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गुरूवार को संसद में पीएम मोदी ने इंदिरा गांधी सरकार द्वारा मिजोरम पर हुए हवाई हमले का मुद्दा उठाया

मिजो उग्रवादियों ने युद्ध छेड़ दिया था, तब वायुसेना ने की थी बमबारी 

लोकसभा में गुरुवार को अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिजोरम पर इंदिरा गांधी सरकार द्वारा की गई बमबारी की चर्चा की है। इसके साथ ही वायुसेना के उस हमले की चर्चा देश भर में होनो लगी है। पीएम मोदी ने संसद में कहा कि 5 मार्च 1966 को कांग्रेस ने मिजोरम में असहाय लोगों पर वायुसेना से हमला करवाया था। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या मिजोरम के लोग भारत के नागरिक नहीं थे? प्रधानमंत्री ने कहा कि वहां के निर्दोष नागरिकों पर कांग्रेस ने हमला करवाया था। आज भी पांच मार्च को पूरा मिजोरम शोक मनाता है। कांग्रेस ने इस सच को छिपाया, कभी घाव भरने की कोशिश नहीं की। उस वक्त इंदिरा गांधी पीएम थीं। 
मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष के सवालों से घिरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 57 साल पहले की इस घटना का जिक्र कर नार्थ ईस्ट के मुद्दों पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है। उन्होंने मिजोरम में हुए भारतीय वायुसेना के उस हमले के मुद्दे को उठाया है। आएं जानते हैं क्या था मिजोरम पर बमबारी का मामला।  5 मार्च 1966 को भारतीय वायुसेना मिजोरम पर बमबारी की थी लेकिन इसके कारणों की शुरुआत 1960 से ही होने लगी थी। यह वह समय था जब मिजोरम राज्य नहीं बना था और मिजो हिल्स असम राज्य का अंग के तौर पर जाना जाता था। 

अहिंसा के साथ शुरु हुआ आंदोलन हिंसक हो गया 

1960 में असम की सरकार ने असमिया भाषा को राजकीय भाषा घोषित कर दिया। इसके बाद जिन लोगों को असमिया भाषा नहीं आती थी उनके लिए सरकारी नौकरी मिलनी मुश्किल हो गई। असम सरकार के इस फैसले का मिजो लोगों ने अहिंसक तरीके से जमकर विरोध किया। उस समय मिजो लोगों के नेता लालडेंगा थे। उनके नेता लालडेंगा के नेतृत्व में 28 फरवरी 1961 को मिजो नेशनल फ्रंट बना। फ्रंट ने मिजो लोगों की आवाज को मजबूती से उठाया। इनका आंदोलन चल रहा था इसी बीच 1964 में असमिया भाषा लागू होने के कारण  असम रेजिमेंट ने अपनी सेकेंड बटालियन को बर्खास्त कर दिया। इस रेजिमेंट में अधिकतर मिजो लोग थे। इस फैसले के बाद मिजो लोगों में गुस्सा बढ़ गया और उनका अहिंसक आंदोलन हिंसक हो गया। जिन मिजो लोगों को असम रेजिमेंट की सेकेंड बटालियन से निकाला गया था वे मिजो नेशनल फ्रंट में शामिल हो गए और यहीं से मिजो नेशनल आर्मी का गठन होता है।  

पाकिस्तान और चीन की मदद से फैला उग्रवाद 

जब मिजो नेशनल फ्रंट ने अहिंसा छोड़ कर उग्रवाद का रास्ता अपनाया तो उसे पाकिस्तान और चीन ने भरपूर मदद की थी। इस मामले के जानकार आरोप लगाते है कि उस समय के पूर्वी पाकिस्तान या आज के बांग्लादेश में मिजो नेशनल आर्मी को ट्रेनिंग दी जाने लगी। इन दोनों देशों से हथियार और पैसे भी मिलने लगे थे। मिजो उग्रवादी भारतीय सुरक्षाबलों या सेना पर हमला करते थे और म्यांमार या पूर्वी पाकिस्तान में जाकर छिप जाते थे। मिजो नेशनल फ्रंट के नेता लालडेंगा को सुरक्षाबलों ने 1963 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया था लेकिन उन्हें अदालत ने बरी कर दिया। 

