केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यमन में मौत की सजा का सामना कर रही केरल की नर्स निमिषा प्रिया के मामले में केवल उनके परिवार को ही पीड़ित के परिजनों से माफ़ी मांगने और बातचीत करने की अनुमति दी जानी चाहिए। सरकार ने कहा कि किसी बाहरी संगठन या व्यक्ति का हस्तक्षेप इस मामले में मददगार नहीं होगा। यह बयान शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान आया, जहां 'सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल' ने यमन में पीड़ित के परिवार से बातचीत के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजने की अनुमति मांगी थी।


केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोड की रहने वाली 38 वर्षीय नर्स निमिषा प्रिया को 2017 में यमन के एक नागरिक तलाल अब्दो मेहदी की हत्या का दोषी पाया गया था। यमनी कानून के तहत उन्हें 2020 में मौत की सजा सुनाई गई थी। निमिषा का दावा है कि तलाल ने उनके साथ मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न किया था और उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। पासपोर्ट वापस लेने के लिए उन्होंने तलाल को बेहोशी की दवा दी, लेकिन गलती से अधिक मात्रा में दवा देने से उनकी मौत हो गई।
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2023 में यमन की सर्वोच्च न्यायिक परिषद ने उनकी अपील खारिज कर दी और 30 दिसंबर 2024 को यमन के राष्ट्रपति ने उनकी फांसी की सजा को मंजूरी दे दी। उनकी फांसी की तारीख 16 जुलाई 2025 तय की गई थी, लेकिन भारत सरकार और कुछ धार्मिक नेताओं के हस्तक्षेप के बाद इसे स्थगित कर दिया गया

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ की ओर से वरिष्ठ वकील रजेंथ बसंत ने अदालत से अनुरोध किया कि उनके संगठन के दो-तीन प्रतिनिधियों और केरल के सुन्नी धार्मिक नेता कंथापुरम ए.पी. अबूबकर मुसलियार के एक प्रतिनिधि को यमन भेजने की अनुमति दी जाए। उनका कहना था कि यह प्रतिनिधिमंडल तलाल के परिवार से माफी मांगने और ‘ब्लड मनी’ के ज़रिए समझौता करने की कोशिश करेगा।
हालाँकि, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अदालत से कहा कि इस मामले में केवल निमिषा के परिवार को ही पीड़ित के परिजनों से बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा, 'परिवार ने पहले से ही एक पावर ऑफ़ अटॉर्नी नियुक्त किया है। कोई बाहरी व्यक्ति भले ही उसका इरादा अच्छा हो, इसमें शामिल नहीं होना चाहिए।' उन्होंने यह भी बताया कि यमन के साथ भारत के कूटनीतिक संबंध सीमित हैं, क्योंकि वहां गृहयुद्ध की स्थिति है और भारत का कोई दूतावास नहीं है। इस वजह से सरकार की भूमिका भी सीमित है।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता संगठन सरकार को औपचारिक रूप से आवेदन दे सकता है और सरकार इस पर अपने स्तर पर विचार करेगी। मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त 2025 को होगी।

‘ब्लड मनी’ और यमनी क़ानून

यमन में इस्लामी कानून (शरिया) लागू है। इसके तहत हत्या के मामले में पीड़ित का परिवार दोषी को माफ़ कर सकता है, अगर वे ‘ब्लड मनी’ स्वीकार कर लें। निमिषा के परिवार ने तलाल के परिवार को 10 लाख अमेरिकी डॉलर (लगभग 8.6 करोड़ रुपये) की पेशकश की है। ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ ने इसके लिए क्राउडफंडिंग के ज़रिए धन इकट्ठा किया है, जिसमें केरल के एक व्यवसायी ने 1 करोड़ रुपये का योगदान दिया।

तलाल के भाई अब्देल फतह मेहदी ने फेसबुक पर एक पोस्ट में साफ़ कर दिया कि उनका परिवार किसी भी तरह की माफ़ी या ब्लड मनी स्वीकार नहीं करेगा।

फतह ने कहा, 'हमारा खून खरीदा नहीं जा सकता। हम केवल क़िसास (प्रतिशोध) चाहते हैं।' उन्होंने भारतीय मीडिया पर यह भी आरोप लगाया कि वे निमिषा को पीड़ित के रूप में दिखाकर गलत जानकारी फैला रहे हैं।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं से मुश्किल बढ़ी?

