स्टालिन ने महत्वपूर्ण और तकनीकी मुद्दा भी उठाया। स्टालिन ने लिखा, "तीनों नए कानून भारत के संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं और इसलिए राज्य सरकार के साथ व्यापक परामर्श किया जाना चाहिए। राज्यों को अपने विचार व्यक्त करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया और नए कानून विपक्षी दलों की भागीदारी के बिना संसद द्वारा पारित किए गए।" उन्होंने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में विसंगतियों की तरफ इशारा करते हुए धारा 103 की ओर इशारा किया, जिसमें कथित तौर पर हत्या के दो अलग-अलग वर्गों के लिए एक ही सजा की दो उपधाराएं हैं।
असहमति अपराध हो जाएगीः एक जुलाई से लागू होने जा रहे है कानूनों के बाद सरकार की किसी भी नीति, कार्रवाई से असहमति अपराध के दायरे में आ जाएगी। यानी सरकार की आलोचना पर किसी की शिकायत पर पुलिस केस दर्ज कर सकती है। इसका सबसे ज्यादा दुरुपयोग विपक्ष के राजनीतिक लोगों के खिलाफ होगा। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह, कपिल सिब्बल, संजय हेगड़े, प्रशांत भूषण जैसे दिग्गज वकील तक नए कानूनों पर चिंता जता चुके हैं। सरकार के आलोचकों और कानूनी कार्यकर्ताओं का कहना है कि केवल 20 से 25 फीसदी प्रावधान नए हैं और वे पुलिस को बहुत अधिक पावर देते हैं। सरकार के आलोचकों का कहना है कि नए कानूनों में ऐसे प्रावधान हैं जो असहमति को अपराध घोषित कर सकते हैं।
मनीष तिवारी इससे पहले भी इन नए कानूनों का विरोध कर चुके हैं। यह मामला कितना गंभीर है, उनकी इस लाइन से समझा जा सकता है। उन्होंने लिखा था, "इन कानूनों में कुछ प्रावधान भारतीय गणराज्य की स्थापना के बाद से नागरिक स्वतंत्रता पर सबसे बड़े हमले का प्रतिनिधित्व करते हैं।" .