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मुहम्मद अदीब: भारत की राजनीति में मुसलमान अप्रासंगिक हो चुका है

कुछ कट्टर हिन्दुत्ववादी और दक्षिणपंथी लोग दिल्ली से सटे हरियाणा के गुड़गाँव में खुले में नमाज पढ़ने का विरोध कर रहे हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच चुका है। कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य मुहम्मद अदीब वह व्यक्ति हैं, जो यह मामला लेकर देश की सर्वोच्च अदालत गए। स्वतंत्र पत्रकार अजाज़ अशरफ़ ने 'न्यूज़क्लिक' के लिए इस मुद्दे पर उनसे विस्तार से बात की। पेश है उसका अनुवाद।
गुड़गाँव में शुक्रवार की नमाज को लेकर आपने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की है, उसमें क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के तहसीन पूनावाला मामले में कहा कि भीड़ द्वारा किसी को पीट-पीट कर मार डालने के पीछे एक प्रक्रिया होती है। यह स्वत: स्फूर्त कभी कभी ही होता है। लोग समूह में एकजुट होते हैं, तैयारी करते हैं और ऐसा वातावरण बनाते हैं जिसमें किसी की पीट-पीट कर हत्या की जाती है। यदि प्रशासन को यह पहले से ही जानकारी हो कि किसी की पीट-पीट कर हत्या की जा सकती है तो यह अनिवार्य है कि वह उसे रोकने की कोशिश करे। ऐसा नहीं करना अदालत की अवमानना माना जा सकता है।
आपको लगता है कि हरियाणा प्रशासन पर यह आरोप लग सकता है?
संयुक्त हिन्दू संघर्ष समिति के सदस्य हर शुक्रवार को किसी न किसी स्थान पर जाकर नमाज में बाधा डालते हैं। यह आश्चर्य की बात है कि हर मामले में वहाँ पुलिस पहले से ही मौजूद रहती है। पर वह कुछ करती नही है। हर बार हमने नमाज में व्यवधान डालने की शिकायत लिखित में प्रशासन से की है। हम उन्हें वीडियो भी देते हैं। हम पुलिस से शिकायत की पावती भी लेते हैं। पर सिर्फ एक मामले में उन्होंने एक बार 20 लोगों को हिरासत में लिया और उन्हें भी थोड़ी देर बाद छोड़ दिया।
muhammad adeeeb raises questions over gurgaon namaz controversy, opposition to namaz in open - Satya Hindi
वे कौन अफ़सर हैं जो अदालत की अवमानना के दोषी हैं?
हरियाणा के मुख्य सचिव और इसके पुलिस महानिदेशक। याचिका में कहा गया  है कि पुलिस की कार्रवाई नहीं करने की वजह से ऐसा वातावरण बन गया है कि शुक्रवार की नमाज में व्यवधान डाला जाता है।
क्या एक ही समूह के लोग हर बार शुक्रवार की नमाज में बाधा डालते हैं?
कुल मिला कर लगभग 40 लोग हैं जो हर बार अलग-अलग जगह जाकर जुमे की नमाज में बाधा डालते हैं। ये बस कुछ ही लोग हैं। यदि हिन्दू समुदाय शुक्रवार की नमाज के ख़िलाफ़ होता तो हज़ारों की संख्या में लोग आते।
क्या यह याचिका स्वीकार कर ली गई है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका स्वीकार कर ली है। जब 3 जनवरी को अदालत खुलेगी तो हम इस प्रक्रिया को तेज करने की गुजारिश करेंगे।
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मुसलमानों के खुले में नमाज पढ़ने के मुद्दे पर गैर मुसलिम क्यों सामने नहीं आते?
हिन्दू हों या मुसलमान, हर कोई डरा हुआ है। मेरे दोस्त जिनमें हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी और मेरे परिवार को लोग मुझे बार बार चेतावनी देते हैं कि मुझे इस मामले में क़ानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए। मुझे लोगों ने कहा है कि नमाज का विरोध करने वाले लोग ख़तरनाक हैं।
आप जिस हाउसिंग सोसाइटी में रहते हैं, वहां का क्या हाल है?
अपनी हाउसिंग सोसाइटी में रहने वाला मैं अकेला मुसलमान हूँ। ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने मेरे पास आकर मेरा समर्थन किया है। मैंने खुद को कभी भी अलग-थलग नहीं महसूस किया है। आईआईटी के एक प्रोफ़ेसर ने गुरुग्राम की घटनाओं पर चिंता जाहिर की है। लोगों का कहना है कि गुरुग्राम विवाद ने न सिर्फ हिन्दुस्तान को बदनाम किया है, बल्कि यह मुसलमानों को असहिष्णु और उग्रवादी बनाने की ओर ले जाएगा।
बाहरी दुनिया को लगता है कि ज़िला प्रशासन पूर्वाग्रह से ग्रस्त है।
मैंने ज़िला प्रशासन के जितने लोगों से बात की है, मुझे पूर्वाग्रह ग्रस्त नहीं लगे, वे मुझे अच्छे लोग लगे, पर वे लाचार हैं, उनके हाथ बँधे हुए हैं।
क्या आपने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मिलने की कोशिश की है?
मैं मनोहर लाल खट्टर से मिलने की कोशिश दो महीनों से कर रहा हूं, लेकिन मुझे मुलाक़ात का समय नहीं दिया गया है। मैंने दो महीने पहले उनके उस बयान का स्वागत किया था कि 37 तयशुदा जगहों पर नमाज पढ़ने की अनुमति है। मैंने उनके सहायक को दो बार ई-मेल भेजे हैं, मैं उनसे मिल कर ज्ञापन देना चाहता हूं कि मुसलमानों को मसजिद बनाने के लिए जगह दी जाए।
आप राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं। क्या ऐसे में भी किसी अधिकारी ने मिलने से बात सुनने से इनकार कर दिया?
किसी ने मुझसे मिलने से समय देने से इनकार नहीं किया है, पर देर हो रही है। हमारे लोकतंत्र में यह परंपरा रही है कि सत्तारूढ़ दल के लोग विपक्ष के लोगों से मिलते हैं।
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मुहम्मद अदीब, पूर्व सदस्य, राज्यसभा
इस विवाद में मुसलिम राष्ट्र मंच की क्या भूमिका है?
उनके साथ सिर्फ चार-पाँच मुसलमान हैं। उनका नेता कोई खुर्शीद रजक है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इंद्रेश कुमार के नजदीक हैं। उन्हें जन समर्थन नहीं है। यह खबर छपी कि 17 दिसंबर को मुसलमानों ने छह जगहों पर खुले में नमाज पढ़ीं। इसका आयोजन राष्ट्रीय मुसलिम मंच ने किया था। उनके साथ कुछ ही लोगों ने नमाज पढ़ी।

