loader

पटेल ने कहा, प्रकाशस्तंभ हैं नेहरू, वही हो सकते हैं नेता

सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति स्थापित करने के पीछे भारतीय जनता पार्टी की सोची-समझी रणनीति है। वह ऐसी धारणा फैलाना चाहती है, जिससे यह लगे कि नेहरू के राज में पटेल की घोर उपेक्षा हुई और मोदी उस लौहपुरुष को न्याय दिलवाएँगे। इसके साथ ही बीजेपी पटेल की विरासत को हथियाना चाहती है। वह यह स्थापित करना चाहती है कि सरदार दरअसल आरएसएस और बीजेपी के नज़दीक थे। ज़ाहिर है, इसके राजनीतिक फ़ायदे हैं। पर इतिहास खँगालने से लगता है कि सच यह नहीं है। मोदी और बीजेपी का झूठ इतिहास के सिर्फ़ कुछ पन्नों को पढ़ने से साफ़ हो जाता है। 

पटेल की चिट्ठी

‘नेहरू अभिनंदन ग्रंथ - अ बर्थडे बुक’ में नेहरू के नाम पटेल की लिखी एक चिट्ठी छपी थी। मौक़ा था नेहरू के 60वें जन्मदिन पर आयोजित एक समारोह का। 14 अक्टूबर 1949 को लिखी चिट्ठी पटेल और नेहरू के रिश्तों पर रोशनी डालती है। इससे यह भी साफ़ होता है कि पटेल देश के पहले प्रधानमन्त्री के बारे में क्या सोचते थे। जो लोग यह साबित करने में लगे हैं कि नेहरू और पटेल में नहीं बनती थी या यह कि पटेल की उपेक्षा हुई और कांग्रेस या सरकार में उन्हें वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे हक़दार थे, यह उनके लिए एक जवाब हो सकता है।
पटेल ने लिखा: एक साथ इतनी नज़दीकी से काम करने और कई क्षेत्रों में एकसाथ काम करने की वज़ह से हम एक-दूसरे को बहुत ही पसन्द करते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता गया, एक-दूसरे के प्रति हमारा स्नेह बढ़ता गया, लोगों के लिए यह समझना असम्भव है कि जब हम अलग रहते हैं और समस्याओं को एकसाथ बैठ कर निपटारा नहीं कर रहे होते हैं, तब एक-दूसरे को कितना याद करते हैं। 
Is BJP telling lies on Nehru-Patel relations? - Satya Hindi
पटेल इसी ख़त में आगे लिखते हैं, ‘आज़ादी की सुबह के ठीक पहले उन्हें हमारा मुख्य प्रकाश स्तंभ होना चाहिए, और स्वतन्त्रता मिलने के बाद जो एक-के-बाद-एक समस्याएँ आती गईं, एेसे में वे ही हमारी टुकड़ी की अगुवाई कर सकते हैं।'
पटेल ने आगे लिखा, ‘मुझसे बेहतर कोई नहीं जान सकता कि स्वतन्त्रता मिलने के बाद से अब तक के दो साल के अस्तित्व में उन्होंने अपने देश के लिए कितनी कड़ी मेहनत की है।'

नेहरू-पटेल मतभेद

ऐसा नहीं है कि नेहरू और पटेल में मतभेद नहीं थे। शंकर घोष की पुस्तक ‘नेहरू - अ बायोग्रफ़ी’ में इसकी झलक मिलती है। घोष लिखते हैं कि कश्मीर, हिंदू-मुसलिम एकता और दूसरे कई मुद्दों पर नेहरू और उनके गृह मंत्री के विचार नहीं मिलते थे। पर अंत में पटेल अपने प्रधानमंत्री की बात मान लिया करते थे।'शंकर घोष ने अपनी किताब में लिखा कि दोनों के बीच मतभेद इस कदर बढ़ गए कि दोनों ने महात्मा गाँधी से अलग-अलग मिल कर शिकायतें कीं। गाँधी ने उस समय तक भारत में मौजूद लॉर्ड माउंटबेटन से उन दोनों को समझाने को कहा।
Is BJP telling lies on Nehru-Patel relations? - Satya Hindi
घोष के मुताबिक़, इस पर पटेल काफ़ी गुस्सा हुए। उन्होंने कहा, ‘गाँधी सठिया गए हैं। वे मुझे और जवाहिर के बीच माउंटबेटन को भला क्यों लाना चाहते हैं?’ घोष के अनुसार यह तय हुआ कि गाँधी शाम की प्रार्थना के बाद दोनों नेताओं से एकसाथ मिलेंगे। पर ऐसा न हो सका। उसी दिन गाँधी की हत्या कर दी गई। जब दोनों नेता गाँधी की मृत्यु के बाद उस जगह पहुँचे तो माउंटबेटन ने सिर्फ़ इतना कहा, ‘गाँधी चाहते थे कि आप दोनों मिल कर काम करें।’ घोष लिखते हैं कि इसके बाद दोनों नेता रोते हुए एक-दूसरे से लिपट गए।

