क्या पाकिस्तान से लगने वाली सीमा पर भारत की सुरक्षा नीति और सीमा प्रबंधन बदल रहा है? क्या भारत में घुसने के लिए सीमा पार घात लगाए आतंकवादी और उन्हें 'कवर फ़ायर' देने वाली पाकिस्तानी सेना को मुँहतोड़ जवाब देने की नई मजबूत नीति उभर रही है?
सरकार या सेना के पास ही इसका जवाब होगा, पर जिस तरह भारत ने शनिवार और रविवार को ज़बरदस्त गोलाबारी कर पाक-स्थित तीन आतंकवादी शिविरों को नष्ट कर दिया, जिसमें 6-10 पाकिस्तानी मारे गए, उससे यह साफ़ है कि भारत की नीति बदल रही है। भारत अब संयम बरतने के बजाय हमलावर और आक्रामक होने की नीति अपना रहा है।
घात लगाए आतंकवादी
जम्मू-कश्मीर में तैनात चिनार कोर के प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल के. जे. एस, ढिल्लों और सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने बीच-बीच में कई बार कहा था कि कश्मीर में नियंत्रण रेखा के ठीक पार पाकिस्तानी सरज़मीन पर अलग-अलग जगहों पर लगभग 500 प्रशिक्षित आतंकवादी घात लगाए बैठे हैं। वे मौक़ा मिलते ही भारत में घुस कर किसी बड़ी आतंकवादी वारदात को अंजाम देने की कोशिश कर सकते हैं।
तंगधार के पास नियंत्रण रेखा के ठीक उस पार नीलम घाटी में कई आतंकवादी शिविर चल रहे हैं। उन शिविरों में प्रशिक्षित आतंकवादियों को तैयार रखा गया था कि जब भारतीय सेना पाकिस्तानी फ़ायरिंग का जबाव देने में मशगूल हो, मौका देख कर आतंकवादी भारत में घुस जाएँ।
'कवर फ़ायरिंग'
दरअसल ऐसा पहले भी होता रहा है। पाकिस्तान की यही नीति रही है कि भारतीय पक्ष को उकसा कर गोलाबारी में उलझाया जाए और उसकी आड़ में आतंकवादी सीमा के अंदर घुस जाएँ। रविवार को हुई भारतीय गोलाबारी के निशाने पर ये आतंकवादी शिविर थे। तीन आतंकवादी शिविर ध्वस्त कर दिए गए।
पाकिस्तान का विरोध
इससे पाकिस्तान का नाराज़ और परेशान होना स्वाभाविक है। पाकिस्तानी वेबसाइट 'द डॉन' का कहना है कि इसलामाबाद ने भारत के कूटनीतिक प्रमुख गौरव अहलूवालिया को बुला कर विरोध जताया। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के महानिदेशक (दक्षिण एशिया व सार्क) मुहम्मद फ़ैसल ने कहा, 'भारत ने नियंत्रण रेखा के पार जूरा, शाहकोट और नौशेरा सेक्टरों में 18 और 20 अक्टूबर को बग़ैर किसी उकसावे के युद्धविराम का उल्लंघन किया।'
पाकिस्तानी चाल
साफ़ है, पाकिस्तान इस बहाने भी भारत के ख़िलाफ़ तमाम दुनिया की सहानुभूति बटोरना चाहता है। उसकी मंशा है कि ये देश कश्मीर मुद्दे पर भारत पर दबाव बनाएँ। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद से पाकिस्तान लगभग हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के ख़िलाफ़ आवाज उठा चुका है। इसके राजनयिक दुनिया भर में घूम घूम कर भारत के ख़िलाफ़ हवा बना रहे हैं। पर सच यह है कि चीन, तुर्की और मलेशिया के अलावा किसी देश ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया।
कार्रवाई की तारीफ
दूसरी ओर, भारत के सुरक्षा विशेषज्ञों ने भारतीय सेना की तारीफ की है। रक्षा विशेषज्ञ शिवाली देशपांडे ने 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' से कहा, 'भारतीय सेना ने गोलाबारी यह जानकारी मिलने के बाद की कि सीमा पार शिविरों में बैठे आतंकवादी भारत में घुसने की कोशिश में हैं। हमारे बलों ने इन शिविरों को नष्ट कर दिया और आतंकवादियों को मार गिराया।'
2016 की सर्जिकल स्ट्राइक
इससे पहले 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक-1 की जा चुकी है। तब उरी में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने 28-29 सितंबर की रात पाक सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। इसमें 38 आतंकवादी मारने का दावा किया गया था। तब भी भारत ने अपने जवानों की शहादत का बदला लेने के लिए रात 12.30 बजे से 2.30 बजे तक यह ऑपरेशन चलाया था। भारतीय सेना के कमांडो ने आतंकवादियों के 7 लॉन्च पैड को अपना निशाना बनाया था। तब बड़े पैमाने पर आतंकवादी ठिकाने तबाह किये गये थे।
सवाल है कि क्या भारत पहले साल 2016 में, फिर पुलवामा हमले के बाद फरवरी 2019 में और अब अक्टूबर में पाकिस्तान-स्थित आतंकवादी शिविरों पर हमले कर यह संकेत देना चाहता है कि आतंकवादी शिविरों पर अब सिर्फ़ बातें नहीं की जाएगी, कार्रवाई की जाएगी। क्या यह भारत का एक तरह का 'मस्कुलर एप्रोच' है? जो भी हो, भारत ने एक बार स्ट्राइक कर यह संकेत तो दे ही दिया आतंकवादी शिविर उसके निशाने पर हैं।