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इस बीच 1965 में पाकिस्तान से भारत का युद्ध छिड़ गया। तब लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री थे। युद्ध के दौरान लालडेंगा को लगा कि भारत सरकार पर दबाव बनाने का यही अच्छा मौका है। उसने प्रधानमंत्री शास्त्री को एक पत्र भेजा और उसमें लिखा कि मिजो देश भारत के साथ लंबा स्थायी और शांतिपूर्ण संबंध रखेगा, या दुश्मनी मोल लेगा, इसका निर्णय अब भारत के हाथ में है। 

इंदिरा के सत्ता संभालते ही उग्रवादियों ने किया हमला

इस बीच 11 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री शास्त्री की ताशकंद में मौत हो जाती है। लालडेंगा को अपने अलगाववादी मकसद को आगे बढ़ाने के लिए यह सही समय लगा। 21 जनवरी को लालडेंगा ने इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो को एक पत्र लिखा और अपना मकसद बताया। लालडेंगा ने लिखा कि ,अंग्रेजों के समय भी हम लोग आजादी की स्थिति में रहे हैं। यहां पर राजनीतिक जागरूकता से उपजा राष्ट्रवाद अब परिपक्व हो चुका है। अब हमारे लोगों की एकमात्र इच्छा अपना अलग देश बनाने की है। लालडेंगा अपने मकसद के लिए इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो का समर्थन चाहते थे। 
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इस बीच 24 जनवरी 1966 का दिन आता है जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनती हैं। अभी इंदिरा सत्ता संभाले चार दिन ही हुए थे कि 28 फरवरी 1966 को मिजो नेशनल फ्रंट के उग्रवादियों ने भारतीय सुरक्षाबलों पर भीषण हमला करना शुरु कर दिया। उन्होंने भारतीय सुरक्षाबलों को मिजोरम से बाहर निकालने के लिए 'ऑपरेशन जेरिको' शुरू कर दिया। उन्होंने अपने हमलों से भारतीय सेना और भारत सरकार को बड़ी चुनौती दे दी थी। उग्रवादियों ने आइजोल और लुंगलाई में असम राइफल्स की छावनियों पर जबरदस्त हमला किया। 

सेना के ठिकानों पर कब्जा कर आजाद होने की घोषणा की

29 फरवरी को मिजो नेशनल फ्रंट ने भारत से आजाद होने की घोषणा करने के साथ ही 'ऑपरेशन जेरिको'  को तेज कर दिया। मिजो नेशनल फ्रंट के उग्रवादियों का हमला इतना सुनियोजित था कि भारतीय सुरक्षाबल इसके लिए तैयार नहीं थे। जगह-जगह सुरक्षाबलों पर हमले होने लगे। उग्रवादियों ने आइजोल में सरकारी खजाने सहित महत्वपूर्ण सरकारी प्रतिष्ठानों और चंफाई और लुंगलाई जिलों में सेना के ठिकानों पर कब्जा कर लिया। 

उग्रवादियों ने  तिरंगा उतार अपना झंडा फहरा दिया 

चंफाई में तो वन असम राइफल की छावनी पर आधी रात को उग्रवादियों का हमला इतना तेज और सुनियोजित था कि सुरक्षबलों को अपने हथियार लोड करने और लुंगलाई और आइजोल में अपने वरीय अधिकारियों तक इसकी खबर करने का समय नहीं मिला। उग्रवादियों ने इस हमले में उनसे सभी हथियार लूट लिए और करीब 85 जवानों को बंधक बना लिया। उग्रवादियों ने टेलीफोन एक्सचेंज को निशाना बनाकर  आइजोल से भारत के साथ संचार नेटवर्क को तोड़ने की कोशिश भी की थी। मिजो उग्रवादी इतने ताकतवर हो गए थे कि उन्होंने एक मार्च 1966 को असम राइफल के मुख्यालय पर कब्जा कर तिरंगा झंडे को उतार दिया और अपने झंडे को फहरा दिया। 

