रविंदर रैना
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सज्जाद लोन
JKPC - कुपवाड़ा
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आईसी814 विमान अपहरण पर बनी नई वेब सीरीज विवादों में है। इसमें कुछ अपरहणकर्ताओं के कोडनाम को लेकर आपत्ति जताई गई। इन कोडनाम का विवाद यहाँ तक पहुँचा कि वेब सीरीज में उन अपहरणकर्ताओं के असली नाम रखने की मांग की जाने लगी। और इस विवाद के बाद अब आईसी814 विमान अपहरण की सची घटना फिर से सुर्खियों में आ गई।
उस विमान अपहरण की आतंकी घटना ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। 24 दिसंबर, 1999 को काठमांडू से नई दिल्ली जा रही इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी814 को नेपाल के काठमांडू एयरपोर्ट से उड़ान भरने के 30 मिनट बाद ही हाईजैक कर लिया गया था। यात्रियों को बंधक बना लिया गया था। विमान को पहले अमृतसर में उतारा गया। फिर फ्यूल के लिए लाहौर में उतारा गया। बाद में उसे दुबई ले जाया गया और फिर आख़िर में कंधार। लेकिन इस अपहरण की घटना के साथ आतंकियों की बड़ी साज़िश देश के अंदर मुंबई में भी चल रही थी। उस आतंकी साज़िश को नाकाम मुंबई पुलिस ने किया था। कहा जाता है कि यह दुनिया भर में किसी भी पुलिस विभाग द्वारा की गई सबसे बेहतरीन जांच में से एक थी।
महाराष्ट्र पुलिस के बड़े अफसर रहे डी शिवानंदन इस केस से जुड़े रहे थे। उन्होंने इस आतंकी साज़िश का भंडाफोड़ करने में अहम भूमिका निभाई थी। वह महाराष्ट्र के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक, मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त और मुंबई क्राइम ब्रांच के पूर्व प्रमुख हैं। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस में मुंबई पुलिस के सफल अभियान पर एक लेख लिखा है और घटनाओं को क्रमबद्ध रूप से बताया है। यह लेख उनकी आगामी पुस्तक ‘ब्रह्मास्त्र’ से संपादित अंश है। जानिए, उनके लेख का अहम अंश क्या है।
डी शिवानंदन लिखते हैं कि 24 दिसंबर, 1999 को अधिकारियों को अपहरण की जानकारी मिलते ही पूरे देश में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया था। उन्होंने लिखा है, 'उस दौरान, मैं मुंबई पुलिस में संयुक्त पुलिस आयुक्त के पद पर तैनात था और मुंबई क्राइम ब्रांच का प्रमुख था। मेरे बॉस और मुंबई पुलिस आयुक्त आर एच मेंडोंका ने मुझे घटना के बारे में बताया और पूरी क्राइम ब्रांच को हाई अलर्ट पर रखने के लिए कहा। हम सभी लोग सांस रोककर घटनाक्रम पर नज़र रख रहे थे। अपहरण के अगले ही दिन क्रिसमस का दिन था, 25 दिसंबर, मैं क्रॉफर्ड मार्केट में मुंबई पुलिस मुख्यालय में अपने कार्यालय में था, जब लगभग 11 बजे, एक अप्रत्याशित विजिटर मुझसे मिलने आया। यह महाराष्ट्र कैडर के एक आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे थे, जो उस समय रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के मुंबई कार्यालय में तैनात थे। मैं तुरंत समझ गया कि यह कोई साधारण मुलाकात नहीं थी। हेमंत करकरे ने मुझे बताया कि रॉ ने एक फ़ोन नंबर हासिल किया था जो मुंबई में था और पाकिस्तान के एक फ़ोन नंबर के साथ लगातार संपर्क में था। उन्होंने मुझे फ़ोन नंबर दिया और मैं तुरंत काम पर लग गया...।'
