अफगानिस्तान में अमेरिकी प्रभाव को लेकर ग्लोबल तनाव बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा बगराम एयरबेस को वापस हासिल करने की मांग के खिलाफ भारत ने तालिबान, पाकिस्तान, चीन और रूस जैसे देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विरोध जताया है। यह असामान्य गठबंधन मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशंस ऑन अफगानिस्तान की सातवीं बैठक में सामने आया, जहां सभी पक्षों ने संयुक्त बयान जारी कर विदेशी सैन्य तैनाती को क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा बताया। इस बीच तालिबान सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल भारत आ गया है।
मॉस्को बैठक में अफगान प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने किया, जो पहली बार पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुए। यह घटनाक्रम तालिबान विदेश मंत्री के ऐतिहासिक भारत दौरे से ठीक पहले हुआ है, जो 9 से 16 अक्टूबर तक नई दिल्ली में रहेंगे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1988 (2011) के तहत मुत्तकी जैसे तालिबान नेताओं पर प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने इस यात्रा को मंजूरी दी है।

ट्रंप की मांग और तालिबान का सख्त जवाब 

ट्रंप ने हाल ही में बगराम एयरबेस को अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बताते हुए इसकी वापसी की मांग की। 18 सितंबर को ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीयर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा, "हम इसे (बगराम) वापस हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। हमने इसे तालिबान को मुफ्त में दे दिया। हम वह बेस वापस चाहते हैं।" 20 सितंबर को ट्रुथ सोशल पर पोस्ट करते हुए उन्होंने चेतावनी दी थी, "अगर अफगानिस्तान बगराम एयरबेस को उसके बनाने वाले अमेरिका को वापस नहीं देता, तो तालिबान और अफगानिस्तान के लिए बुरी चीजें होने वाली हैं!"
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बगराम एयरबेस काबुल से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित है। यह अफगानिस्तान के दुर्गम पर्वतीय इलाके में दुर्लभ कंक्रीट रनवे वाला हवाई अड्डा है। यहां दो रनवे हैं। एक 3.6 किलोमीटर लंबा और दूसरा 3 किलोमीटर लंबा- जो बड़े सैन्य विमानों के लिए उपयुक्त हैं। 2001 के बाद अमेरिका का 'आतंक के खिलाफ युद्ध' का प्रमुख केंद्र रहा यह बेस 2020 में ट्रंप-तालिबान समझौते के बाद 2021 में अमेरिकी वापसी के साथ तालिबान के हाथों में चला गया। ट्रंप इसे चीन के निकट होने के कारण रणनीतिक मानते हैं।
इस मांग पर तालिबान ने सख्ती से खारिज कर दिया। तालिबान के मुख्य प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा, "अफगान कभी भी अपने देश की जमीन को किसी को सौंपने की अनुमति नहीं देंगे, किसी भी हाल में।"

मॉस्को बैठक का संयुक्त बयान: भारत की असामान्य भूमिका 

मॉस्को बैठक में भारत, अफगानिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के विशेष प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बेलारूस अतिथि के रूप में शामिल हुआ। संयुक्त बयान में बगराम का नाम लिए बिना स्पष्ट रूप से कहा गया, "वे (स्टेकहोल्डर्स) अफगानिस्तान और पड़ोसी देशों में सैन्य बुनियादी ढांचे की तैनाती की कोशिशों को नामंजूर करते हैं, क्योंकि यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के  लिए ज़रूरी है।"
बयान में अफगानिस्तान को स्वतंत्र, एकजुट और शांतिपूर्ण राष्ट्र बनाने के लिए अटल समर्थन दोहराया गया। आतंकवाद-रोधी सहयोग पर जोर देते हुए कहा गया, "वे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर आतंकवाद-रोधी सहयोग को मजबूत करने का आह्वान करते हैं। उन्होंने जोर दिया कि अफगानिस्तान को आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए व्यापक उपाय करने में समर्थन दिया जाना चाहिए, ताकि अफगान धरती का उपयोग पड़ोसी देशों और उससे आगे की सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में न हो। पक्षों ने रेखांकित किया कि आतंकवाद अफगानिस्तान, क्षेत्र और व्यापक विश्व की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।"
आर्थिक एकीकरण और मानवीय सहायता पर बयान में कहा गया कि अफगानिस्तान को क्षेत्रीय देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ व्यापार, निवेश और विकास परियोजनाओं में शामिल किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, कृषि और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में प्रगति पर जोर दिया गया। साथ ही, मानवीय सहायता को राजनीतिकरण करने की कोशिशों का विरोध किया गया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आपातकालीन सहायता बढ़ाने की अपील की गई।

भारत ने एक तरह से अमेरिका को दी चुनौती

भारत ने इस बयान में हिस्सा लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति की पहल पर अफगान मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से चुनौती दी है, जो दुर्लभ है। भारत ने तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता न देने के बावजूद अफगानिस्तान को मानवीय और विकास सहायता प्रदान की है। विशेषज्ञों के अनुसार, बयान का 'अफगानिस्तान से पड़ोसी देशों को खतरा' वाला हिस्सा पाकिस्तान के लिए संदेश है, जबकि क्षेत्रीय कनेक्टिविटी का जिक्र ईरान के चाबहार बंदरगाह के लिए अमेरिकी प्रतिबंध छूट की मांग को इंगित करता है, जिसका भारत अफगान पहुंच के लिए उपयोग करता है।

भारत का अफगानिस्तान के लिए नरम रुख क्यों 

यह संयुक्त रुख अमेरिका की अफगानिस्तान में पुन: संलग्नता के खिलाफ क्षेत्रीय एकजुटता को बताता है, जो ट्रंप की विदेश नीति के लिए चुनौती पैदा कर रहा है। यदि अमेरिका-तालिबान तनाव बढ़ा, तो क्षेत्रीय शांति को खतरा हो सकता है। भारत के लिए यह कदम आतंकवाद रोकथाम और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है। मुत्तकी के दौरे से भारत-तालिबान संबंधों में नरमी के संकेत मिल रहे हैं, जो भारत की क्षेत्रीय प्रभावशाली भूमिका को मजबूत कर सकता है।