बाद में शुद्धिपत्र में जिन लाइनों को संपादन करके जोड़ा गया, उनमें है- “इसलिए यह स्पष्ट है कि प्रस्तावित विधेयक औकाफ के लाभ के लिए किया गया काम नहीं है, बल्कि इस देश में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के अधिकारों को व्यवस्थित रूप से कमजोर करने के वर्तमान सरकार के सुसंगत राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक काम है।”
असहमति नोट में ओवैसी का आरोप था कि "सनातन संस्था और हिंदू जनजागृति समिति जैसे चरमपंथी संगठनों को विधेयक पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए मंच प्रदान करके समिति की कार्यवाही की पवित्रता से समझौता किया जा रहा है", को भी हटा दिया गया, बाद में उसे नहीं जोड़ा गया।
इसी तरह डीएमके के ए. राजा और मोहम्मद अब्दुल्ला द्वारा प्रस्तुत संयुक्त असहमति नोटों का भी संपादन किया गया था। ऐसा माना जा रहा है कि जेपीसी रिपोर्ट में जो पंक्तियां हैं कि "यह पूरी तरह से असंवैधानिक है, वास्तविक मुद्दों को संबोधित करने में विफल है, प्रकृति में विभाजनकारी है और हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट कर सकती है" को संपादित किया गया। लेकिन बाद में इसे जोड़ दिया गया। लेकिन इनकी इन लाइनों को नहीं जोड़ा गया- जेपीसी का कामकाज ‘सबसे अलोकतांत्रिक तरीके’ से चल रहा है।‘