इसके बाद उन्होंने लिखा है कि किस तरह से अलग-अलग कई टीमें बनाई गईं। इसमें से एक टीम मोबाइल सेवा प्रदाता पर निगरानी रखने के लिए बनाई गई। उन्होंने लिखा है कि इस टीम ने बताया कि नंबर का इस्तेमाल जुहू और मलाड के बीच किया जा रहा था क्योंकि यहीं से मोबाइल टावर सिग्नल भेज रहे थे।
उन्होंने लिखा है, 'हमारी जाँच के पहले तीन दिनों में कुछ भी हासिल नहीं हुआ। अधिकारी निराश हो रहे थे और सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि भारत सरकार समय गँवा रही थी। एकमात्र जानकारी यह थी कि जो टीम फोन पर बातचीत सुन रही थी, वह कॉल के पीछे एक घरेलू जानवरों की आवाज़ सुन पा रही थी और वे एक फोन कॉल के दौरान अज़ान की आवाज़ सुन पा रहे थे… दो दिनों तक, वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व में कई अपराध शाखा टीमों ने जुहू से मलाड तक पूरे इलाके की छानबीन की। उन्होंने मस्जिद के पास स्थित हर मवेशी-शाला की जाँच की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।'
फिर उन्होंने लिखा है कि 28 दिसंबर, 1999 को शाम 6 बजे मोबाइल फोन नंबर की निगरानी कर रही निगरानी टीम को अपने सिस्टम पर अलर्ट मिला कि फोन सक्रिय है। यही वह कॉल था जिसने आतंकियों तक पहुँचने के अभियान को अंजाम तक पहुँचाया। उस फोन कॉल को लेकर उन्होंने लिखा है, 'मुंबई के रहने वाले कॉलर ने पाकिस्तान में अपने हैंडलर को फोन करके बताया था कि उसके पास नकदी खत्म हो रही है और उसे तुरंत पैसे की जरूरत है। दूसरी तरफ़ से कॉल करने वाले ने उससे कहा कि 30 मिनट तक इंतजार करो, वह व्यवस्था करके वापस कॉल करेगा। मुझे पता था कि हमें मौका मिल गया है।'
उन्होंने लिखा है कि आखिरकार 45 मिनट बाद शाम 6.45 बजे कॉल आया। उन्होंने लिखा है, 'फोन करने वाला पाकिस्तान से जैश-ए-मोहम्मद का आतंकवादी था, उसने मुंबई में मौजूद व्यक्ति से उसका ठिकाना पूछा। वह सतर्क था और उसने अपने ठिकाने के बारे में कोई जानकारी या सटीक उत्तर नहीं दिया। उसने मुंबई के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के उपनगर जोगेश्वरी (पूर्व) में कहीं होने का अस्पष्ट उत्तर दिया। इसके बाद जैश के आतंकवादी ने मुंबई में अपने सहयोगी को बताया कि उन्होंने 1 लाख रुपये का प्रबंध कर लिया है, जिसे हवाला लेनदेन के माध्यम से डिलीवर किया जाएगा। मुंबई में मौजूद व्यक्ति को पैसे लेने के लिए रात करीब 10 बजे दक्षिण मुंबई के मोहम्मद अली रोड स्थित शालीमार होटल में जाने का निर्देश दिया गया। उसे आगे बताया गया कि नीली रंग की जींस और धारीदार शर्ट पहने एक व्यक्ति होटल में उससे मिलेगा और पैसे सौंप देगा। इसके बाद कॉल डिस्कनेक्ट हो गई।'
इसके बाद वह लिखते हैं, '
“
...मैंने छह टीमें बनाईं, जिनमें एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और एक कनिष्ठ था। उन सभी को मोहम्मद अली रोड पर जाने और शालीमार होटल के आसपास निगरानी रखने का निर्देश दिया गया था। उनके निर्देश स्पष्ट थे, उन्हें उस व्यक्ति का पीछा करना था जो पैसे लेने आएगा।
डी शिवानंदन, मुंबई क्राइम ब्रांच के पूर्व प्रमुख
उन्होंने लिखा है कि कैसे टीमें तैनात थीं, रात करीब 10 बजे एक व्यक्ति वहाँ आया और प्रवेश द्वार पर नीली जींस और धारीदार शर्ट पहने एक व्यक्ति ने उसका स्वागत किया। उन्होंने लिखा है, 'होटल के अंदर कुछ पल बिताने के बाद, दोनों बाहर आए, नीली जींस पहने व्यक्ति ने टैक्सी ली और दक्षिण मुंबई की दिशा में चला गया। अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि उन्हें पैसे लेने वाले व्यक्ति का पीछा करना है।'
