अरावली की पहाड़ी तय करने के लिए 100 मीटर के नये नियम को लेकर आलोचनाएँ झेल रही मोदी सरकार क्या अब डैमेज कंट्रोल मोड में आ गई है? अरावली क्षेत्र में नई माइनिंग लीज पर पूरी तरह रोक लगाने का फैसला क्यों?
अरावली पहाड़ियों के ताज़ा विवाद में चौतरफ़ा घिरी केंद्र सरकार क्या अब डैमेज कंट्रोल की स्थिति में आ गई है? क्योंकि इसने अब पूरे अरावली क्षेत्र में नई माइनिंग लीज पर पूरी तरह रोक लगा दी है। अरावली पहाड़ियों की सुरक्षा को लेकर चल रहे प्रदर्शनों और विवादों के बीच केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा है कि गुजरात से दिल्ली तक फैली पूरी अरावली श्रृंखला में अब नई माइनिंग लीज नहीं दी जा सकेगी। बुधवार को जारी आदेश में कहा गया कि यह रोक अवैध और अनियंत्रित खनन को रोकने के लिए है, ताकि अरावली को बचाया जा सके। हालाँकि, इसके बारे में कुछ साफ़ नहीं कहा गया है कि 100 मीटर के नये नियम पर उसका रुख क्या है। एक सवाल यह उठ रहा है कि जिस तरह का आदेश निकालकर नयी लीज पर रोक लगाई गई है बाद में उसी तरह का आदेश निकालकर यह रोक चुपके से हटा ली जाए तो क्या खनन का रास्ता फिर से नहीं खुल जाएगा?
बहरहाल, मंत्रालय के बयान में कहा गया कि यह रोक पूरे अरावली क्षेत्र पर एकसमान लागू होगी। इसका मकसद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैली इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला को बचाना है। मंत्रालय ने इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन यानी आईसीएफआरई को निर्देश दिया है कि वह अरावली के उन अतिरिक्त इलाकों की पहचान करे जहां खनन पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए। यह पहले से प्रतिबंधित क्षेत्रों के अलावा होगा।
अरावली के लिए अब होगी नयी प्लानिंग?
आईसीएफआरई पूरे अरावली क्षेत्र के लिए एक वैज्ञानिक आधार वाली 'सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान' तैयार करेगा। इस प्लान में पर्यावरण पर कुल प्रभाव का आकलन, संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान और सुधारने के उपाय शामिल होंगे। प्लान को सार्वजनिक किया जाएगा ताकि सभी पक्ष अपनी राय दे सकें। इससे अरावली में सुरक्षित क्षेत्र और बढ़ जाएंगे।
मौजूदा खदानों पर सख्ती
जो खदानें पहले से चल रही हैं, उनके लिए राज्य सरकारों को सख्त पर्यावरण नियमों का पालन कराना होगा। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बयान में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पूरी तरह अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। बयान में यह भी कहा गया है कि मौजूदा खनन गतिविधियों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए जाएंगे ताकि पर्यावरण सुरक्षित रहे और सस्टेनेबल माइनिंग हो।
अरावली क्यों अहम?
सरकार ने कहा कि अरावली पारिस्थितिकी तंत्र की लंबे समय तक सुरक्षा के लिए वह पूरी तरह प्रतिबद्ध है। यह श्रृंखला मरुस्थलीकरण रोकने, जैव विविधता बचाने, भूजल रिचार्ज करने और क्षेत्र को पर्यावरणीय सुरक्षा देने में बड़ी भूमिका निभाती है।यह फैसला ऐसे समय में आया है जब सुप्रीम कोर्ट के हालिया 100 मीटर ऊंचाई वाली अरावली परिभाषा के फैसले के बाद राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में प्रदर्शन हो रहे हैं। लोगों को आशंका है कि इससे छोटी पहाड़ियां खनन के लिए खुल जाएंगी।
विवाद क्यों खड़ा हुआ?
अरावली का यह विवाद पर्यावरण मंत्रालय की एक सिफारिश से खड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2025 में पर्यावरण मंत्रालय की उस सिफारिश को स्वीकार कर लिया, जिसमें अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा दी गई है। इसके अनुसार, अब केवल वे जमीन के हिस्से अरावली माने जाएंगे जो अपने आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचे हों। इस फैसले से पर्यावरण विशेषज्ञ चिंतित हैं कि अरावली के बड़े हिस्से की सुरक्षा खत्म हो जाएगी और खनन बढ़ सकता है। इस वजह से इस नियम का विरोध हो रहा है और 'अरावली बचाओ' अभियान शुरू किया गया है। अरावली की नयी परिभाषा क्यों?
यह मामला सालों से कोर्ट में चल रहा था। अरावली में अवैध खनन रोकने और पहाड़ियों की रक्षा के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग नियम थे। मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय को एक कमेटी बनाने को कहा, ताकि अरावली की एक समान परिभाषा बनाई जाए। इस कमेटी में दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के अधिकारी, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया यानी एफएसआई, जियोलॉजिकल सर्वे और कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी यानी सीईसी के सदस्य शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने क्या किया?
13 अक्टूबर 2025 को मंत्रालय ने कोर्ट में 100 मीटर ऊँचाई वाली परिभाषा पेश की। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार लेकिन अगले ही दिन, 14 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की कमेटी सीईसी ने कोर्ट की मदद करने वाले वकील को पत्र लिखकर कहा कि उन्होंने न तो इस प्रस्ताव की जाँच की है और न ही मंजूरी दी है। अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार सीईसी के चेयरमैन सिद्धांत दास ने लिखा कि एफएसआई की पुरानी परिभाषा ही अपनाई जानी चाहिए, जिसमें कम से कम 3 डिग्री ढलान वाले इलाक़े को अरावली माना जाता है। इससे छोटी पहाड़ियां भी सुरक्षित रहती हैं। एफएसआई ने क्या दी थी परिभाषा?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एफएसआई ने 2010 में राजस्थान के 15 जिलों में अरावली के 40481 वर्ग किमी क्षेत्र की मैपिंग की थी। इसमें न्यूनतम ऊँचाई वाली वे पहाड़ियां भी शामिल थीं जिसका ढलान कम से कम 3 डिग्री था। लेकिन माना जा रहा है कि नई 100 मीटर परिभाषा से राजस्थान में ही 20 मीटर या उससे ऊंची 12081 में से 91.3 फीसदी पहाड़ियां बाहर हो जाएंगी। सभी पहाड़ियों को मिलाकर 99 फीसदी से ज्यादा बाहर हो सकती हैं। इससे थार मरुस्थल का पूर्व की ओर फैलना तेज हो सकता है, दिल्ली-एनसीआर में धूल भरी आंधियां बढ़ सकती हैं और पानी का स्तर गिर सकता है।
बहरहाल, यह सवाल तो बना हुआ ही है कि जिस तरह का आदेश निकालकर नयी लीज पर रोक लगाई गई है, बाद में उसी तरह का आदेश निकालकर यह रोक चुपके से हटा ली जाए तो क्या खनन का रास्ता फिर से नहीं खुल जाएगा?