क्या आरएसएस मदरसा के बच्चों में अपनी विचारधारा डालना चाहता है?

वे मुसलिम समुदाय को उलझन में डालना चाहते हैं। यह काम पिछले छह साल से हो रहा है। मैं एक उदाहरण देता हूं। मेरे पास कॉरपोरेट जगत के पाँच-छह लोग आए और कहा कि वे नमाज के मुद्दे पर क्या करें। मैंने उनसे कहा कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र है, वे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करें। लेकिन उन्होंने कहा कि ऐसा करने पर उनके ऊपर छापे पड़ने लगेंगे और वे फंसाए जाएंगे, लिहाज़ा वे इंद्रेश कुमार के पास आत्म समर्पण करने जा रहे हैं।

एक दूसरा उदाहरण लीजिए। इंद्रेश कुमार ने 22 नवंबर को इसलामिक सांस्कृतिक केंद्र में साहिल सिद्दीक़ी की किताब 'दस्तक' का लोकार्पण किया। मैं यह यकीन नहीं कर पा रहा हूं कि एक पूर्व जज अपने किताब का लोकार्पण उस व्यक्ति से कराएगा जिसके विचार भारतीय संविधान से एकदम उलट हों। इसलामिक सांस्कृतिक केंद्र का एक बड़ा हिस्सा इंद्रेश कुमार और आरएसए की ओर मुड़ गया है।

गुड़गाँव में रहने वाले प्रमुख मुसलमानों की क्या भूमिका रही है?
मुझे उनसे बहुत निराशा हुई है।
क्या आपने उनसे मुलाकात की है? एक सार्वजनिक बयान का भी महत्व होता है।

मैं रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह से एक कार्यक्रम में मिला। मैंने उनसे कहा कि वे अपने घर या मेरे घर या किसी तीसरी जगह प्रमुख मुसलमानों को जुमे की नमाज के मुद्दे पर बुलाएं, इसमें पूर्व चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी को भी आमंत्रित करें। शाह ने अब तक कोई वादा नहीं किया है।

मैंने इस मुद्दे पर पूर्व आईएएस अफ़सर और अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति नसीम अहमद से भी बात की। उन्होंने समर्थन नहीं किया। वे सब चुप हैं। इन लोगों की चुप्पी की वजह से ही कॉरपोरेट जगत के लोग मेरे पास आए थे और मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हालांकि मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं रहता है।

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क्या आपने राजनीतिक दलों से समर्थन माँगा है?
मैंने 18 पार्टियों को चिट्ठियाँ लिखी हैं। ये वे दल हैं जो भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में नहीं हैं, जैसे, मैंने जनता दल युनाइटेड को नहीं लिखा है। मैंने चिट्ठी के साथ कागजात भी नत्थी किए हैं, जिससे पता चलता है कि किस तरह गुरुग्राम के मुसलमानों से उनका हक छीना जा रहा है। मैंने उनसे गुजारिश की  कि वे हमारे पक्ष में बोलें। मैं कांग्रेस के राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, डीएमके, तेलंगाना राष्ट्र समिति, शिवसेना, राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी वगैरह को लिखा।
उनका जवाब क्या रहा?

