मोदी सरकार उठते-बैठते संसद से सड़क तक मनरेगा स्कीम को कांग्रेस की नाकामियों का स्मारक कहती थी। लेकिन 10 साल बाद मोदी सरकार इस योजना का नाम बदलकर अपनी सरकार की योजना बताने की तैयारी कर रही है। नया बिल लाने वाली है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा- MGNREGS ) का नाम मोदी सरकार ने बदल दिया है। यह भारत की प्रमुख ग्रामीण रोजगार योजना है। मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने योजना का नाम बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना करने को मंजूरी दी। इस निर्णय के साथ ही ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष गारंटीड रोजगार के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 करने और न्यूनतम दैनिक मजदूरी को बदलने का भी प्रस्ताव है। अब इससे संबंधित बिल संसद में पेश किया जाएगा।
लेकिन ज़रा ठहरिए। इसके पीछे का मकसद जानना इस खबर से भी ज़रूरी बात है। पीएम मोदी ने आज से 10 साल इस योजना को कांग्रेस की नाकामियों का स्मारक कहा था। मनरेगा योजना का मजाक उड़ाने वाला मोदी का वीडियो इस रिपोर्ट में आग है। ज़रूर सुनिए। लेकिन सबसे आपत्तिजनक बात ये है कि इस योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाना। पूज्य बापू नाम रखने से इसे कितने लोग समझेंगे। बलात्कारी आसाराम भी तो अपने नाम में बापू लिखता है।
मनरेगा की जड़ें राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) में हैं, जिसे संसद ने 25 अगस्त 2005 को यूपीए सरकार (तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में) के दौरान पारित किया था। इसे फरवरी 2006 से शुरू में 200 जिलों में लागू किया गया और 2008-09 तक पूरे देश में विस्तारित कर दिया गया। अक्टूबर 2009 में योजना का नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम किया गया, ताकि इसे गांधीवादी सिद्धांतों जैसे ग्रामीण सशक्तिकरण और समानता से जोड़ा जा सके। उस समय इसे ग्रामीण परिवारों को कानूनी रूप से "काम का अधिकार" देने वाला क्रांतिकारी कदम माना गया, जिसमें प्रति वर्ष कम से कम 100 दिनों का अकुशल श्रमिक मजदूरी रोजगार गारंटीड है। इसका उद्देश्य आजीविका सुरक्षा बढ़ाना, संकट प्रवास कम करना, महिलाओं को सशक्त बनाना (एक-तिहाई आरक्षण) और सड़कें, तालाब, सिंचाई जैसी टिकाऊ ग्रामीण संपत्तियां बनाना था। अब यह योजना राजनीतिक शिकार हो गई है।
योजनाओं के नाम बदलने में माहिर मोदी सरकार
मोदी सरकार (2014 से अब तक, दिसंबर 2025 तक) ने यूपीए सरकार की कई प्रमुख योजनाओं के नाम बदले या उन्हें रीब्रांड किया है। कांग्रेस का कहना है कि 23 योजनाओं के नाम बदले गए। लेकिन जो तथ्य और डेटा उपलब्ध है, उसके मुताबिक मोदी सरकार ने मनमोहन सिंह, राजीव गांधी के दौर की महत्वपूर्ण योजनाओं के नाम बदल डाले। कई योजनाओं को तो अपनी योजना बताकर भी मोदी सरकार ने पेश किया।
- इंदिरा आवास योजना → अब प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)
- राजीव आवास योजना → सरदार पटेल नेशनल अर्बन हाउसिंग मिशन (बाद में प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी में विलय)
- नो फ्रिल्स अकाउंट / स्वाभिमान योजना → प्रधानमंत्री जन धन योजना
- राष्ट्रीय विनिर्माण नीति → मेक इन इंडिया
- राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन → स्किल इंडिया
- नेशनल गर्ल चाइल्ड डे प्रोग्राम → बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (JNNURM) → अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT)
- राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना → दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना
- निर्मल भारत अभियान → स्वच्छ भारत मिशन
- नेशनल ई-गवर्नेंस प्लान → डिजिटल इंडिया (आंशिक रूप से सबसम्ड)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) → पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना
अन्य उल्लेखनीय:
- एक्सेलरेटेड इरिगेशन बेनिफिट प्रोग्राम → प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
- सॉइल हेल्थ कार्ड (यूपीए के तहत शुरू, एनडीए में प्रमुखता से लॉन्च)
2014 में सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने मनरेगा योजना पर हमले शुरू किए। 2015 में संसद में दिए भाषण में पीएम मोदी ने मनरेगा को कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकारों की 60 वर्षों की "विफलताओं का जीवंत स्मारक" बताया था। मोदी ने मजाक उड़ाते हुए कहा था कि यह योजना ग्रामीण गरीबी का प्रतीक है जहां लोग गड्ढे खोदने जैसे मामूली काम करने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि वे योजना जारी रखेंगे लेकिन इसे पिछली विफलताओं के सबूत के रूप में उजागर करेंगे। भाजपा अभियानों में भी इसे बर्बाद करने वाली, लोकलुभावन योजना बताया गया जो टिकाऊ संपत्तियां नहीं बनाती और बेरोजगारी के मूल कारणों को हल नहीं करती। इसके बाद मोदी ने फ्रीबीज़ योजना बताकर इसका विरोध किया।
मोदी और बीजेपी एक तरफ तो आलोचना कर रहे थे लेकिन सरकार ने मनरेगा को बंद नहीं किया, क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय और उपयोगी है। 2020-21 में यही योजना कोविड-19 महामारी के दौरान क्रांतिकारी साबित हुई। नोटबंदी और कोराना के बाद जबरदस्त ग्रामीण संकट पैदा हुआ। इसके तहत गांवों में कमजोर परिवारों को काफी मुआवजा दिया गया।
मनरेगा को दुनिया की सबसे बड़ी काम गारंटी कार्यक्रमों में से एक के रूप में वैश्विक प्रशंसा मिली है। विश्व बैंक ने 2014 की विश्व विकास रिपोर्ट में इसे "ग्रामीण विकास का उत्कृष्ट उदाहरण" कहा। इसका अध्ययन गरीबी कम करने, महिलाओं के सशक्तिकरण, कृषि उत्पादकता और पर्यावरण पुनर्जनन के प्रभाव के लिए किया गया है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने इसे अधिकार-आधारित गारंटी से रोजगार चुनौतियों का समाधान बताते हुए सराहा है।
विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस ने सरकार पर यूपीए युग की योजना को रीब्रांडिंग करके अपना बताने का आरोप लगाया है। प्रियंका गांधी वाड्रा और जयराम रमेश जैसे नेताओं ने नाम बदलने को अनावश्यक खर्च बताया, जबकि कार्यान्वयन मुद्दे (जैसे बकाया भुगतान, हाल के वर्षों में प्रति परिवार औसतन लगभग 50 दिन रोजगार) बने हुए हैं। कुछ विश्लेषकों ने इसे मोदी सरकार द्वारा अपनी "कमियों को चमकाने" की पहल बताया है। समर्थक इसे योजना की पहचान ताजा करने और गांधी को सम्मान देते हुए अधिक प्रभावी बनाने का कदम मानते हैं।