 में घटकर 2.6 हो गया था। यानी 0.8 की गिरावट आई थी। 2005-06 में हिंदुओं का टीएफ़आर 2.6 था जो घटकर 2.1 रह गया। यानी 0.5 की गिरावट आई। इस तरह प्रजनन कम होने के मामले में मुसलिमों में बेहतर सुधार हुआ है। 

'टीओआई' ने इस पर एक रिपोर्ट छापी है। इसमें एनएफ़एचएस के आँकड़ों के हवाले से कहा गया है कि 2005-06 में बिहार में जहाँ मुसलिमों का टीएफआर 4.8 था वहीं 2019-20 में यह घटकर 3.6 रह गया है। यानी 1.2 की कमी आई है। इस दौरान हिंदुओं की टीएफ़आर 3.9 से घटकर 2.9 रह गई है। यानी 1.0 की कमी आई है। हिमाचल प्रदेश में तो 2019-20 में हिंदुओं और मुसलिमों का टीएफ़आर 1.7-1.7 बराबर ही है। जबकि इससे पहले 2015-16 में हिंदुओं का टीएफ़आर 2 और मुसलिमों का 2.5 था। 

अब तो हालात ऐसे हैं कि आठ राज्यों- आँध्र प्रदेश, बिहार, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक और केरल में से सिर्फ़ दो राज्यों में ही मुसलिमों का टीएफ़आर सामान्य यानी 2.1 से ज़्यादा है। 2019-20 में मुसलिमों का टीएफ़आर बिहार में 3.6 और केरल में 2.3 रहा है।

अब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ही जिस तरह से असम के बारे में बात कर रहे हैं वहाँ के हालात से मेल नहीं खाते हैं। असम में 2005-06 में मुसलिमों का टीएफ़आर जहाँ 3.6 था वहीं यह घटकर अब 2019-20 में घटकर 2.4 हो गया है। यानी 1.2 की गिरावट आई है। जबकि 2005-06 में हिंदुओं का टीएफ़आर 2 था जो 2019-20 में घटकर 1.6 हो गया। यानी 0.4 की गिरावट आई। 

himanta biswa sarma appeals muslims to adopt a decent family planning - Satya Hindi

इससे एक बात तो साफ़ है कि असम में मुसलिमों का परिवार नियोजन में काफ़ी ज़्यादा सुधार हुआ है और इतना ज़्यादा सुधार देश में एक तरह से रिकॉर्ड है। असम में मुसलिमों का टीएफ़आर 2.4 है जो जनसंख्या स्थिर रहने के लिए ज़रूरी 2.1 के क़रीब है। 

तो सवाल है कि हिमंत बिस्व सरमा मुसलिमों को लेकर विवादित बयान क्यों देते हैं? हाल में वह इसलिए विवाद में रहे थे कि एक अपराध में शामिल अभियुक्तों के नामों को ट्विटर पर लिखा था- ये सभी अभियुक्त मुसलमान थे। सवाल उठा था कि यदि हिंदू समुदाय के भी लोग पुलिस की पकड़ में आते हैं, तब भी क्या हिमंत उनके नाम इसी तरह ट्विटर पर लिखेंगे?

देश से और ख़बरें
असम चुनाव के दौरान हिमंत एआईयूडीएफ़ के अध्यक्ष बदरूद्दीन अज़मल को जिन्ना बता चुके हैं। जीवन में लंबे वक़्त तक कांग्रेस की राजनीति करने वाले सरमा कुछ साल पहले ही बीजेपी में आए हैं। वह उन नेताओं में से एक हैं जो ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले दक्षिणपंथी नेता अक्सर मुसलिमों की आबादी को लेकर विवादित बयान देते रहे हैं। लेकिन सरकार के ही आँकड़े वैसे हालात की ओर इशारा नहीं करते हैं। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें