कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी सरकार के खिलाफ संघर्ष का ऐलान कर दिया है। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) में मोदी सरकार के हालिया बदलावों और महात्मा गांधी का नाम हटाने के फैसले पर कड़ा ऐतराज जताते हुए सोनिया ने वीडियो बयान जारी किया है। सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर पूरी तरह लड़ने के लिए तैयार है।

विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार को इसी मुद्दे पर बयान जारी किया था, जिसमें उन्होंने सरकार पर ग्रामीण गरीबों की आजीविका को कमजोर करने का आरोप लगाया। राहुल ने भी देशव्यापी आंदोलन की बात कही थी। कांग्रेस के लगातार हमलों से साफ लग रहा है कि पार्टी मनरेगा मुद्दे को सड़क से संसद तक ले जाकर मोदी सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ने की तैयारी कर रही है।

सोनिया गांधी ने अपने वीडियो बयान में कहा:“मुझे आज भी याद है, 20 साल पहले डॉ. मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री थे, तब संसद में मनरेगा कानून आम राय से पास किया गया था। यह ऐसा क्रांतिकारी कदम था, जिसका फायदा करोड़ों ग्रामीण परिवारों को मिला था। खासतौर पर वंचित, शोषित, गरीब और अतिगरीब लोगों के लिए मनरेगा रोजी-रोटी का जरिया बना।

उन्होंने कहा- रोजगार के लिए अपनी माटी, अपना गांव, अपना घर-परिवार छोड़कर पलायन करने पर इस योजना की वजह से रोक लगी। रोजगार का कानूनी हक़ दिया गया, साथ ही ग्राम पंचायतों को ताकत मिली। मनरेगा के जरिए महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपनों के भारत की ओर एक ठोस कदम उठाया गया। पिछले 11 साल में मोदी सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के बेरोजगार, गरीबों और वंचितों के हितों को नजरअंदाज कर मनरेगा को कमजोर करने की हर कोशिश की, जबकि कोविड के वक़्त ये गरीब वर्ग के लिए संजीवनी साबित हुआ था।

सोनिया गांधी ने कहा- बहुत अफसोस की बात है कि अभी हाल में सरकार ने मनरेगा पर बुलडोजर चला दिया। न सिर्फ महात्मा गांधी का नाम हटाया गया, बल्कि मनरेगा का रूप-स्वरुप बिना विचार-विमर्श किए, बिना किसी से सलाह-मशवरा किए, बिना विपक्ष को विश्वास में लिए मनमाने ढंग से बदल दिया गया।अब किसको, कितना, कहां और किस तरह रोजगार मिलेगा, यह जमीनी हकीकत से दूर दिल्ली में बैठकर सरकार तय करेगी।

कांग्रेस की बुजुर्ग नेता ने कहा- कांग्रेस का मनरेगा को लाने और लागू करने में बड़ा योगदान था, लेकिन यह पार्टी से जुड़ा मामला कभी नहीं था। ये देशहित और जनहित से जुड़ी योजना थी। मोदी सरकार ने इस कानून को कमजोर करके देश के करोड़ों किसानों, श्रमिकों और भूमिहीन ग्रामीण वर्ग के गरीबों के हितों पर हमला किया है।

इस हमले का मुकाबला करने के लिए हम सब तैयार हैं। 20 साल पहले अपने गरीब भाई-बहनों को रोजगार का अधिकार दिलवाने के लिए मैं भी लड़ी थी, आज भी इस काले कानून के खिलाफ लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हूं। मेरे जैसे कांग्रेस के सभी नेता और लाखों कार्यकर्ता आपके साथ खड़े हैं।”

कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, पार्टी इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाएगी और ग्रामीण गरीबों के हितों की रक्षा के लिए हरसंभव लड़ाई लड़ेगी। मनरेगा को कमजोर करने और महात्मा गांधी का नाम हटाने के सरकार के कदम को कांग्रेस 'ग्रामीण भारत पर हमला' बता रही है।