उग्रवादियों ने भारत के खिलाफ युद्ध का मोर्चा खोल दिया था

इस बीच किसी तरह से दो सुरक्षा बल के जवान वहां से भागने में कामयाब रहे और उन्होंने आकर सेना को उस हमले की जानकारी दी। मिजो उग्रवादियों इस  'ऑपरेशन जेरिको' से भारतीय राष्ट्र के खिलाफ एक तरह से युद्ध का मोर्चा खोल दिया था। उनसे बातचीत के सारे रास्ते बंद हो चुके थे और वहां पर कानून का शासन लागू करना मुश्किल दिख रहा था। स्थिति कितनी खराब हो चुकी थी इसे इस बात से समझा जा सकता है कि भारतीय सेना मिजो इलाके में हेलिकॉप्टर से सैनिकों और हथियारों को मिजो उग्रवादियों की गोलीबारी के कारण पहुंचा नहीं पा रही थी। इलाके में मौजूद भारतीय सैनिकों की जान पर खतरा लगातार बढ़ता जा रहा था। उग्रवादियों का आतंक बढ़ कर युद्ध जैसे माहौल में बदल चुका था। इस घटना के बाद दिल्ली या भारत सरकार के पास अब कड़ा रुख अपनाने के अलावा कोई विकल्प बचा नहीं था। मिजो हिल्स को उग्रवादियों के चंगुल से निकालने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने सलाहकारों और अधिकारियों से विचार विमर्श करने के बाद सेना को जवाबी हमले का आदेश दे दिया। 

वायुसेना के चार लड़ाकू विमानों ने बरसाए बम 

इंदिरा गांधी के आदेश पर मिजो हिल्स की रक्षा के लिए भारतीय वायु सेना के चार लड़ाकू विमानों ने 5 मार्च 1966  को असम के तेजपुर, कुंबीग्राम और जोरहाट से उड़ान भरी। इसमें दो लड़ाकू विमान फ्रांस में बने दैसे ओरागन और दो ब्रिटेन में बने हंटर विमान थे। प्राप्त जानकारी के मुताबिक इन लड़ाकू विमानों ने आइजोल में मिजो नेशनल फ्रंट के उग्रवादियों पर मशीनगन से गोलीबारी और बमबारी की थी।  करीब एक सप्ताह तक चली इस कार्रवाई ने मिजो उग्रवादियों की कमर तोड़ दी। 

मिजो उग्रवादी इस हमले से बचने के लिए म्यांमार और पूर्वी पाकिस्तान के जंगलों में जा छिपे। इसके बाद भारतीय सेना ने मिजोरम का कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया। भारतीय इतिहास में यह पहली घटना थी जब वायुसेना ने अपने ही इलाके में बमबारी की थी। कई लोग इसके लिए इंदिरा गांधी की आलोचना करते हैं लेकिन एक बड़ा तबके का मानना है कि वह ऐसी परिस्थिति थी जिसमें यही अंतिम विकल्प बचा था। इंदिरा गांधी ने इस मौके पर सही फैसला लेकर उग्रवादियों का सफाया किया और देश को टूटने से बचाया। 

और फिर लालडेंगा ने शांति समझौता किया

 इसके बाद  30 जून 1986 को केंद्र सरकार और  मिजो नेशनल फ्रंट के बीच ऐतिहासिक मिजो शांति समझौते हुआ। लालडेंगा को अपनी गलतियों का एहसास हो चुका था।  इसे उस समय की राजीव गांधी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों के तौर पर देखा जाता है। 1987 में मिजोरम असम से अलग होकर एक राज्य बना और इसी वर्ष मिजोरम में पहली बार चुनाव हुआ। चुनाव में लालडेंगा की पार्टी को बहुमत मिला और वह मिजोरम के पहले मुख्यमंत्री बने। इसके बाज मिजोरम से हमेशा के लिए उग्रवाद खत्म हो गया और वहां शांति आ गई। आज मिजोरम देश के सबसे शांत राज्य के तौर पर जाना जाता है।   

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क़मर वहीद नक़वी
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