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रसोई गैस के दाम पर समिति, राहुल फैक्टर का असर?

केंद्र सरकार ने देश में पैदा हो रही रसोई गैस के दाम तय करने के फॉर्म्युले की समीक्षा करने का फैसला किया है। इसके लिए उसने एक पैनल बनाया है। ये गैस ज्यादातर ओएनजीसी और रिलायंस उत्पादित करते हैं। योजना आयोग के पूर्व सदस्य किरीट पारिख की अध्यक्षता में इस कमेटी को सितंबर तक अपनी रिपोर्ट देनी है। लेकिन यह समिति जो रिपोर्ट देगी और उस पर जो दाम तय होगा, उसका असर जून 2023 से दिखेगा। बहुत साफ है कि 2024 के आम चुनाव से ठीक पहले रसोई गैस के दाम कम करने की कवायद हो सकती है। लेकिन क्या सरकार ने यह कदम कांग्रेस नेता राहुल गांधी की उस घोषणा के बाद उठाया है, जिसमें उन्होंने अहमदाबाद रैली में वादा किया कि कांग्रेस सरकार आने पर गैस सिलेंडर 500 रुपये का मिलेगा। यह दावा कांग्रेसियों का है। 

राहुल की घोषणा राजनीतिक हो सकती है। लेकिन हकीकत यही है कि महंगाई सातवें आसमान पर है। 1053 रुपये की रसोई गैस का दाम बढ़ती महंगाई के रूप में दिखता है। रेट जब बढ़ते हैं तो अकेले रसोई गैस के नहीं बढ़ते हैं, उसके साथ सीएनजी और पीएनजी के रेट भी बढ़ते हैं और लोगों की जेब पर उसका सीधा असर पड़ता है। रिटेल महंगाई के बढ़ने में गैस के दाम की बड़ी भूमिका है। बकौल रिजर्व बैंक भारत में महंगाई की सहनशीलता का स्तर (टॉलरेंस लेवल) पहले से ही बहुत ऊपर है। रिटेल महंगाई दर को 2016 में मौजूदा सरकार ने बदला था। उस वजह से आरबीआई का टॉलरेंस लेवल उच्चतम 6 फीसदी और न्यूनतम 2 फीसदी कर दिया गया था। इस हिसाब से महंगाई दर 6.71 फीसदी (जुलाई) पर बनी हुई है। जून में यह 7.1 फीसदी थी।

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बहरहाल, सरकार ने जिस वजह से भी सही गैस के दाम के फॉर्म्युले की समीक्षा का फैसला लिया है। उसका नतीजा बहुत देर में आएगा। देश के प्रमुख आर्थिक अखबार इकोनॉमिक टाइम्स, फाइनेंशियल एक्सप्रेस समेत कई ने इस संबंध में खबर प्रकाशित की है। इन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक गैस के अंतिम उपभोक्ता को उचित दाम मिलने के मकसद से इस कदम को उठाया गया है। इससे महंगाई पर काबू पाने और स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

एक शंका, समाधान नहीं

कुछ आर्थिक अखबारों ने दबी जुबान में इशारा किया है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज सरकार पर दबाव बना रही है कि प्राइस कैप को पूरी तरह हटा दिया जाए, ताकि कीमतों के मामले में वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबला कर सकें। यानी अगर सरकार प्राइस कैप को हटा ले तो मार्केट के हिसाब से रिलायंस अपनी गैस के दाम को तय करके वसूलेगी। लेकिन मोदी सरकार ने जिस तरह किरीट पारिख कमेटी बनाई है तो वो रिलायंस की इस मांग के खिलाफ है। क्योंकि इस कमेटी को घरेलू गैस की कीमत का फॉर्म्युला तय करना है। समिति की रिपोर्ट सामने आने के बाद इस रहस्य का पर्दाफाश होगा कि रिलायंस की मांग का कितना ध्यान रखा गया और कितना उपभोक्ता का ध्यान रखा गया।

