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सिंघु बॉर्डर : बाबा राम सिंह का हुआ पोस्टमार्टम, आज होगा अंतिम संस्कार

सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन में बुधवार शाम को उस वक़्त बड़ी घटना हो गई जब सिख धर्म गुरू संत बाबा राम सिंह ने ख़ुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। संत बाबा राम सिंह हरियाणा के करनाल के रहने वाले थे। उन्होंने सुसाइड नोट भी छोड़ा है। जिसमें लिखा है कि वह किसानों की बेहद ख़राब हालत के कारण यह आत्मघाती क़दम उठा रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग संत बाबा राम सिंह के कीर्तन को सुनते थे। रात को संत बाबा राम सिंह का पोस्टमार्टम किया गया और गुरूवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। 

उन्होंने आगे लिखा है, ‘मैं अपने हक़ के लिए लड़ रहे किसानों का दर्द समझता हूं और सरकार उन्हें इंसाफ़ दिलाने के लिए कुछ नहीं कर रही है। जुल्म करना पाप है तो जुल्म सहना भी पाप है। मैंने ख़ुद की क़ुर्बानी देने का फ़ैसला किया है।’ 

सोनीपत के डीसीपी श्याम लाल पूनिया ने कहा है कि घटना के बाद संत बाबा राम सिंह को पानीपत के पार्क अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 65 साल के संत बाबा राम सिंह इन दिनों किसानों के आंदोलन में शामिल होने के लिए सिंघु और टिकरी बॉर्डर जाते थे। 

दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि संत बाबा राम सिंह की आत्मा को शांति मिले। उन्होंने सभी से संयम बनाए रखने की विनती की है। 

उधर, मोदी सरकार के नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली-हरियाणा, हरियाणा-राजस्थान, दिल्ली-यूपी के तमाम बॉर्डर्स पर किसान  डटे हुए हैं। किसानों ने सरकार को चेताया है कि वह उनके आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश बंद करे। किसानों ने दिल्ली-यूपी की सीमा पर पड़ने वाले चिल्ला बॉर्डर पर फिर से धरना देना शुरू कर दिया है। 

दूसरी ओर, सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर पंजाब-हरियाणा और बाक़ी राज्यों से बड़ी संख्या में किसान पहुंच रहे हैं। महिलाओं-बच्चों की भी भागीदारी बढ़ रही है। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए किसान और रेवाड़ी बॉर्डर पर राजस्थान-हरियाणा के किसान डटे हुए हैं। 

किसानों के तमाम संगठनों की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल को भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि वे सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह किसानों के सभी संगठनों को बराबर अहमियत दे और सभी से बात करे। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, कृषि मंत्रालय ने किसानों की ओर से पत्र मिलने की पुष्टि की है। 

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सरकार ने भेजा था प्रस्ताव 

सोमवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को लेकर किसानों ने अपने पत्र में कहा है कि उन्होंने इस प्रस्ताव को नकार दिया है क्योंकि इसमें वही सारी बातें हैं, जो पिछले दौर की बातचीत में हो चुकी हैं। किसान नेताओं ने कहा है कि वे बातचीत के दौरान सरकार को अपने मुद्दों के बारे में पहले ही बता चुके हैं, इसलिए वे इस प्रस्ताव का कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। 

कृषि मंत्री तोमर ने कहा था कि किसानों को लिखित में प्रस्ताव भेजा गया है और हम उनके जवाब का इंतजार कर रहे हैं जिससे आगे के दौर की बातचीत हो सके। उन्होंने फिर कहा था कि ये क़ानून किसानों की भलाई के लिए हैं। 

Kisan protest in delhi at state borders  - Satya Hindi

कड़ाके की ठंड में डटे 

किसान नेताओं ने अपने पत्र में कहा है कि सरकार इन कृषि क़ानूनों को वापस ले ले। इस बीच किसानों का आंदोलन 21 वें दिन में प्रवेश कर गया है। किसान नेताओं ने कहा है कि क़ानूनों के रद्द होने के बाद ही अब आगे की कोई बातचीत होगी। मंगलवार रात को 4.1 डिग्री में भी किसान और तमाम आंदोलनकारी बॉर्डर्स पर डटे रहे। 

किसान आंदोलन से परेशान बीजेपी और मोदी सरकार के मंत्री कृषि क़ानूनों को किसानों के हित में बताने में जुटे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को एक बार फिर कहा कि किसानों को इन क़ानूनों को लेकर गुमराह करने की साज़िश रची जा रही है। 

इस बीच, अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के छात्रों ने मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने और कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की अपील की है। 

सुनिए, किसान आंदोलन पर चर्चा- 

बीजेपी और मोदी सरकार की ओर से किसान आंदोलन के बीच देश भर में किसान चौपाल सम्मेलन किए जा रहे हैं। इन सम्मेलनों में इन क़ानूनों की ख़ूबियों के बारे में बताया जा रहा है लेकिन दूसरी ओर आंदोलन बढ़ता जा रहा है। 

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बीजेपी-मोदी सरकार मुश्किल में 

आने वाले दिन जबरदस्त ठंड के हैं। बुजुर्ग किसान, महिलाएं-बच्चे सड़कों पर बैठे हुए हैं। रात को पाला गिर रहा है और पूरी रात बाहर बैठे रहने से किसी की भी तबीयत बिगड़ने का ख़तरा है। ऐसे में बीजेपी-मोदी सरकार की मुश्किल और बढ़ती जा रही है। संगठन और सरकार किसी भी क़ीमत पर पीछे नहीं हटना चाहते लेकिन दूसरी ओर इस मामले में किसान उनसे कहीं ज़्यादा मजबूत हैं। क्योंकि किसान कहते हैं कि उन्हें छह महीने-साल भर भी बैठना पड़े तो वे आराम से बैठ जाएंगे। 

ऐसे हालात में कैसे इस मसले का हल निकलेगा कहना मुश्किल है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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