एनसीईआरटी की किताब पर फिर विवाद हो गया है। विवाद की वजह है भारत विभाजन के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराना। एनसीईआरटी में विभाजन के लिए ज़िम्मेदार कांग्रेस को भी बताए जाने के बाद कांग्रेस ने हिंदू महासभा की भूमिका पर सवाल उठाए। कांग्रेस ने कहा है कि एनसीईआरटी के उस मॉड्यूल में आग लगा दीजिए जिसमें हिंदू महासभा की विभाजन की मांग को शामिल नहीं किया गया है।

दरअसल, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी ने भारत के विभाजन की भयावहता को याद करने के लिए 14 अगस्त को 'विभाजन भयावहता स्मृति दिवस' के अवसर पर कक्षा 6 से 12 के लिए एक विशेष मॉड्यूल जारी किया है। इस मॉड्यूल में भारत के विभाजन के लिए तीन पक्षों मोहम्मद अली जिन्ना, कांग्रेस और लॉर्ड माउंटबेटन को ज़िम्मेदार ठहराया गया है। इस दावे ने देश में एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस ने इस मॉड्यूल को भ्रामक और इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास करार दिया, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने इसे ऐतिहासिक सत्य को सामने लाने की दिशा में एक कदम बताया।

NCERT मॉड्यूल में क्या है?

एनसीईआरटी ने मिडिल स्टेज यानी कक्षा 6-8 और सेकेंडरी स्टेज यानी कक्षा 9-12 के लिए दो अलग-अलग मॉड्यूल तैयार किए हैं, जो नियमित पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा नहीं हैं। ये मॉड्यूल परियोजनाओं, पोस्टर, चर्चाओं और वाद-विवाद के माध्यम से पढ़ाए जाएंगे। मॉड्यूल में कहा गया है कि भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के लिए तीन पक्ष जिम्मेदार हैं-

मोहम्मद अली जिन्ना: जिन्ना ने 1940 के लाहौर प्रस्ताव में हिंदुओं और मुसलमानों को 'दो अलग-अलग राष्ट्र, दर्शन, सामाजिक रीति-रिवाज और साहित्य' का हिस्सा बताया और अलग देश की मांग की। मॉड्यूल में कहा गया है कि जिन्ना ने राजनीतिक इस्लाम के आधार पर पाकिस्तान आंदोलन को बढ़ावा दिया, जो गैर-मुसलमानों के साथ स्थायी समानता को नकारता है।

कांग्रेस: मॉड्यूल का दावा है कि कांग्रेस ने विभाजन की योजनाओं को स्वीकार किया और जिन्ना के प्रभाव को कम आंका। इसमें जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने गृहयुद्ध के डर से विभाजन को स्वीकार किया। मॉड्यूल में नेहरू के 1947 के एक भाषण का ज़िक्र है- 'हम उस स्थिति में पहुंच गए हैं जहां हमें या तो विभाजन स्वीकार करना होगा या निरंतर संघर्ष और अराजकता का सामना करना होगा।'

लॉर्ड माउंटबेटन: मॉड्यूल में माउंटबेटन की आलोचना की गई है जिन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख़ को जून 1948 से पहले बढ़ाकर अगस्त 1947 कर दिया। इसे लापरवाही वाला क़दम बताया गया, जिसके कारण रैडक्लिफ लाइन के सीमांकन में जल्दबाजी हुई और लाखों लोग यह नहीं जान पाए कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में।

एनसीईआरटी मॉड्यूल में कहा गया है कि भारत के विभाजन जैसी अभूतपूर्व मानवीय त्रासदी विश्व इतिहास में कहीं नहीं हुई। इसमें कहा गया है कि विभाजन में क़रीब 1.5 करोड़ लोगों का विस्थापन हुआ, सामूहिक हत्याएँ हुईं, बड़े पैमाने पर यौन हिंसा हुई और शरणार्थियों की ट्रेनों में 'केवल लाशें भरी हुई थीं'।

मॉड्यूल में यह भी कहा गया है कि विभाजन के कारण कश्मीर एक सुरक्षा समस्या बन गया और 'हमारा एक पड़ोसी देश इस समस्या का इस्तेमाल भारत पर विभिन्न तरीक़ों से दबाव डालने के लिए करता रहा है।' इसमें पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर तीन युद्ध छेड़ने और 'जिहादी आतंकवाद' को बढ़ावा देने का ज़िक्र है।

आग बबूला कांग्रेस बोली- जला दो मॉड्यूल को

कांग्रेस ने इस मॉड्यूल की कड़ी आलोचना की है। पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इसे भ्रामक करार देते हुए कहा कि इस मॉड्यूल को जला देना चाहिए क्योंकि यह सच नहीं बताता। उन्होंने कहा कि विभाजन हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के बीच गठजोड़ के कारण हुआ।

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, 'क्या मॉड्यूल में 1938 का ज़िक्र है? 1938 बहुत महत्वपूर्ण तारीख़ है। गुजरात में हिंदू महासभा का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था। इसमें कहा गया था कि हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते। मॉड्यूल में 1940 का ज़िक्र है क्या? मुस्लिम लीग के 1940 में लाहौर अधिवेशन में जिन्ना ने वही बात दोहराई। 1942 की घटना को भी मॉड्यूल में नहीं लिखा होगा। हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग गठबंधन की सरकार बनी थी।' उन्होंने आगे कहा,
जब भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान हुआ तो कांग्रेस ने तमाम प्रोविंशियल एसेंबली ने इस्तीफा दिया। उस वक़्त हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की सरकार बनी थी। एनडब्ल्यूएफ़ में, पंजाब में सिंध में। सिंध एसेंबली में विभाजन का प्रस्ताव पारित किया गया। क्या यह सब मॉड्यूल में लिखा है? यदि नहीं लिखा है तो फिर जला दीजिए इस मॉड्यूल को।
पवन खेड़ा
कांग्रेस प्रवक्ता
कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने बीजेपी को चुनौती दी और कहा, 'मैं एनसीईआरटी को विभाजन पर चर्चा के लिए चुनौती देता हूं। आज उनके पास एनसीईआरटी पर नियंत्रण है, लेकिन उन्हें विभाजन के बारे में कुछ नहीं पता।' उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार एनसीईआरटी के माध्यम से इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रही है, जिसमें आरएसएस को देशभक्त और कांग्रेस को गद्दार के रूप में चित्रित किया जा रहा है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हर्ष मंदर ने एक लेख में लिखा कि विभाजन की स्मृति को सही सबक के साथ याद करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'हमें यह याद रखना चाहिए कि हिंदू महासभा के सावरकर ने मुस्लिम लीग से पहले दो अलग-अलग राष्ट्रों की कल्पना की थी। आरएसएस ने मुसलमानों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाने की कोशिश की।' मंदर ने यह भी कहा कि विभाजन की स्मृति को नफरत को बढ़ावा देने के बजाय समुदायों के बीच प्रेम और एकता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।

बीजेपी का जवाब- सच को सामने लाना ज़रूरी

बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि एनसीईआरटी का मॉड्यूल ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है और इसका उद्देश्य छात्रों को विभाजन की भयावहता से अवगत कराना है। बीजेपी नेता और उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा, '14 अगस्त भारतीय इतिहास का काला दिन है। कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने मुस्लिम लीग की अलग देश की मांग को स्वीकार किया, जिसके परिणामस्वरूप यह त्रासदी हुई।'

बीजेपी प्रवक्ता सुकांत मजूमदार ने कहा, 'इतिहास हमेशा सच होता है और वह सच छात्रों तक पहुंचना चाहिए।' पार्टी ने एक वीडियो भी जारी किया, जिसमें जवाहरलाल नेहरू पर विभाजन के लिए जिम्मेदारी डाली गई। वीडियो में दावा किया गया कि नेहरू और कांग्रेस की नीतियों ने विभाजन को अपरिहार्य बना दिया।

पहले भी हुए हैं एनसीईआरटी पर विवाद

यह विवाद एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में हाल के बदलावों की कड़ी में आया है। हाल में एनसीईआरटी की पुस्तकों से मुगल और दिल्ली सल्तनत के संदर्भ, महात्मा गांधी की हत्या और आरएसएस पर प्रतिबंध से संबंधित सामग्री को हटाया गया है और बाबर को क्रूर और निर्दयी विजेता के रूप में बताया गया है। कांग्रेस ने इन बदलावों को इतिहास का भगवाकरण करार दिया है।

एनसीईआरटी का नया मॉड्यूल भारत के विभाजन के कारणों और परिणामों को समझाने का प्रयास करता है, लेकिन इसने एक तीखा राजनीतिक विवाद छेड़ दिया है। कांग्रेस का कहना है कि यह मॉड्यूल इतिहास को तोड़-मरोड़कर आरएसएस और बीजेपी के पक्ष में पेश करता है, जबकि बीजेपी इसे ऐतिहासिक सत्य का खुलासा बताती है। यह विवाद न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि भारत के इतिहास की व्याख्या और राष्ट्रीय पहचान के निर्माण को लेकर गहरे मतभेदों को दिखाता है।