उन्होंने लिखा है कि पैसे ले जा रहे व्यक्ति का पीछा किया गया। उसने भी एक टैक्सी ली और चला गया। तुरंत अधिकारियों ने निजी कारों में उसका पीछा करना शुरू कर दिया और यह सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षित दूरी बनाए रखी कि किसी को संदेह न हो।
उन्होंने लिखा है, 'टैक्सी मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पहुँची, जहाँ यात्री उतरा और रेलवे स्टेशन में चला गया। अधिकारी भी तेजी से रेलवे स्टेशन के अंदर उसके पीछे चले गए। ...कुछ मिनट बाद लोकल ट्रेन आ गई और वह व्यक्ति ट्रेन में चढ़ गया। अधिकारी भी उसी ट्रेन में चढ़ गए, कुछ लोग उस व्यक्ति के साथ उसी डिब्बे में चढ़ गए, जबकि अन्य बगल के डिब्बों में चढ़ गए।'
उन्होंने लिखा है कि वह शख्स जोगेश्वरी में उतरा और स्टेशन से बाहर चला गया। वह एक ऑटोरिक्शा में बैठ गया। अधिकारियों ने दूसरे ऑटोरिक्शा में उसका पीछा करना शुरू कर दिया। डी शिवानंदन ने लिखा है कि वह शख्स जोगेश्वरी (पश्चिम) के बशीरबाग इलाके में झुग्गियों में चला गया। उन्होंने लिखा है कि जोगेश्वरी में बशीरबाग झुग्गियाँ मुंबई की सबसे घनी आबादी वाली झुग्गियों में से हैं। कोई भी व्यक्ति जो स्थानीय नहीं है, उसे आसानी से पहचाना जा सकता है और उस पर शक किया जा सकता है। पुलिस अधिकारियों के सामने चुनौती थी कि बिना किसी संदेह के उस व्यक्ति का पीछा किया जाए।
उन्होंने लिखा है कि पैसे लिए शख्स ने एक चॉल में दरवाज़ा खटखटाया, एक अज्ञात व्यक्ति ने दरवाज़ा खोला और उस व्यक्ति कमरे में घुसते ही अंदर से कमरा बंद कर दिया गया।
उन्होंने आगे लिखा है, 'तुरंत एक प्रोटोकॉल बनाया गया, उस जगह पर कड़ी नज़र रखने के लिए चौबीसों घंटे निगरानी रखी गई। सिविल और स्थानीय कपड़ों में क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने कमरे के चारों ओर रणनीतिक स्थानों पर कब्जा कर लिया ताकि कमरे के अंदर और आसपास की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी जा सके। दो दिनों तक अधिकारियों ने बिना किसी संदेह के कड़ी निगरानी रखी। ...जैसे ही हरी झंडी मिली, मैं मौके पर पहुंचा और ऑपरेशन की निगरानी की, जिसमें मुंबई पुलिस के उच्च प्रशिक्षित कमांडो और मुंबई क्राइम ब्रांच के वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम बशीरबाग के कमरे में घुस गई।'
उन्होंने लिखा है कि कुल पांच आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया। उनकी पहचान रफीक मोहम्मद (उम्र 34), अब्दुल लतीफ अदानी पटेल (उम्र 34), मुस्ताक अहमद आजमी (उम्र 45), मोहम्मद आसिफ उर्फ बबलू (उम्र 25), गोपाल सिंह बहादुर मान (उम्र 38) के रूप में हुई।
उन्होंने लिखा है, 'हमें यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि कमरे से दो एके-56 असॉल्ट राइफलें, पांच हैंड ग्रेनेड, एंटी टैंक टीएनटी रॉकेट लॉन्चर, गोले और तीन डेटोनेटर और विस्फोटक, छह पिस्तौल, गोला-बारूद का विशाल भंडार और 1,72,000 रुपये नकद सहित हथियारों और गोला-बारूद का एक बड़ा जखीरा बरामद किया गया। ऐसा लग रहा था जैसे आतंकवादियों ने मुंबई में एक बड़ा आतंकी हमला करने की साज़िश रची थी। ख़ास बात यह है कि कमरे से मातोश्री का नक्शा भी बरामद किया गया। मातोश्री दिवंगत शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का निवास स्थान था। यह आज भी शिवसेना प्रमुख उद्धव बालासाहेब ठाकरे का निवास स्थान है।'