सिर्फ तीन ने जवाब दिया। सीपीआईएम के सीताराम येचुरी ने कहा कि वे मेरी बातों से पूरी तरह सहमत हैं और उनसे जो बन पड़ेगा वे करेंगे। उनकी पार्टी की वृंदा करात ने मुझे फोन किया और कहा कि पार्टी यह मुद्दा संसद में उठाएगी। 

मुझे इस पर आश्चर्य हुआ कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने बाद में फोन किया और कहा कि वे जम्मू में थे, इसलिए जवाब नहीं दे सके। उन्होंने इस मुद्दे पर सहानुभूति जताई। इंडियन यूनिय मुसलिम लीग के मुहम्मद बशीर ने भी जवाब दिया, उन्होंने संसद में दिया भाषण मुझे वॉट्सऐप पर भेजा।

मुझे लगता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला और मुहम्मद बशीर ने जवाब दिया क्योंकि....
लेकिन असदउद्दीन ओवैसी और बदरुद्दीन अज़मल ने जवाब नहीं दिया। ओवैसी राजनीतिक नेता हैं, पर मैं उन्हें मुसलमानों का नेता नहीं मानता। वे सिर्फ मुसलमानों की भावनाओं का फ़ायदा उठाते हैं।
राजनीतिक दलों ने जवाब क्यों नहीं दिया?
भारतीय राजनीति में सिर्फ मुसलमान ही अप्रासंगिक है। एक मुसलमान की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है तो कोई नहीं बोलता है न ही उसके घर जाकर हालचाल पूछता है। मुझे दुख इस बात को लेकर है कि खुद मुसलमान भी यह नहीं समझते कि वे अप्रासंगिक बन चुके हैं। वे अपने समुदाय के मुद्दे पर खड़े नहीं होते, उन्हें बस बीजेपी को हराने की चिंता है।
सिविल सोसाइटी समूहों ने क्या किया?
केवल सिविल सोसाइटी समूह ही इस मुद्दे पर खड़े हैं। लेकिन जब सिविल सोसाइटी समूह मुसलमानों से जुड़े किसी मुद्दे पर कोई कार्यक्रम करता है तो आप पाएंगे कि पाँच-दस मुसलमान ही वहां होंगे। ये वे लोग होते हैं, जिन्हें मौलवी लोग प्रगतिशील और सच्चा मुसलमान नहीं मानते हैं। क्या इससे बड़ी त्रासदी हो सकती है? मुसलमानों को रजनीतिक दलों के बजाय सिविल सोसाइटी समूहों में यकीन करना चाहिए।
क्या गुड़गाँव का मुसलमान अलग-थलग, गुस्से में, उदास, निराश या डरा हुआ है?
पूरा समुदाय डरा हुआ है। आरएसएस की रणनीति पूरे समुदाय को डरा कर नियंत्रित करने की है। मुझे डर इस बात का है कि इस डर की वजह से कोई मुसलमान खास कर पढ़ा लिखा युवक किसी तरह का पागलपन और गैरज़िम्मेदाराना व्यवहार कर सकता है।
आपके लिए शुक्रवार की नमाज  का क्या सांकेतिक महत्व है?
मैंने यह कभी नहीं सोचा कि मेरे जीते जी ऐसा दिन आएगा जब भारत के मुसलमानों को लगेगा कि वे नमाज अदा नहीं कर सकते। मुझे लगता है कि मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद का यह कहना कि धर्म के आधार पर देश के विभाजन की कीमत मुसलमानों को चुकानी होगी अब सच साबित हो रहा है। मैं एक भावुक व्यक्ति हूं। गुरुग्राम में नमाज नही पढ़ने देने की बात पर मुझे रात को नींद नहीं आती है।
इसके बाद मुहम्मद अदीब की आँखों में आँसू आ गए, वे आंखें पोंछने लगे। मैंने टेप रिकॉर्डर बंद कर दिया।
(अजाज़ अशरफ़ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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एजाज़ अशरफ़
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