संसद की एक साधारण सी समिति बैठक गुरुवार को उस समय सियासी रणक्षेत्र में बदल गई, जब सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और अभिनेता प्रकाश राज की मौजूदगी पर बीजेपी सांसदों का ग़ुस्सा फट पड़ा। बीजेपी सांसदों ने 'देशद्रोही' और 'पाकिस्तानी' जैसे तीखे शब्दों के साथ विरोध जताया और बैठक से वॉकआउट कर दिया। 

दरअसल, ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर संसद की स्थायी समिति की बैठक बुलाई गई थी। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और अभिनेता-कार्यकर्ता प्रकाश राज को आमंत्रित किए जाने पर एनडीए के सांसदों और ख़ासकर बीजेपी सांसदों ने तीखा विरोध जताया। एक बीजेपी सांसद ने कथित तौर पर मेधा पाटकर को 'देशद्रोही' और 'पाकिस्तानी' क़रार देते हुए कहा, 'अगर ऐसे लोगों को बुलाना है तो फिर पाकिस्तानी पीएम को भी बुला लो!' इसके बाद एनडीए सांसदों ने बैठक से वॉकआउट कर दिया, जिससे संसदीय समिति की कार्यवाही में बाधा आई और आख़िरकार बैठक को रद्द करना पड़ा।
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संसदीय समिति की बैठक क्यों?

ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय की स्थायी समिति की यह बैठक ग्रामीण विकास योजनाओं और मनरेगा व पंचायती राज संस्थानों की प्रगति की समीक्षा के लिए बुलाई गई थी। ओडिशा के कोरापुट से कांग्रेस सांसद सप्तगिरि शंकर उलाका की अध्यक्षता वाली समिति ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और अभिनेता प्रकाश राज को विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किया था ताकि वे ग्रामीण विकास और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर अपने विचार साझा कर सकें। 

बीजेपी सांसदों का विरोध और हंगामा

बैठक शुरू होते ही बीजेपी सांसदों ने मेधा पाटकर और प्रकाश राज की उपस्थिति पर आपत्ति जताई। रिपोर्टों के अनुसार बीजेपी सांसदों ने आरोप लगाया कि मेधा पाटकर ने नर्मदा बांध परियोजना का विरोध कर देश के विकास को बाधित किया और कई बार 'राष्ट्र-विरोधी' बयान दिए। आज तक ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि एक बीजेपी सांसद ने कथित तौर पर कहा, 'ऐसे लोग जो देशद्रोही और पाकिस्तानी सोच रखते हैं, उन्हें संसदीय समिति में बुलाना ग़लत है। अगर यही करना है तो फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भी बुला लो!' 
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समिति की बैठक क्यों रद्द हुई?

एक रिपोर्ट के अनुसार प्रकाश राज पर भी बीजेपी सांसदों ने निशाना साधा और उनके कुछ पुराने बयानों का हवाला देते हुए उन्हें 'वामपंथी प्रचारक' करार दिया। इसके बाद एनडीए सांसदों ने बैठक का बहिष्कार करते हुए वॉकआउट कर दिया। 

वॉकआउट से ऐसे हालात बने कि बैठक को रद्द करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। एचटी ने एक सूत्र के हवाले से रिपोर्ट दी है, 'जब बैठक शुरू होने वाली थी तब कुछ सदस्यों ने मेधा पाटकर और प्रकाश राज की उपस्थिति पर आपत्ति जताई, यह कहते हुए कि उन्हें इस बारे में पहले सूचित नहीं किया गया था। बाद में 11 सांसदों ने वॉकआउट कर दिया। इनमें ज़्यादातर सांसद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के थे। कोरम यानी बैठक के लिए ज़रूरी सदस्यों की संख्या की कमी के कारण बैठक रद्द कर दी गई। अब यह बैठक संभवतः 14 जुलाई को होगी।' समिति में 29 सदस्य हैं, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा भी शामिल हैं। वह भी मंगलवार को बैठक में मौजूद थे।

बीजेपी के आरोपों पर समिति अध्यक्ष क्या बोले

एचटी की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के बीजेपी सांसद संजय जायसवाल ने कहा, 'हमें बताया गया था कि मंत्रालय (ग्रामीण विकास, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, और जनजातीय मामले) और कुछ गैर-सरकारी संगठन अपने विचार रखेंगे। यह नहीं बताया गया कि मेधा पाटकर और राज को बैठक में क्यों बुलाया गया, जिसका हमने अंततः बहिष्कार किया।'