2014 ने बहुत कुछ बदलाः यह तथ्य है कि 2014 में रसोई गैस का सिलेंडर 430 रुपये में मिल रहा था। 2015 में यह रेट 610 रुपये पहुंचा दिया गया। 2017 में 735 रुपये का सिलेंडर मिलने लगा। लेकिन तब तक 2019 का आम चुनाव नजदीक आ चुका था, इसलिए सरकार 2018 में गैस की कीमत को 689 रुपये पर ले आई। लोगों ने इसके लिए मोदी सरकार का विशेष शुक्रिया अदा किया था। 2019 में नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बने और गैस सिलेंडर का रेट 701 रुपये किया गया। 2020 में सरकार ने इसका दाम 805 रुपये तक पहुंचा दिया। 2020 ही वो साल था जब रसोई गैस पर मिल रही सरकारी सब्सिडी को भी खत्म कर दिया गया। 2021 से रसोई गैस की कीमतें बेतहाशा बढ़ने लगीं। हर बार नए बहाने होते थे। कभी लॉकडाउन और कोविड से हो रहे घाटे की आड़ ली गई और इस समय जो बहाना काम कर रहा है वो है रूस-यूक्रेन युद्ध।

गैस प्राइसिंग सिस्टम क्या है

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से 2014 में गैस प्राइसिंग सिस्टम बदला था। उस समय कहा गया था कि स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयासों के तहत सरकार ने हेनरी हब, रूसी गैस आदि ग्लोबल बेंचमार्क से जुड़े सूत्र का पालन करते हुए गैस प्राइसिंग व्यवस्था को बदला है। लेकिन निशाना कहीं और था।
इसके बाद 2016 से सरकार ने गैस की उच्चतम कीमतों को तय करना शुरू किया। गैस उत्खनन करने वाले मालिकों को स्वतंत्र रूप से बाजार में गैस बेचने की अनुमति मिल गई।

सरकार कहती रही है कि मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण ग्लोबल कीमतों में उछाल के कारण स्थानीय गैस की कीमतें रिकॉर्ड उच्च स्तर पर हैं और आगे भी बढ़ने की उम्मीद है।

ऊर्जा विशेषज्ञ किरीट पारिख समिति का गठन करते हुए मोदी सरकार ने आदेश में कहा है कि यह पैनल गैस आधारित अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए भारत के दीर्घकालिक नजरिए के लिए 'बाजार आधारित, पारदर्शी और विश्वसनीय मूल्य निर्धारण व्यवस्था' का सुझाव देगा।

राजनीतिक खेल की शिकार जनताः हालांकि, अक्टूबर से स्थानीय गैस की कीमतों के अगले छह महीने के संशोधन में पैनल की सिफारिशों को लागू नहीं किया जाएगा। इसकी वजह ये बताई गई है कि किरीट पारिख समिति की रिपोर्ट के लिए कैबिनेट की मंजूरी की जरूरत पड़ेगी। लेकिन गौर से देखें तो बहाना है। जनता इस समय जबरदस्त महंगाई से जूझ रही है। उसे इस समिति की सिफारिशों का फायदा अक्टूबर से नहीं मिलेगा। उसके लिए 6 महीने का इंतजार करना होगा। इस तरह 2023 आ जाएगा और चंद महीनों बाद आम चुनाव का नगाड़ा बज उठेगा। राहुल गांधी के 500 रुपये सिलिंडर वाला नारा जोर पकड़ेगा और तब मोदी सरकार किरीट पारिख समिति का हवाला देकर रसोई गैस के दाम घटा देगी।
यही वजह है कि कांग्रेसी मोदी सरकार के इस कदम को राहुल की घोषणा से जोड़ रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता अलका लांबा ने बुधवार 7 सितंबर को बाकायदा ट्वीट करके कहा कि राहुल गांधी की घोषणा के दबाव में सरकार ने यह समिति बनाई है। अगर ये मान भी लिया जाए कि सरकार की समिति का संबंध राहुल गांधी की घोषणा से नहीं है लेकिन यह तय है कि सरकार के पास रसोई गैस की कीमतों से जनता के नाराज होने की शिकायतें जरूर पहुंची है। इसीलिए वो 2024 के चुनाव से पहले रसोई गैस की कीमत घटा दे।
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क़मर वहीद नक़वी
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