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क्या विपक्षी नेताओं के घरों पर छापे डलवा रही है मोदी सरकार?

क्या मोदी सरकार विपक्षी दलों के नेताओं को डराने-धमकाने के लिए उनके वहाँ छापे डलवा रही है? आख़िर यह सवाल राजनीतिक गलियारों में इतने जोर-शोर से क्यों पूछा जा रहा है। इस सवाल के पूछे जाने के पीछे ठोस कारण हैं। 

अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, पिछले छह महीने में, आयकर विभाग की ओर से 15 बार विपक्षी नेताओं और उनके सहयोगियों के घरों पर छापेमारी की कार्रवाई की गई है। इनमें कर्नाटक में 5, तमिलनाडु में 3, आंध्र प्रदेश में 2, दिल्ली में 2 और मध्य प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और उत्तर प्रदेश में 1 बार की गई कार्रवाई शामिल है। इसी दौरान उत्तराखंड में बीजेपी से जुड़े एक व्यक्ति के ठिकानों पर भी छापेमारी हुई लेकिन बीजेपी ने ख़ुद को इससे अलग कर लिया।

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इस बारे में चुनाव आयोग के पूछे जाने पर वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले राजस्व विभाग ने सोमवार को दिए जवाब में कहा है कि इस तरह की छापेमारी पूरी तरह ‘तटस्थ’ और ‘निष्पक्ष’ हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान या उससे ठीक पहले की गई छापेमारी की कार्रवाइयाँ बिलकुल अलग ही तस्वीर पेश करती हैं। आइए, इस पर बात करते हैं कि आख़िर क्यों मोदी सरकार पर विपक्षी नेताओं के ठिकानों पर छापेमारी करवाने का आरोप लग रहा है। 

हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के सहयोगियों के कई ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापेमारी की कार्रवाई की। इसे लेकर ख़ासा बवाल भी हुआ और ऐसा ही कुछ फ़रवरी में पश्चिम बंगाल में देखने को मिला था जब कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ होने से नाराज़ होकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठ गई थीं। ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर 'राजनीतिक बदले की भावना' से काम करने का आरोप लगाया था। 

बहरहाल, इससे पहले आंध्र प्रदेश में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के चेयरमैन और और टीडीपी नेता पुट्टा सुधाकर यादव और सीएम रमेश के यहाँ छापा मारा गया। 29 मार्च को डीएमके के कोषाध्यक्ष दुराई मुरुगन और उनके बेटे के ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापेमारी की। 

इसी तरह 27 और 28 मार्च को एक और विपक्षी दलों की सरकार वाले राज्य कर्नाटक में वहाँ की सरकार में मंत्री सीएस पुट्टाराजू के ठिकानों पर छापेमारी की गई। इसके अलावा मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के भाई और राज्य सरकार में मंत्री एचडी रेवन्ना के सहयोगियों के ठिकानों पर भी छापेमारी की कार्रवाई हुई। 

हाल ही में कर विभाग की ओर से दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मंत्री कैलाश गहलोत और विधायक नरेश बालियान के ठिकानों पर भी छापा मारा गया था। पिछले महीने मायावती के क़रीबी अफ़सर नेतराम के ठिकानों पर भी छापेमारी की कार्रवाई हुई थी।

विपक्षी नेताओं के यहाँ डाले जा रहे इन अंधाधुंध छापों को लेकर मोदी सरकार की ख़ासी आलोचना भी  हुई। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने तंज कसते हुए कहा था, ‘प्रधानमंत्री मोदी आयकर विभाग के जरिये विपक्षी नेताओं के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर रहे हैं। चुनाव के मौक़े पर सरकारी मशीनरी का इस तरह दुरुपयोग किया जाना बेहद चिंताजनक है।’ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी इस तरह की कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला था। 

दो दिन पहले ही दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में काम करने वाले एक कर्मचारी के घर पर छापा मारा गया था। यह कर्मचारी कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल से जुड़े हुए थे। इस पर भी सवाल यह उठा कि प्रधानमंत्री मोदी क्या अहमद पटेल के आरोपों से इस क़दर तिलमिला गए थे कि उन्होंने उनसे जुड़े एक अदने से कर्मचारी के घर पर छापा डलवा दिया। 
इस पर अहमद पटेल ने कहा कि वह छापेमारी से डरने वाले नहीं हैं। पटेल ने कहा कि बीजेपी सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर यह कोशिश कर रही है कि उनके विरोधी चुनाव नहीं लड़ सकें।
अहमद पटेल ने ट्वीट कर कहा कि नोटबंदी और रफ़ाल सौदे के दलाल अब बच नहीं पाएँगे और जनता इन्हें सबक़ सिखा कर रहेगी। उन्होंने तंज कसा कि वैसे यह कहावत आपने सुनी ही होगी कि चोर को हर कोई चोर ही नज़र आता है।

अगस्त 2017 में गुजरात से राज्यसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में जब अहमद पटेल कांग्रेस के उम्मीदवार थे, तब कर्नाटक सरकार के एक मंत्री जो गुजरात के विधायकों की देखभाल कर रहे थे, उनके यहाँ आयकर विभाग ने छापे मारे थे। तब यह आरोप लगा था कि मोदी और अमित शाह के इशारे पर छापे मारने की कार्रवाई हुई है। 

कुछ महीने पहले ही कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, अखिलेश यादव के क़रीबियों, तृणमूल कांग्रेस के नेताओं, पी. चिदंबरम और लालू यादव के परिवार के सदस्यों के ख़िलाफ़ सीबीआई ने छापेमारी की कार्रवाई की थी, इसे लेकर भी सवाल उठा था कि लंबे समय से लंबित पड़े मामलों में एक के बाद एक करके आख़िर चुनाव से ठीक पहले ही क्यों कार्रवाई हो रही है। दिसंबर में यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन के बीच ख़बर आते ही यह कहा गया था कि तथाकथित खनन घोटाला मामले में सीबीआई अखिलेश यादव से पूछताछ कर सकती है। 

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हम जानते हैं कि देश में हमेशा से ही सीबीआई, आयकर विभाग और अन्य संवैधानिक संस्थाओं के राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर बहस होती रही है। हर सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि वह अपने विरोधियों को डराने के लिए संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करती है। ऊपर लिखे गए इन मामलों को पढ़ने के बाद मोदी सरकार पर यह बात साबित भी होती है। लेकिन चुनाव के दौरान ही इस तरह की कार्रवाइयाँ क्यों की जा रही हैं, क्योंकि इससे पहले भी इन मामलों में संबंधित विभाग छापेमारी कर सकता था। 

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हालाँकि चुनाव आयोग ने जाँच एजेंसियों से कहा है कि किसी भी छापेमारी से पहले वह उसे सूचित करें लेकिन जब तक चुनाव आयोग कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता तब तक उसके बयान का कोई मतलब नहीं है। इसलिए सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या हाल में विपक्षी दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ हुई छापेमारी की लगातार कार्रवाइयों के बाद केंद्र की सरकार से किसी तरह की निष्पक्षता की उम्मीद की जा सकती है? 
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