अफगानिस्तान के विदेश मंत्री और तालिबान नेता अमीर खान मुत्तकी की शुक्रवार को अफगान दूतावास में प्रेस वार्ता में महिलाओं पत्रकारों को प्रवेश न देने का मामला गरमा गया है। यह फ़ैसला खुद तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने लिया था, जिसका दूतावास के कर्मचारियों ने कड़ा विरोध किया था। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, दूतावास परिसर को मिलने वाली डिप्लोमैटिक छूट ने तालिबान को प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिलाओं को बाहर करने की ढाल प्रदान कर दी। इस घटना ने विपक्षी नेताओं, पत्रकार संगठनों और पूर्व राजदूतों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है, जबकि विदेश मंत्रालय ने खुद को इससे अलग रखने का दावा किया है।

मुत्तकी की भारत यात्रा का तीसरा दिन शुक्रवार को था, जब उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद दूतावास में प्रेस वार्ता की। यह पहली बार था जब तालिबान का कोई विदेश मंत्री भारत आया हो और भारत ने काबुल में अपनी तकनीकी मिशन को पूर्ण दूतावास का दर्जा देने की घोषणा की। लेकिन प्रेस वार्ता में केवल पुरुष पत्रकारों को आमंत्रित किया गया। रिपोर्ट है कि शुरुआत में 12 और बाद में 16 पत्रकारों को बुलाया गया। इससे लिंग-आधारित भेदभाव का आरोप लगा। तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने दावा किया कि महिलाओं को बाहर रखना उनकी सांस्कृतिक प्रोटोकॉल का हिस्सा था, लेकिन इससे अफगानिस्तान में महिलाओं पर लगाए गए प्रतिबंधों की याद ताज़ा हो गई।
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अफगान दूतावास परिसर का इस्तेमाल क्यों?

राजधानी के चाणक्यपुरी राजनयिक इलाके में स्थित अफगान दूतावास विवाद का मुख्य केंद्र बना। यहां फिलहाल लगभग 23 कर्मचारी हैं, जिनमें से छह अफगान हैं और वे 2021 में तालिबान के सत्ता में आने से पहले के राष्ट्रपति अशरफ गनी के नेतृत्व वाले इस्लामी गणराज्य अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व करते हैं। चार्ज डी'अफेयर्स यानी सीडीए सैयद मोहम्मद इब्राहिमखिल भी पूर्व व्यवस्था के प्रतिनिधि हैं।

मुत्तकी की यात्रा से पहले इन कर्मचारियों ने सीडीए से अनुरोध किया था कि तालिबान की प्रेस वार्ता दूतावास में न हो। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से कहा, "हम जानते थे कि वे दूतावास को 'एमिरेट' घोषित करना चाहेंगे, हमारा झंडा उतारकर अपना लगाएंगे और महिलाओं को बाहर रखेंगे। इसलिए हमने विरोध किया और सुझाव दिया कि पाँच सितारा होटल में आयोजन हो, जहां तालिबान प्रतिनिधिमंडल ठहरा है।" लेकिन एमईए ने सीडीएस को 'सहयोग करने' और प्रेस वार्ता की अनुमति देने के लिए कहा, जिससे कर्मचारी निराश हुए।
रिपोर्ट के अनुसार दूतावास के एक कर्मचारी ने कहा, "हम अफगानिस्तान में उनके व्यवहार को अच्छी तरह जानते हैं... हमारे रिश्तेदारों और परिवार की महिलाएं पिछले चार वर्षों से पीड़ित हैं। आज उन्होंने अफगानिस्तान का नाम कितना बदनाम कर दिया। हमसे सूची के बारे में कोई परामर्श नहीं किया गया, अन्यथा हम कभी महिलाओं के साथ भेदभाव न करते।" 

विडंबना यह है कि दूतावास अभी भी विवादित है- भारत सरकार ने तालिबान व्यवस्था को औपचारिक मान्यता नहीं दी है। फिर भी, जयशंकर-मुत्तकी बैठक के बाद तालिबान को दिल्ली में राजनयिक भेजने की अनुमति दी गई।

प्रेस वार्ता के दौरान तालिबान ने दूतावास को मिलने वाली छूट का उपयोग किया। रिपोर्ट में सूत्र के हवाले से कहा गया है, 'परिसर के बाहर निजी जगह होने पर वे ऐसा न कर पाते। दूतावास होने से उन्हें वियना संधि के तहत छूट मिल गई।' वार्ता के बाद जब वे बाहर निकले तो पुराने अफगान गणराज्य का झंडा देखकर मुख्य द्वार से बचकर साइड एग्जिट से चले गए। 

