जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार 14 जुलाई की सुबह श्रीनगर के मज़ार-ए-शुहदा (शहीद स्मारक) में 13 जुलाई 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए दीवार फांदकर प्रवेश किया। यह घटना तब हुई जब सुरक्षा बलों ने उन्हें और नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के अन्य नेताओं को स्मारक में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश की। उमर अब्दुल्ला ने इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर साझा किया, जिसमें पुलिस कर्मियों को उन्हें शारीरिक रूप से रोकते हुए देखा जा सकता है। इससे पहले उन्हें रविवार को नजरबंद कर दिया गया था। एक चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री को रोकने की कोशिश सफल नहीं हो पाई।
उमर अब्दुल्ला ने X पर लिखा, "यह वह शारीरिक झड़प थी जिसका मुझे सामना करना पड़ा, लेकिन मैं मजबूत इरादों वाला हूं और मुझे रोका नहीं जा सका। मैं कुछ भी गैरकानूनी या अवैध नहीं कर रहा था। वास्तव में, इन 'कानून के रक्षकों' को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे हमें फातिहा पढ़ने से रोकने के लिए किस कानून का इस्तेमाल कर रहे थे।" उमर अब्दुल्ला ने जिन शहीदों की मज़ार पर फातिहा पढ़ा, वहां पर हर साल लोग 13 जुलाई को जाकर खिराजे अकीदत पेश करते हैं।

उमर और अन्य नेताओं को नजरबंद किया

यह विवाद तब शुरू हुआ जब रविवार, 13 जुलाई को, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने शहीद दिवस के अवसर पर उमर अब्दुल्ला सहित कई राजनीतिक नेताओं को उनके घरों में नजरबंद कर दिया था, ताकि वे शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि देने न जा सकें। उमर ने इसे "गैर-निर्वाचित सरकार की तानाशाही" (यानी एलजी) करार देते हुए प्रशासन की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, "13 जुलाई का नरसंहार हमारा जालियांवाला बाग है। जिन लोगों ने अपनी जान दी, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी। यह शर्मनाक है कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने वाले इन सच्चे नायकों को केवल इसलिए खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा है क्योंकि वे मुसलमान थे।"

1931 की घटना डोगरा शासक से जुड़ी है

सोमवार सुबह, उमर अब्दुल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला, उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी, और सलाहकार नासिर असलम वानी सहित नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं ने श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में स्थित मज़ार-ए-शुहदा की ओर काफिले के साथ रुख किया। हालांकि, स्मारक के पास पहुंचने पर सुरक्षा बलों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। उमर ने नौहट्टा चौक से पैदल चलकर और फिर स्मारक की दीवार फांदकर अंदर प्रवेश किया। उन्होंने वहां 1931 में डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह की सेना द्वारा मारे गए 22 कश्मीरी प्रदर्शनकारियों को फातिहा पढ़कर और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दी।

मैं रुकने वाला नहींः उमर

उमर ने इस घटना के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा, "मैंने किसी को पहले से सूचित नहीं किया था क्योंकि कल मुझे नजरबंद कर दिया गया था। उन्होंने नौहट्टा चौक पर बंकर लगाए, गेट बंद किए, और मुझे शारीरिक रूप से रोकने की कोशिश की, लेकिन मैं आज (14 जुलाई) रुकने वाला नहीं था।" उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्थानीय समाचार पत्रों ने इस नजरबंदी की खबर को दबा दिया, और इसे "कायरता" करार देते हुए कहा, "मुझे उम्मीद है कि उन्हें इसके लिए मिला लिफाफा इसके लायक था।"
उमर अब्दुल्ला ने प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है कि चुने हए प्रतिनिधियों को इस तरह रोका जा रहा है। उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी ने भी इस घटना की निंदा की और कहा, "मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों को बंद करना लोकतंत्र पर हमला है।" उन्होंने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग भी दोहराई।

शहीद दिवस को केंद्र ने अवकाश सूची से हटाया

उल्लेखनीय है कि 13 जुलाई को पहले जम्मू-कश्मीर में सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता था, लेकिन 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद, इसे आधिकारिक अवकाशों की सूची से हटा दिया गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस अवकाश को बहाल करने की मांग की है।

पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती का बयान

पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि जिस दिन आप हमारे नायकों को अपना मान लेंगे, ठीक वैसे ही जैसे कश्मीरियों ने महात्मा गांधी से लेकर भगत सिंह तक को अपना माना है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार कहा था, जिस दिन हमारे शहीदों को नायक मान लिया जाएगा, "दिलों की दूरी" सचमुच खत्म हो जाएगी। जब आप शहीदों के कब्रिस्तान की घेराबंदी करते हैं, लोगों को मज़ार-ए-शुहदा जाने से रोकने के लिए उन्हें उनके घरों में बंद कर देते हैं, तो यह बहुत कुछ बताता है। 
महबूबा ने कहा, 13 जुलाई हमारे उन शहीदों की याद है जो देशभर के अनगिनत अन्य लोगों की तरह अत्याचार के खिलाफ उठ खड़े हुए। वे हमेशा हमारे नायक रहेंगे। अपनी प्रतिगामी नीतियों को जारी रखते हुए, हमारी पार्टी के कई नेता जैसे खुर्शीद आलम, ज़ोहैब मीर, हामिद कोहशीन, आरिफ लियागरू, सारा नईमा, तबस्सुम, बशारत नसीम और अन्य जो अपने घरों से चुपके से बाहर निकलने में कामयाब रहे, उन्हें पुलिस थानों में हिरासत में लिया गया है। वे मजार-ए-शुदा की ओर जा रहे थे। ऐसा लगता है कि हम उसी दमनकारी समय में वापस जा रहे हैं जिसके खिलाफ हमारे 13 जुलाई के शहीदों ने लड़ाई लड़ी थी।
यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो है, और कई लोग उमर अब्दुल्ला के इस साहसिक कदम की सराहना कर रहे हैं। जबकि कुछ इसे राजनीतिक नाटक का हिस्सा मान रहे हैं। इस विवाद ने एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में प्रशासन और निर्वाचित नेताओं के बीच तनाव को उजागर कर दिया है।