Journalist Abhisar Sharma Assam Police: सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार अभिसार शर्मा की गिरफ्तारी पर चार हफ्ते की रोक लगा दी है। हालांकि कोर्ट ने असम पुलिस की एफआईआर को रद्द करने से मना कर दिया। यह मामला प्रेस की आजादी से जुड़ा है। हालात बदतर हैं।
हिमंता बिस्वा सरमा और पत्रकार अभिसार शर्मा
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 28 अगस्त को पत्रकार और यूट्यूबर अभिसार शर्मा की गिरफ्तारी पर चार सप्ताह तक रोक लगा दी। असम पुलिस द्वारा दर्ज की गई एक FIR के मामले में अंतरिम गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की गई है। यह FIR असम सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले एक वीडियो को लेकर दर्ज की गई थी। हालांकि, कोर्ट ने FIR को रद्द करने की शर्मा की याचिका को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट में इस मामले को उठाने का निर्देश दिया।
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा, "हम आपको सुरक्षा देंगे, लेकिन आप हाई कोर्ट को क्यों दरकिनार कर रहे हैं? हम FIR को चुनौती देने की याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। हम याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट में जाने के लिए चार सप्ताह की अंतरिम सुरक्षा प्रदान करते हैं।"
FIR गुवाहाटी क्राइम ब्रांच पुलिस स्टेशन में आलोक बरुआ नामक व्यक्ति की शिकायत पर दर्ज की गई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया कि शर्मा द्वारा 8 अगस्त को अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड किए गए एक वीडियो से साम्प्रदायिक तनाव और राज्य अधिकारियों के प्रति अविश्वास पैदा हो सकता है। यह वीडियो असम सरकार द्वारा 3,000 बीघा आदिवासी भूमि को निजी कंपनी महाबल सीमेंट को आवंटित करने के फैसले की आलोचना करता था, जिस पर गुवाहाटी हाई कोर्ट में भी सुनवाई हुई थी।
शर्मा ने अपनी याचिका में कहा कि यह FIR "पत्रकारिता स्वतंत्रता और असहमति को दबाने के लिए धारा 152 BNS का दुरुपयोग" है। उन्होंने कहा कि उनका वीडियो असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के साम्प्रदायिक बयानों पर आधारित था, जो सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं। शर्मा ने यह भी तर्क दिया कि सरकार की नीतियों की आलोचना को देश की एकता और अखंडता पर हमला नहीं माना जा सकता।
शर्मा ने अपने यूट्यूब चैनल, जिसके नौ मिलियन सब्सक्राइबर हैं, पर पोस्ट किए गए वीडियो में असम सरकार की कथित साम्प्रदायिक राजनीति और भूमि आवंटन नीतियों की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि उनकी टिप्पणियां हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था को भड़काने वाली नहीं थीं, बल्कि यह पत्रकारिता स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का प्रयास था।
मोदी सरकार को राष्ट्रद्रोह की धारा लगाने पर नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने शर्मा की याचिका में शामिल धारा 152 BNS की वैधता को चुनौती देने वाले हिस्से पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। यह धारा देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्यों से संबंधित है। कोर्ट ने इस मामले को अन्य समान याचिकाओं के साथ जोड़ दिया, जो इस प्रावधान को औपनिवेशिक राजद्रोह कानून (धारा 124A IPC) का आधार मानते हैं।अभिसार शर्मा के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि धारा 152 BNS एक "सर्व-समावेशी" प्रावधान बन गया है, जिसका इस्तेमाल सरकार के आलोचकों के खिलाफ दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान असंवैधानिक है और इसे निरस्त किया जाना चाहिए।
इस मामले की अगली सुनवाई गुवाहाटी हाई कोर्ट में होगी, जहां शर्मा FIR को रद्द करने की मांग करेंगे। यह मामला पत्रकारिता स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के व्यापक मुद्दों को उठाता है, खासकर तब जब सरकार की नीतियों की आलोचना को "राष्ट्र-विरोधी" करार देने की कोशिश की जा रही है। इस तरह के आरोप उन सारे पत्रकारों पर लगाए जा रहे हैं जो सरकार की आलोचन करते हैं। गोदी मीडिया जब अपनी जिम्मेदारी से भाग खड़ा हुआ है तो ऐसे में द वायर, अभिसार शर्मा, रविश कुमार, सत्य हिन्दी चैनल समेत तमाम स्वतंत्र संस्थान सरकार के काम पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं।