न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीडीएसए) ने जी न्यूज़ और टाइम्स नाउ नवभारत को कड़ी फटकार लगाई है। इन चैनलों पर 'मेहंदी जिहाद' और 'लव जिहाद' जैसे विवादास्पद विषयों पर भ्रामक और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाले वीडियो चलाए गए, शो किए गए। लाइव लॉ ने इस फैसले को 4 अक्टूबर शनिवार को विस्तृत रूप में छापा है। 

एनबीडीएसए के चेयरमैन जस्टिस (रिटायर्ड) ए.के. सीकरी की समिति ने अपने आदेशों में दोनों चैनलों को नैतिक आचार संहिता का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया है। शिकायतकर्ता एक्टिविस्ट इंद्रजीत घोरपड़े ने अक्टूबर 2024 में ये शिकायतें दर्ज कराई थीं, जिनमें आरोप लगाया गया कि चैनलों ने बिना तथ्य-जांच के साम्प्रदायिक प्रचार किया। दोनों चैनलों से ऐसे सभी वीडियो हटाने का निर्देश दिया गया है।

जी न्यूज़ पर 'मेहंदी जिहाद' प्रसारणों की आलोचना 

एनबीडीएसए ने जी न्यूज़ के चार कार्यक्रमों का विशेष उल्लेख किया। जिनमें फर्जी 'मेहंदी जिहाद' कॉन्सेप्ट को बढ़ावा दिया गया। इन प्रसारणों में दावा किया गया कि मुस्लिम मेहंदी आर्टिस्ट हिंदू महिलाओं पर मेहंदी लगाने से पहले उसमें थूकते हैं, जबकि मुस्लिम पुरुष मेहंदी आर्टिस्ट बनकर हिंदू महिलाओं के फोन नंबर इकट्ठा कर उन्हें शादी के बहाने धर्मांतरण के लिए मजबूर करते हैं। कार्यक्रमों में कुछ संगठनों द्वारा मुस्लिम मेहंदी आर्टिस्टों का बहिष्कार करने और हिंसक नारे लगाने के बयानों को प्रमुखता से दिखाया गया।

चैनलों ने नफरत को इस ढंग से फैलाया 

चैनल द्वारा चलाए गए सनसनीखेज टिकरों (फ्लैश) में शामिल थे: "मेहंदी जिहाद पर दे दनादन", "आवेदन निवेदन नहीं माने तो दे दनादन", "मेहंदी जिहाद के खिलाफ लाठी मॉडल लॉन्च", "लाठी से लाएंगे, जिहादियों को रोकेंगे" और "पकड़े जाने पर सबक सिखाया जाएगा"। एनबीडीएसए ने पाया कि ये प्रसारण तथ्यों की जांच के बिना किए गए, मुस्लिम आर्टिस्टों के खिलाफ धमकियों की निंदा नहीं की गई और विपक्षी नज़रिए को नजरअंदाज किया गया। थंबनेल, टिकर और हेडलाइंस ने समाज में सांप्रदायिक भय और नफरत को बढ़ावा दिया।

जी न्यूज़ ने बचाव में कहा कि वे केवल संगठनों के बयानों की रिपोर्टिंग कर रहे थे, लेकिन एनबीडीएसए ने फैसला सुनाया कि प्रस्तुति चैनल की स्वीकृति का संकेत देती है। आदेश में कहा गया, "ब्रॉडकास्टर ने इन टिकरों को चलाते हुए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया कि ये तीसरे पक्ष के बयान हैं, न ही कोई एंडोर्समेंट दिया कि ये टिकर ब्रॉडकास्टर के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते।" एनबीडीएसए ने जी न्यूज़ को सभी प्लेटफॉर्म्स से कार्यक्रम हटाने और भविष्य में सावधानी बरतने का निर्देश दिया।

टाइम्स नाउ नवभारत पर 'लव जिहाद' कवरेज पर चेतावनी 

टाइम्स नाउ नवभारत के खिलाफ बरेली सेशन कोर्ट के एक फैसले की कवरेज को निशाना बनाया गया, जिसमें एक मुस्लिम पुरुष को हिंदू महिला को शादी के लिए मजबूर करने और धर्मांतरण के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। चैनल ने जज के शब्दों को बिना जांच के दोहराया, महिला की गवाही को नजरअंदाज किया और बीजेपी नेताओं के 'लव जिहाद' वाले बयानों को बढ़ावा दिया। बता दें कि यह चैनल प्रतिष्ठित मीडिया समूह टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप का है। इस चैनल पर पहले भी साम्प्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप तमाम सामाजिक संगठन लगा चुके हैं।

टाइम्स नाउ नवभारत चैनल ने यूपी में 'लव जिहाद-टूलकिट पाकिस्तानी' जैसा वीडियो चलाया

टाइम्स नाउ नवभारत चैनल के संबंधित टिकरों में थे: "प्यार के जहाज में जिहाद का तूफान", "लव जिहाद पर कोर्ट का सख्त फैसला", "जिहादियों की मोहब्बत का सच", "जिहादियों के इरादों पर लगी मोहर", "यूपी में लव जिहाद... टूलकिट पाकिस्तानी" और "झूठे नाम का अफसाना, मकसद मुसलमान बनाना"। एनबीडीएसए ने माना कि कोर्ट फैसले की व्याख्या गलत नहीं थी, लेकिन टिकरों ने फैसले से परे सनसनी फैलाई। विशेष रूप से "यूपी में लव जिहाद... टूलकिट पाकिस्तानी" जैसे कैप्शन को अनुचित ठहराया गया।
आदेश में कहा गया, "फैक्टुअल नैरेशन करते हुए ब्रॉडकास्टर ने फैसले से परे तत्व जोड़े, जो रिपोर्ट के विषय से मेल नहीं खाते।" चैनल को अपराधी टिकर हटाने का आदेश दिया गया, लेकिन फैसले की जांच की मांग खारिज कर दी गई।

एनबीडीएसए का व्यापक संदेश 

एनबीडीएसए ने दोनों मामलों में जुर्माना नहीं लगाया, लेकिन चैनलों को चेतावनी दी कि संवेदनशील मुद्दों पर पत्रकारिता लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की जिम्मेदारी निभाए। आदेश में जोर दिया गया, "मीडिया को सार्वजनिक विमर्श को आकार देने में सतर्क रहना चाहिए। संवेदनशील विषयों पर सामग्री की आलोचनात्मक जांच जरूरी है, ताकि आचार संहिता का पालन हो।"
यह पहला मौका नहीं है जब राष्ट्रीय चैनलों पर इस तरह का आरोप लगा और फटकारा भी गया। विपक्षी दलों का कहना है कि देश के राष्ट्रीय चैनल अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहे हैं। अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों में उनकी रिपोर्ट पूरी संवेदनशीलता के साथ नहीं होती और न ही वे तथ्यों की पड़ताल ठीक से करते हैं।
ये फैसले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए नैतिक मानकों को मजबूत करने वाले हैं। शिकायतकर्ता घोरपड़े ने इसे पॉजिटिव कदम बताया, जबकि चैनलों से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।