आज़ादी के बाद शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा कि लाखों लोग अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के बॉर्डर्स पर आकर बैठ गए हों और हालात सरकार के क़ाबू से बाहर चले गए हों। जम्हूरियत होने के चलते इस मुल्क़ में जेपी आंदोलन से लेकर अन्ना आंदोलन तक हुए हैं, जिनमें नेताओं के अलावा आम लोगों की भी भागीदारी रही लेकिन किसान आंदोलन ने जिस तरह देश की राजधानी को चारों ओर से घेर लिया है, वैसा शायद नहीं हुआ होगा।
जब सारा हिंदुस्तान हमारा है तो खालिस्तान की बात क्यों?
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- 5 Mar, 2021

मुख्य आंदोलन स्थल सिंघु बॉर्डर पर जब आप पहुंचेंगे तो आपको पुलिस के अलावा रैपिड एक्शन फ़ोर्स के जवानों की तैनाती भी दिखेगी।
मुख्य आंदोलन स्थल सिंघु बॉर्डर पर जब आप पहुंचेंगे तो आपको पुलिस के अलावा रैपिड एक्शन फ़ोर्स के जवानों की तैनाती भी दिखेगी। लेकिन इस शांतिपूर्ण आंदोलन से पुलिस को अब तक किसी तरह की परेशानी नहीं हुई है। आंदोलन में आए लाखों लोगों में से अधिकतर पंजाब से हैं। कई स्थानीय लोगों ने सड़क पर ही छोटी-छोटी दुकानें भी सजा ली हैं। जैसे- सस्ते गर्म कपड़ों से लेकर मोबाइल चार्जर और मोजे से लेकर कुछ खाने-पीने के सामान की।
सिंघु बॉर्डर पर पुलिस के बीच से और चाय-नाश्ते के लंगर से आगे बढ़ते हुए लगभग शुरुआत में ही मंच बनाया गया है। इस मंच पर वक्ताओं को बारी-बारी से बुलाया जाता है, इसमें अधिकतर लोग पंजाब से होते हैं और स्वाभाविक रूप से उनका संबोधन पंजाबी में होता है।