सोशल मीडिया पर भारत में कुछ लोगों की प्रतिक्रियाओं ने इस मामले को और मुश्किल बना दिया है। कुछ सोशल मीडिया यूज़रों ने ब्लड मनी की इन ख़बरों को ग़लत तरीक़े से पेश करते हुए यह धारणा बनाई कि तलाल का परिवार इस रक़म को बढ़ाने के लिए फाँसी की मांग पर अड़ा हुआ है। निमिषा के परिवार और 'सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल' के दावों को सोशल मीडिया पर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया, जिससे कुछ यूज़रों ने तलाल के परिवार को लालची और अन्यायी के रूप में पेश किया। यह धारणा बनी कि तलाल का परिवार न्याय के बजाय पैसे की मांग कर रहा है। भारतीय मीडिया में कुछ खबरों ने तलाल के परिवार को नकारात्मक रूप में पेश किया।
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तलाल का परिवार ग़ुस्से में क्यों?

तलाल के परिवार और उनके भाई अब्दुल फतह मेहदी ने सोशल मीडिया और भारतीय मीडिया की इन प्रतिक्रियाओं पर गहरी नाराजगी जताई। अब्दुल फतह ने अपनी फेसबुक पोस्ट में साफ़ किया कि उनका परिवार ब्लड मनी या किसी भी मुआवजे को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कहा, 'यह पैसे के बारे में नहीं है, और कोई डील पैसे को लेकर हुई ही नहीं है।' अब्दुल फतह ने भारतीय मीडिया पर तलाल को बदनाम करने और निमिषा को पीड़ित के रूप में पेश करने का आरोप लगाया। कहा जा रहा है कि भारतीय सोशल मीडिया पर तलाल के परिवार के खिलाफ की गई टिप्पणियों और गलत धारणाओं ने उनके ग़ुस्से को और बढ़ा दिया।

निमिषा की कहानी

निमिषा प्रिया 2008 में बेहतर नौकरी के लिए यमन गई थीं। 2011 में उनकी शादी केरल में टॉमी थॉमस से हुई। यमनी कानून के तहत विदेशी नागरिक को व्यवसाय शुरू करने के लिए स्थानीय साझेदार की ज़रूरत होती है, इसलिए निमिषा ने तलाल के साथ मिलकर एक क्लिनिक शुरू किया। उनके परिवार का दावा है कि तलाल ने निमिषा का पासपोर्ट जब्त कर लिया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया। 2016 में निमिषा ने तलाल के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी, जिसके बाद उसे कुछ समय के लिए गिरफ्तार किया गया था।

निमिषा की मां प्रेमा कुमारी पिछले एक साल से यमन में हैं और अपनी बेटी को बचाने के लिए लगातार कोशिश कर रही हैं। उन्होंने पिछले महीने सना जेल में निमिषा से मुलाकात की थी। निमिषा की 12 साल की बेटी केरल में अपने पिता टॉमी थॉमस के साथ रहती है जो एक ऑटो-रिक्शा चालक हैं।

भारत सरकार और धार्मिक नेताओं की कोशिशें

भारत सरकार ने इस मामले में यमनी अधिकारियों और सना जेल प्रशासन के साथ संपर्क बनाए रखा है, जो हूती विद्रोहियों के नियंत्रण में है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि सरकार ने निमिषा के परिवार को कानूनी मदद और नियमित काउंसलर सहायता दी है।
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केरल के सुन्नी नेता कंथापुरम ए.पी. अबूबकर मुसलियार ने भी यमन के प्रभावशाली सूफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफिज से संपर्क कर तलाल के परिवार से बातचीत की कोशिश की। उनकी मध्यस्थता के कारण ही फांसी को स्थगित किया गया। हालांकि, तलाल के परिवार की सख्त रुख के कारण यह कोशिश अभी तक सफल नहीं हुई है।

अब आगे क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को 14 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया है और याचिकाकर्ता संगठन को सरकार से संपर्क करने की छूट दी है। निमिषा की जिंदगी अब तलाल के परिवार की माफी पर टिकी है, लेकिन उनके सख्त रवैये ने इस उम्मीद को कमजोर कर दिया है। भारत सरकार और निमिषा के समर्थक इस मामले में कूटनीतिक और निजी स्तर पर कोशिशें जारी रखे हुए हैं।