एमईए का स्पष्टीकरण 

एमईए ने कहा है कि प्रेस इंटरैक्शन में हमारा कोई हस्तक्षेप नहीं था। अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने अफगान पक्ष को महिलाओं पत्रकारों को शामिल करने का सुझाव दिया था, लेकिन आमंत्रण मुंबई के अफगान कंसल जनरल ने भेजे थे। एमईए ने जोर देकर कहा कि दूतावास भारतीय क्षेत्राधिकार से बाहर है।
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हालाँकि, इस घटना पर विपक्ष ने सरकार पर हमला किया। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा, 'महिला पत्रकारों को बाहर रखने की अनुमति देकर प्रधानमंत्री हर भारतीय महिला को बता रहे हैं कि वह इतने कमजोर हैं कि वह उनके लिए खड़े नहीं हो सकते हैं।' कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने टिप्पणी की, 'यदि प्रधानमंत्री की महिलाओं के अधिकारों की मान्यता केवल चुनावी स्लोगन है, तो हमारे देश में भारत की सबसे सक्षम महिलाओं का यह अपमान कैसे होने दिया गया?' पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा, 'मैं स्तब्ध हूं... पुरुष पत्रकारों को बाहर आ जाना चाहिए था।' तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने सरकार को 'कमजोर कायरों का समूह' कहा।

पत्रकार संगठनों ने भी कड़ा विरोध जताया। इंडियन विमेंस प्रेस कोर्प्स ने इसे बेहद भेदभावपूर्ण बताते हुए सरकार से अफगान दूतावास के साथ बात करने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने की मांग की।

पूर्व राजदूतों की प्रतिक्रिया

पूर्व भारतीय राजदूतों ने भी टिप्पणी की। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान में पूर्व राजदूत और 1996-2001 में एमईए में पाक-अफगान-ईरान के संयुक्त सचिव रहे विवेक कटजू ने कहा, 'यह प्रतिगामी है और मैं पूरी तरह अस्वीकार करता हूँ। लेकिन मैं क्षेत्र में संवेदनशील समय पर भारत के रणनीतिक हितों को ध्यान में रखता हूं, और प्रेस वार्ता उनके दूतावास में हुई।' पूर्व राजदूत गौतम मुखोपाध्याय ने कहा, 'यह शर्मनाक है कि हमारी सरकार भारतीय महिला पेशेवरों का सम्मान बनाए रखने लायक नहीं समझती। यह हमारी लिंग समानता के प्रति प्रतिबद्धता का आईना है।' एक अन्य पूर्व राजनयिक ने कहा, 'यह घृणित व्यवहार है, लेकिन हम उनके दूतावास में जबरदस्ती नहीं कर सकते।'
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एक अन्य घटना में चाणक्यपुरी में ही स्थित विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में मुत्तकी ने विद्वानों के साथ सत्र में भाग लिया, जिसमें महिलाएं भी शामिल थीं। यहां तालिबान का नियंत्रण नहीं था, जो दूतावास के बाहर उनके सीमित प्रभाव को दिखाता है। फाउंडेशन एनएसए अजीत डोभाल द्वारा स्थापित प्रो-गवर्नमेंट थिंक टैंक है।

देवबंद में भी विवाद: मीडिया इंटरैक्शन रद्द

यह विवाद मुत्तकी को शनिवार को देवबंद के दारुल उलूम मदरसे तक पीछा करता रहा। दोपहर 2 बजे निर्धारित मीडिया इंटरैक्शन को अचानक 30 मिनट पहले रद्द कर दिया गया। एक मौलवी ने महिला फोटो पत्रकार से पूछा, 'आप यहां कैसे आ गईं?' इसके तुरंत बाद मुत्तकी की टीम ने घोषणा की कि मंत्री वाइस चांसलर अबुल कासिम नोमानी और अन्य मौलवियों से बंद कमरे में मिलेंगे, उसके बाद लंच। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि रद्द करने का निर्देश मुत्तकी की टीम से आया।

मुत्तकी दोपहार 12 बजे दारुल उलूम पहुंचे थे, जहां छात्रों ने उनका भव्य स्वागत किया। लाइब्रेरी में उन्होंने 4000 छात्रों को संबोधित किया। बाद में गेस्ट हाउस में लंच के दौरान होने वाला मीडिया इंटरैक्शन रद्द हुआ। उनकी टीम ने पुलिस को बताया कि 'मंत्री को लगा कि संबोधन पर्याप्त था और उन्हें दिल्ली जल्दी लौटना है।'