पटेल की दावेदारी

इसी तरह बीजेपी नेहरू की विरासत को नकारने और कांग्रेस को घेरने के लिए कहती है कि प्रधानमन्त्री पद के असली दावेदार पटेल ही थे, नेहरू नहीं। वह तर्क देती है कि 16 में से 15 प्रदेश कांग्रेस समितियों ने पटेल के पक्ष में वोट दिया था। बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने कुछ दिनों पहले ही यह मामला एक बार फिर उठाया। पर सवाल यह है कि क्या प्रधानमन्त्री का चुनाव प्रदेश कांग्रेस समितियाँ करती हैं? क्या नरेंद्र मोदी को उनकी पार्टी की प्रदेश समितियों ने प्रधानमन्त्री चुना? नहीं।

Is BJP telling lies on Nehru-Patel relations? - Satya Hindi
इसी तरह बीजेपी एक और तर्क देती है कि 1946  में कांग्रेस का अध्यक्ष पद अधिक अहम हो गया। यह तय हुआ कि आज़ादी मिलते समय जो अध्यक्ष होगा, वही प्रधानमन्त्री बनेगा। पटेल अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना चाहते थे, पर गाँधी के कहने पर चुप रहे।बीजेपी यह बात भूल जाती है कि आज़ादी जिस समय मिली, कांग्रेस के अध्यक्ष जेपी कृपलानी थे। उनके प्रधानमंत्री बनाने की कोई चर्चा तक नहीं हुई थी।

पटेल की विरासत

सरदार की विरासत को हथियाने की कोशिश में लगी बीजेपी यह तर्क देती है कि हिंदू-मुसलिम एकता पर उनके विचार संघ से मिलते हैं। पर गृह मंत्री पटेल ने गाँधीजी की हत्या के बाद आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया था।  उन्होंने 18 जुलाई 1948 को श्यामाप्रसाद मुखर्जी को एक चिट्ठी लिखी। 

पटेल ने लिखा, ‘दोनों संगठनों, आरएसएस और हिंदू महासभा, ख़ास कर संघ के क्रियाकलापों की वज़ह से देश में ऐसा ज़हरीला वातावरण बना, जिसमें इतनी घिनौनी त्रासदी हुई… आरएसएस की गतिविधियाँ सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए स्पष्ट रूप से घातक हैं।’
मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने बीते दिनों एक लेख में लिखा, ‘यह अजीब विडम्बना है कि पटेल की विरासत पर बीजेपी दावा कर रही है, जबकि वे जीवन भर कांग्रेसी रहे।’

बाबरी मसजिद और पटेल

बीजेपी जिस समय पटेल की मूर्ति लगवा रही है, उसी समय बाबरी मसजिद पर खुलेआम सुप्रीम कोर्ट को धमका भी रही है।  पटेल राम मंदिर-बाबरी मसज़िद मुद्दे पर बीजेपी या आरएसएस के साथ नहीं थे। साल 1949 में जब कुछ हिंदुओं ने बाबरी मसज़िद के अंदर राम की मूर्ति रख दी, पटेल काफ़ी गुस्सा हुए थे। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमन्त्री गोविंद बल्लभ पंत को कड़ी चिट्ठी लिख कर चेतावनी देते हुए कहा था,  ‘इस तरह के विवाद का निपटारा बल प्रयोग से करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है।’

इस्तीफ़े की पेशकश

महात्मा गाँधी की हत्या के बाद पटेल इतने मर्माहत हुए कि उन्होंने पद से हटने की इच्छा जताई और इस बाबत नेहरू को एक चिट्ठी भी लिखी।नेहरू ने इसकी भनक लगते ही एक ख़त पटेल के नाम लिखा। 
नेहरू ने लिखा, ‘जैसा कि मैंने आपको अपनी पहली चिट्ठी में लिखा था, कई मुद्दों पर हमारे विचार और स्वभाव नहीं मिलने के बावजूद हम लोगों को एकसाथ ही काम करना चाहिए जैसा कि हम अब तक करते आए हैं।'
उन्होंने आगे लिखा, 'बापू की हत्या के बाद की इस संकट की घड़ी में मेरा मानना है कि मेरा और आपका भी यह कर्तव्य है कि हम लोग मित्र और सहकर्मी के रूप में काम करते रहें।’
यह साफ़ है कि नेहरू किसी क़ीमत पर अपने गृह मन्त्री को पद से हटने देना नहीं चाहते थे। यह भी ज़ाहिर है कि वे अपने दोस्त को खोना नहीं चाहते थे। वे मानते थे कि दोनों के बीच कई मामलों में मतभेद हैं, फिर भी वे उन्हें साथ लेकर चलना चाहते थे। यह बीजेपी के इस आरोप को बिल्कुल ध्वस्त करती है कि नेहरू पटेल को नापसन्द करते थे।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें