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जब ओआईसी पर इतना कड़ा रुख, तो राजदूतों को डैमेज कंट्रोल पर क्यों लगाया

पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी मामले में भारत सरकार ने 57 सदस्यीय इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के बयान को खारिज करने में देर नहीं लगाई थी। लेकिन अंदर ही अंदर उसने इस संगठन के सदस्य मुस्लिम देशों में अपने राजदूतों को डैमेज कंट्रोल पर भी लगा दिया था।

द हिन्दू अखबार की एक रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है। उसके रिपोर्टर ने इस सारे घटनाक्रम से जुड़े कुछ दस्तावेज भी देखे हैं।

भारत ने मुस्लिम देशों में नियुक्त भारतीय राजदूतों को पत्र भेजा, जिसमें उन बिन्दुओं के तहत मामले को निपटाने की सलाह दी गई। इस पत्र का मकसद यह तय करना था कि हर ओआईसी देश में स्थित भारतीय राजदूत 5 जून की स्थिति से निपटने के लिए बातचीत करें। 5 जून वो दिन था जब मुस्लिम राष्ट्रों ने पैगंबर पर बीजेपी नेता नूपुर शर्मा और नवीन जिन्दल की टिप्पणियों पर कड़े गुस्से का इजहार किया था।
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सूत्रों ने कहा कि दरअसल, जब कतर में नियुक्त राजदूत दीपक मित्तल और अन्य देशों में भी राजदूतों ने बयान देने वाले बीजेपी नेताओं को फ्रिंज एलीमेंट्स (शरारती लोग) बताया तो वो बात मूल पत्र में शामिल नहीं थी। दिल्ली में विदेश मंत्रालय से फोन पर इन राजदूतों से बातचीत में नूपुर और नवीन को मौखिक रूप से फ्रिंज एलीमेंट्स बोला गया था। लेकिन मुस्लिम देशों में भारतीय दूतावासों ने जब बयान जारी किया तो उसमें फ्रिंज एलीमेंट्स शब्द लिखा गया था। यानी नई दिल्ली ने इस शब्द को वहां जारी होने वाले बयानों के लिए नहीं बोला था, बल्कि वो नूपुर और नवीन के बयानों के संदर्भ में कहा गया शब्द था। लेकिन जब दोहा और कुवैत में दूतावासों ने प्रेस बयान जारी किया तो "गलती से" शब्द फ्रिंज एलीमेंट्स का इस्तेमाल किया।
"फ्रिंज एलिमेंट्स" शब्द ने विदेश मंत्रालय के साथ-साथ उन देशों के अधिकारियों के बीच घबराहट पैदा कर दी थी, जिन्होंने टिप्पणियों के खिलाफ विरोध दर्ज कराया था। क्योंकि नूपुर और नवीन जिन्दल बीजेपी के प्रमुख नेता थे। एक अधिकारी ने स्वीकार किया, कि शुरुआती प्रेस बयानों ने उन्हें फ्रिंज तत्वों के रूप में गलत तरीके से पेश किया गया। उसने कहा कि कुल इरादा यह बताना था कि उन्होंने जो विचार व्यक्त किए थे, वे फ्रिंज के विचार थे, सरकार या पार्टी के नहीं।
कतर और कुवैत में भारतीय राजदूतों को तलब किए जाने के कुछ घंटे बाद रविवार को ओआईसी देशों में मिशन के सभी प्रमुखों (एचओएम) को छह-सूत्रीय ज्ञापन भेजा गया था। इसे विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने मंजूरी दी थी और इस विदेश मंत्रालय के गल्फ डिवीजन ने भेजा था, इस ज्ञापन की एक प्रति द हिंदू ने देखी है। उस ज्ञापन में यह भी कहा गया था कि उन्हें इस मुद्दे पर घटनाक्रम की निगरानी करने और उसे तुरंत नई दिल्ली को रिपोर्ट करने को कहा गया था।  
इसमें उन्हें एक बयान का ड्राफ्ट तैयार करने की भी सलाह दी गई, जब उन्हें मेजबान सरकार द्वारा बुलाया जाए तो वे क्या-क्या बात रखेंगे। इन लोगों से कहा गया था कि वो उन देशों को बताएं कि भारत सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है। एक धार्मिक व्यक्तित्व को बदनाम करने वाली टिप्पणी सरकार या बीजेपी का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। टिप्पणी करने वालों के खिलाफ "कड़ी कार्रवाई" की गई है। बीजेपी ने इन्हीं बिंदुओं को दोहराते हुए अपनी प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी।

इसके अलावा, सरकार ने एचओएम से अपने मेजबानों को सावधान करने के लिए कहा कि "निहित स्वार्थ" जो द्विपक्षीय संबंधों के खिलाफ हैं, लोगों को "उकसाने" के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। दरअसल, यह इशारा ओआईसी सदस्य पाकिस्तान की तरफ था।
मंगलवार को इस्लामाबाद में, पाकिस्तान के विदेश सचिव सोहेल महमूद ने सभी ओआईसी राजदूतों से मुलाकात की और "उन्हें भारत की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के दो वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा अत्यधिक अपमानजनक टिप्पणियों के संबंध में घटनाक्रम से अवगत कराया। इस घटनाक्रम से साफ हो गया कि पाकिस्तान इस मुद्दे को आगे बढ़ाने का इरादा रखता है। 
कई अधिकारियों ने द हिंदू को बताया कि विदेश मंत्रालय शनिवार शाम से ही डैमेज कंट्रोल मोड में चला गया था। क्योंकि उस दिन उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के साथ आने वाले दल को बताया गया था कि उपराष्ट्रपति का भोज स्थगित किया जा रहा था। उपराष्ट्रपति उस समय सेनेगल से रास्ते में थे। कतर के डिप्टी अमीर ने यह भोज रखा था।
बहरहाल, रविवार की सुबह खतरे की घंटी बज गई। जब कतर के विदेश मंत्रालय ने भारतीय राजदूत दीपक मित्तल को एक कड़ा निर्देश देने और इस मामले में भारत सरकार से "सार्वजनिक माफी" की मांग करने के लिए बुलाया। यह सब घटनाक्रम जब हो रहा था तो उपराष्ट्रपति दोहा पहुंच चुके थे।
पूर्व राजदूत विवेक काटजू ने कहा, मेरी याद में किसी नेता के साथ ऐसा अपमान कभी नहीं हुआ। विदेश मंत्री के नेतृत्व में विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी हमेशा यह तय करना है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कभी भी विदेशी धरती पर शर्मिंदा न हों।

विदेश मंत्रालय के लिए एक और बड़ी चिंता ईरानी विदेश मंत्री होसैन अमीरबदोल्लाहियन की यात्रा थी, जो तीन दिवसीय, तीन-शहर के दौरे के लिए मंगलवार को दिल्ली पहुंचे, जो पिछले साल चुनावों के बाद उनकी पहली भारत यात्रा हैं। ईरान ने भी पैगंबर पर टिप्पणी को लेकर भारत से विरोध जताया था।

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अधिकारियों के अनुसार, ओआईसी को विशेष रूप से भारत "विरोधी" के रूप में देखा जाता है, भले ही पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 2019 में संयुक्त अरब अमीरात में ओआईसी विदेश मंत्री के सम्मेलन को संबोधित किया था। 
पिछले कुछ महीनों में, OIC विशेष रूप से भारत में कई घटनाक्रमों की आलोचना करता रहा है, जिसमें हिजाब प्रतिबंध विवाद, सांप्रदायिक हिंसा, जम्मू और कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया और टेरर फंडिंग मामले में यासीन मलिक को दी गई आजीवन कारावास की सजा शामिल है। लगभग इन्हीं मुद्दों पर पाकिस्तान के बयान भी आते रहे हैं। इस तरह ओआईसी के बयानों में पाकिस्तान का पक्ष दिखता था।

बहरहाल, जिन 15 देशों ने पैगंबर पर टिप्पणी के लिए भारत की आलोचना की, उसमें अधिकांश ओआईसी के सदस्य हैं। कुछ खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य हैं। इस तरह पूरा माहौल भारत के विरोध का बना हुआ है।
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