मनरेगा में बदलाव की आलोचना क्यों हो रही है

मोदी सरकार द्वारा मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) में किए गए बदलावों का केंद्र बिंदु 2025 में पेश किया गया विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल है। जिसका छोटा नाम बीजेपी VB-G RAM G बिल कह  रही है। इस बिल से महात्मा गांधी का नाम हटा दिया गया है। सरकार का तर्क है कि यह बदलाव 'विकसित भारत' के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है, जिसमें रोजगार के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 करना, कृषि मौसम में 60 दिनों का विराम शामिल करना और डिजिटल ट्रैकिंग को मजबूत करना जैसे प्रावधान हैं। हालांकि, ये बदलाव सतही तौर पर पॉजिटिव लगते हैं, लेकिन वे योजना की मूल भावना को कमजोर करते हैं। कुछ खास प्वाइंट्स से इन आलोचनाओं को समझा जा सकता है।
रोजगार के कानूनी अधिकार का कमजोर होना: मनरेगा में मांग-आधारित (डिमांड-ड्रिवन) रोजगार की गारंटी थी, जहां मजदूर खुद काम मांग सकते थे। नए बिल में यह बजट-सीमित और केंद्र-निर्धारित योजना बन गई है, जिससे वास्तविक रोजगार की गारंटी नाममात्र रह जाएगी और मजदूरों का अधिकार छिन जाएगा।

केंद्र का नियंत्रण बढ़ना और विकेंद्रीकरण का अंत: पहले ग्राम पंचायतें स्थानीय जरूरतों के आधार पर काम तय करती थीं। अब केंद्र सरकार क्षेत्र नोटिफाई करेगी, बजट आवंटन तय करेगी और काम राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से जोड़ेगी, जिससे स्थानीय स्तर पर स्वायत्तता खत्म हो जाएगी और जमीनी हकीकत से दूर फैसले होंगे।


राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ना: मनरेगा में मजदूरी का 100% और सामान का अधिकांश खर्च केंद्र वहन करता था। नए बिल में फंडिंग अनुपात 60:40 (केंद्र:राज्य) हो गया है, जिससे गरीब राज्यों पर हजारों करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और कई राज्य योजना ठीक से लागू नहीं कर पाएंगे।

कृषि मौसम में 60 दिनों का अनिवार्य विराम: खेती के पीक सीजन में काम रोकने से मजदूरों की सालाना आय कम हो जाएगी, उनकी सौदेबाजी की ताकत घटेगी और जमींदारों का शोषण बढ़ सकता है।

डिजिटल और तकनीकी बाधाएं: बायोमेट्रिक, एआई ऑडिट और डिजिटल ट्रैकिंग अनिवार्य होने से दूरदराज के गरीब, महिलाओं और अनपढ़ मजदूरों का बहिष्कार बढ़ेगा, जैसा पहले लाखों जॉब कार्ड डिलीट होने से हुआ है।

महिलाओं, दलितों और भूमिहीन मजदूरों का नुकसान: मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी 50% से ज्यादा थी और यह वंचित वर्गों की आजीविका का मजबूत आधार था। नए बदलावों से उनकी सुरक्षा और सशक्तिकरण कमजोर होगा, साथ ही पलायन और शोषण बढ़ सकता है।

आमदनी और सुरक्षा में कमी: 125 दिनों का वादा कॉस्मेटिक है, क्योंकि बहुत कम परिवार पहले 100 दिन भी पूरा पाते थे। बजट कैप और सप्लाई-ड्रिवन मॉडल से वास्तविक रोजगार घटेगा, जिससे ग्रामीण गरीबी और असुरक्षा बढ़ेगी।
सामाजिक प्रभाव के लिहाज से ये बदलाव ग्रामीण गरीबों, विशेषकर महिलाओं और वंचित वर्गों के लिए हानिकारक हैं। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे 'गरीबों के अधिकारों पर हमला' बताया है। नेता विपक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि मोदी सरकार महात्मा गांधी के विचारों और गरीबों के अधिकारों से नफरत करती है। कुल मिलाकर, ये बदलाव मनरेगा की क्रांतिकारी भावना को नष्ट करते हैं, जो पलायन रोकने और ग्राम स्वराज को मजबूत करने के लिए बनी थी।