सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की आपराधिक मानहानि मामले में दोषसिद्धि को बरकरार रखा। यह मामला दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा 2001 में दायर किया गया था। हालांकि, कोर्ट ने पाटकर पर लगाए गए 1 लाख रुपये के जुर्माने को रद्द कर दिया और उनकी प्रोबेशन शर्तों में भी बदलाव किया। इस फैसले ने 24 साल पुराने इस मामले को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है।
SC ने मेधा पाटकर की मानहानि केस में दोषसिद्धि को बरकरार रखा, जानें क्या आरोप हैं
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- 11 Aug, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की मानहानि केस में दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। जानिए क्या थे आरोप, किस मामले में हुआ था विवाद और कोर्ट ने क्या कहा।

मेधा पाटकर
यह विवाद 25 नवंबर 2000 को मेधा पाटकर द्वारा जारी एक प्रेस नोट से शुरू हुआ, जिसका शीर्षक था 'ट्रू फेस ऑफ पैट्रियट'। इस प्रेस नोट में पाटकर ने सक्सेना पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने दावा किया था कि सक्सेना हवाला लेनदेन में शामिल थे, उन्होंने नर्मदा बचाओ आंदोलन को 40,000 रुपये का एक चेक दिया था जो खाते के अस्तित्व में न होने के कारण बाउंस हो गया और उन्हें 'कायर' और 'देशभक्त नहीं' कहा था। उस समय विनय कुमार सक्सेना अहमदाबाद स्थित गैर-सरकारी संगठन नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।