उन्होंने लिखा है 'जोगेश्वरी और मलाड में दो अन्य स्थानों पर भी एक साथ छापे मारे गए। छापेमारी में एक नेपाली दंपत्ति द्वारा किराए पर लिए गए फ्लैट पर छापा मारा गया और जिंदा हथगोले, 2-3 ग्लॉक पिस्तौल और 10,000 अमेरिकी डॉलर नकद बरामद किए गए। अमेरिकी मुद्रा की बरामदगी से यह स्पष्ट हो गया कि यह एक अंतरराष्ट्रीय साजिश थी।'
डी शिवानंदन ने लिखा है, "आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया गया और पूछताछ करने पर उन्होंने पूरी अपहरण की वारदात को कबूल कर लिया और बताया कि वे इसमें किस तरह शामिल थे। पैसे लेने गया व्यक्ति और फोन करने वाला व्यक्ति अब्दुल पटेल के रूप में पहचाना गया, जो मुंबई का एक स्थानीय व्यक्ति था। वह मुंबई में मुख्य साजिशकर्ता था और टीम का नेतृत्व कर रहा था। मोहम्मद आसिफ उर्फ बबलू और रफीक मोहम्मद पाकिस्तानी नागरिक पाए गए। गोपाल सिंह मान नेपाली नागरिक था जबकि अन्य कश्मीर स्थित ‘हरकत-उल-अंसूर’ आतंकी समूह से जुड़े आतंकवादी थे।"
उन्होंने लिखा है कि उनसे पूछताछ में यह भी पता चला कि जोगेश्वरी में उनके साथ एक ही कमरे में तीन अन्य पाकिस्तानी नागरिक रह रहे थे। ये तीनों छापेमारी के दौरान बाहर चले गए थे और उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका।
उन्होंने लिखा है, 'अब्दुल लतीफ पटेल से लगातार पूछताछ के दौरान पता चला कि अपहरणकर्ताओं सहित उनकी पूरी टीम जुलाई 1999 से मुंबई में छिपी हुई थी और अपहरण की तैयारी कर रही थी। अपहरणकर्ताओं की पहचान इस प्रकार हुई: बहावलपुर, पाकिस्तान से इब्राहिम अतहर; कराची, पाकिस्तान से शाहिद अख्तर; कराची, पाकिस्तान से सनी अहमद काजी; कराची, पाकिस्तान से मिस्त्री जहूर इब्राहिम; सिंध, पाकिस्तान से शाकिर। अफगानिस्तान के कंधार में मौजूद अपहरणकर्ताओं के असली नाम और पहचान का पता लगाना एक बड़ी सफलता थी। तब तक अपहरणकर्ता दुनिया के लिए अज्ञात थे और अपहृत विमान के अंदर मंकी कैप पहनकर अपनी पहचान और चेहरे छिपाए हुए थे... मुंबई पुलिस ही थी जिसने सबसे पहले अपहरणकर्ताओं की असली पहचान और असली नाम दुनिया के सामने उजागर किए।'
उन्होंने लिखा है, 'आगे की जांच और पूछताछ से पता चला कि अपहर्ता मुंबई में हवाई अड्डों की योजना बनाने और उनकी टोह लेने आए थे, जो उनकी अपहरण योजना के अनुकूल हो। मुंबई में, उन्होंने जोगेश्वरी (पश्चिम) के वैशाली नगर में एक फ्लैट किराए पर लिया था और वहीं रह रहे थे। अपने प्रवास के दौरान, उन्होंने कुछ बुनियादी कौशल सीखने के लिए एक कंप्यूटर क्लास ज्वाइन की थी। वे भारी रिश्वत देकर नकली भारतीय पासपोर्ट भी हासिल करने में कामयाब रहे।'
उन्होंने लिखा है, 'पांचों अपहरणकर्ता नेपाल में ही रहे और आखिरकार 24 दिसंबर, 1999 को उन्होंने अपनी साज़िश को अंजाम दिया। भारत सरकार के निर्देशानुसार, जम्मू-कश्मीर जेल से तीनों आतंकवादियों की अदला-बदली के बाद, मुंबई पुलिस ने उन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया। सीबीआई उन्हें अमृतसर ले गई, जहां सीबीआई ने अपहरण का मामला दर्ज किया। उनको बाद में सजा हुई। यह मुंबई पुलिस द्वारा सुलझाए गए और पता लगाए गए अब तक के सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में से एक था।'
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