रिपोर्ट के अनुसार समिति अध्यक्ष उलाका ने अपने फ़ैसले का बचाव करते हुए कहा, 'नागरिक समाज के लोगों से बात सुनना एक सामान्य प्रक्रिया है। हमने उन्हें क़ानून को और मज़बूत करने के लिए अपने विचार साझा करने के लिए बुलाया था… वे मंत्रालय के प्रतिनिधियों द्वारा दी गई जानकारी के बिना अपने विचार पेश करते।' उलाका ने आगे कहा कि बुलाए गए लोगों की सूची पहले ही प्रोटोकॉल के अनुसार स्पीकर के कार्यालय के साथ साझा की गई थी। उन्होंने कहा, 'एनडीए के सांसद किस बात से डर रहे थे? हम दोनों को सुन सकते थे और समिति के सदस्यों के बीच सहमति के बाद रिपोर्ट तैयार की जाती।'

मेधा पाटकर कौन हैं?

मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख नेता रही हैं और प्रकाश राज सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं। दोनों ही अक्सर अपने सरकार-विरोधी रुख के कारण विवादों में रहते हैं।

मेधा पाटकर एक जानी-मानी भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् हैं। उनके पिता वसंत खानोलकर एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और ट्रेड यूनियन नेता थे। सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर मेधा ने अपने करियर की शुरुआत आदिवासियों, दलितों, किसानों, मजदूरों और महिलाओं के लिए काम करके की।

मेधा पाटकर विशेष रूप से नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक के रूप में मशहूर हैं। इसने नर्मदा नदी पर बांध परियोजनाओं, खासकर सरदार सरोवर बांध, के कारण विस्थापित होने वाले लोगों के पुनर्वास और पर्यावरणीय प्रभावों के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई लड़ी।

बीजेपी के लोग उनके ख़िलाफ़ क्यों हैं?

भारतीय जनता पार्टी और उसके समर्थकों द्वारा मेधा पाटकर की आलोचना कई कारणों से की जाती है जो मुख्य रूप से उनके नर्मदा बचाओ आंदोलन और सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े हैं। 

नर्मदा बांध परियोजना का विरोध: मेधा पाटकर ने सरदार सरोवर बांध का कड़ा विरोध किया, जो गुजरात में बीजेपी के लिए एक अहम विकास परियोजना रही है। इस बांध को गुजरात के लिए पानी और बिजली की आपूर्ति के लिए अहम माना जाता है। बीजेपी का मानना है कि मेधा का विरोध 'विकास-विरोधी' था और इसने गुजरात के विकास को बाधित किया। 2022 में गुजरात चुनाव के दौरान बीजेपी ने मेधा को विकास विरोधी करार दिया था।

राजनीतिक आरोप: बीजेपी और उसके समर्थक मेधा पाटकर को 'वामपंथी' या 'अर्बन नक्सल' जैसे शब्दों से जोड़ते रहे हैं। कुछ एक्स पोस्ट में उन्हें 'भ्रष्ट समाजसेवी' तक कहा गया, जिसमें दावा किया गया था कि वे अवैध गतिविधियों को समर्थन देती हैं। 

मानहानि का मामला: मेधा पाटकर के ख़िलाफ़ दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने 24 साल पहले मानहानि का मुक़दमा दर्ज किया था, जिसमें 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया। बीजेपी समर्थकों ने इसे उनके ख़िलाफ़ एक बड़ी जीत के रूप में पेश किया।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएँ

इस घटना ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी है। कुछ यूजरों ने बीजेपी सांसदों के रवैये की आलोचना की और इसे असहिष्णुता का प्रतीक बताया। एक यूजर ने लिखा, 'मेधा पाटकर और प्रकाश राज जैसे लोग समाज के लिए काम करते हैं, लेकिन बीजेपी उन्हें देशद्रोही कहकर बदनाम करती है। यह डर की राजनीति है।' दूसरी ओर, बीजेपी समर्थकों ने सांसदों के वॉकआउट का समर्थन करते हुए कहा कि 'राष्ट्र-विरोधी' लोगों को संसदीय मंच नहीं दिया जाना चाहिए। एक यूजर ने लिखा, 'देश के विकास का विरोध करने वालों को संसद में जगह क्यों? बीजेपी सांसदों ने सही किया।'