Kanwar Yatra Route Eateries Controversy: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित ढाबा/होटलों को मालिक की जानकारी क्यूआर कोड के जरिए प्रदर्शित करने के अनिवार्य आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इसकी जरूरत क्यों पड़ी, जानिए।
कांवड़ यात्रा रूट का फाइल फोटो
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने की दुकानों और ढाबों को अपने मालिकों की जानकारी क्यूआर कोड के जरिए प्रदर्शित करने के निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता, प्रोफेसर अपूर्वानंद ने दावा किया है कि इस निर्देश का मकसद धार्मिक आधार पर दुकानदारों की प्रोफाइलिंग करना है, जो पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के खिलाफ है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि क्यूआर कोड प्रदर्शन का यह आदेश दुकानदारों और कर्मचारियों की पहचान को सार्वजनिक करने के लिए मजबूर करता है। यह गोपनीयता के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 17 के तहत समानता, गैर-भेदभाव और जीवन की गरिमा जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ता ने इस निर्देश को रद्द करने और सभी संबंधित आदेशों पर रोक लगाने की मांग की है।
सुप्रीम कोर्ट का पिछला आदेश
पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई 2024 को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों के इसी तरह के निर्देशों पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जिसमें दुकानों को मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि दुकानदारों को केवल यह प्रदर्शित करना होगा कि वे शाकाहारी या मांसाहारी भोजन परोस रहे हैं, न कि उनकी धार्मिक या जातिगत पहचान।सांप्रदायिक तनाव के बढ़ने की आशंका जताई
याचिका में कहा गया है कि नया क्यूआर कोड निर्देश पिछले साल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार करने का प्रयास है। यह दावा किया गया है कि यह आदेश सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाएगा और अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुस्लिम दुकानदारों के खिलाफ भेदभाव को भी बढ़ा देगा।कांवड़ यात्रा, जो हर साल सावन के महीने में लाखों शिव भक्तों द्वारा की जाती है, 11 जुलाई 2025 से शुरू हो चुकी है। इस दौरान कांवड़िए हरिद्वार, गौमुख, और गंगोत्री जैसे तीर्थ स्थलों से गंगा जल लेकर आ रहे हैं। प्रशासन का कहना है कि क्यूआर कोड सिस्टम से पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और कांवड़ियों को शुद्ध शाकाहारी भोजन उपलब्ध होगा।
हालांकि, विपक्षी दलों और कुछ सहयोगी दलों, कांग्रेस, आरजेडी, सपा और रालोद, ने इस निर्देश की आलोचना की है, इसे "सांप्रदायिक और विभाजनकारी" करार देते हुए दावा किया है कि यह मुस्लिम और अनुसूचित जाति के दुकानदारों को निशाना बनाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और दिल्ली को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 5 अगस्त को तय की गई है।
यह मामला संवैधानिक अधिकारों, गोपनीयता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों पर महत्वपूर्ण सवाल उठाता है, और सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला इस मुद्दे पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है।