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'विपक्ष पर एजेंसियों का दुरुपयोग', विपक्ष के आरोप का आधार क्या?

क्या तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी की ईडी द्वारा गिरफ़्तारी एक के बाद एक विपक्षी दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ हो रही केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का हिस्सा है? आख़िर इसको विपक्षी दलों ने बदले की कार्रवाई और एजेंसियों का दुरुपयोग क़रार क्यों दिया है? तमिलनाडु में इस मंत्री के ख़िलाफ़ कार्रवाई से एक दिन पहले ही बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को ईडी ने शिक्षक भर्ती घोटाले में पूछताछ के लिए तलब किया था। इससे पहले टीएमसी के अन्य नेता, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, आप नेता मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव, राबड़ी देवी व तेजस्वी यादव, तेलंगाना के सीएम केसीआर की बेटी, उद्धव खेमे वाली शिवसेना के नेता संजय राउत जैसे नेता केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर रहे हैं। 

यही नहीं, सरकार से सवाल पूछने वाले भी केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर आए हैं। बीजेपी सरकार के दौरान राज्यपाल बनाए गए सत्यपाल मलिक के पीछे भी हाल में सीबीआई पड़ी थी। तो सवाल है कि क्या सच में केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाई के 95 फ़ीसदी मामले विपक्षी दलों पर रहे हैं?

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इस सवाल का जवाब उन मामलों पर नज़र डालने से भी मिल सकता है जिसमें केंद्रीय एजेंसियाँ कार्रवाई करती रही हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को ईडी ने शिक्षक भर्ती घोटाले में पूछताछ के लिए मंगलवार को तलब किया था। अभिषेक बनर्जी की ओर से कहा गया कि वह जन संजोग यात्रा में व्यस्त हैं, जिसके चलते उपलब्ध नहीं होंगे। 

इसी साल जनवरी में मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में ईडी ने टीएमसी नेता साकेत गोखले को गिरफ्तार किया था। आरोप था कि साकेत गोखले ने क्राउड फंडिंग से जुटाई गई क़रीब 1.07 करोड़ रुपये की राशि का कथित रूप से दुरुपयोग किया।

केजरीवाल भी निशाने पर

सीबीआई ने अप्रैल महीने में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पूछताछ की थी। केजरीवाल से यह पूछताछ दिल्ली की शराब नीति बनाने और उसे लागू करने में हुए कथित भ्रष्टाचार को लेकर हुई। कयास तो यह भी लगाया गया कि केजरीवाल की गिरफ़्तारी कभी भी हो सकती है। इस मामले में दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पहले से ही सीबीआई की हिरासत में हैं। उन्हें 26 फरवरी को गिरफ्तार कर लिया गया था। इससे पहले दिल्ली सरकार के एक अन्य मंत्री रहे सत्येंद्र जैन को भी गिरफ़्तार किया गया है।

opposition alleges modi govt of cbi ed central agencies misuse - Satya Hindi
ईडी ने मार्च महीने में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता से दिल्ली कार्यालय में 9 घंटे से अधिक पूछताछ की थी। दिल्ली शराब नीति मामले में उनसे यह पूछताछ की गयी थी।

सत्यपाल मलिक से पूछताछ

हाल में मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले सत्यपाल मलिक से भी एक केंद्रीय एजेंसी ने इस साल फरवरी में पूछताछ की थी। जम्मू कश्मीर में राज्यपाल रहने के दौरान सत्यपाल मलिक ने इंश्योरेंस में जो कथित भ्रष्टाचार का मामला उठाया था उस मामले में सीबीआई पूछताछ हुई। हालाँकि मलिक अब तक मामले में आरोपी या संदिग्ध नहीं है। पिछले सात महीने में यह दूसरी बार थी जब सीबीआई ने उनसे पूछताछ की।

बता दें कि सत्यपाल मलिक ने द वायर के इंटरव्यू में फरवरी 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर बमबारी के बारे में कई बातें कही थीं। पुलवामा हमले में 40 सीआरपीएफ जवान मारे गए था। सत्यपाल मलिक ने इंटरव्यू में कहा था, 'सीआरपीएफ के लोगों ने अपने जवानों को ले जाने के लिए विमान मांगा था, क्योंकि इतना बड़ा काफिला कभी सड़क मार्ग से नहीं जाता। मैंने गृह मंत्रालय से पूछा, उन्होंने विमान देने से इनकार कर दिया, जबकि सीआरपीएफ को सिर्फ पांच विमानों की जरूरत थी, उन्हें विमान नहीं दिया गया।'

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लालू परिवार पर कार्रवाई

चारा घोटाला के मामले में सजा काटने के बाद भी लालू परिवार पर लगातार केंद्रीय एजेंसियाँ कार्रवाई कर रही हैं। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से ईडी ने मई महीने में कथित जमीन के बदले नौकरी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ की। केंद्रीय एजेंसियों ने राबड़ी देवी के परिवार के लोगों, जिनमें बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, मीसा भारती, चंदा यादव और रागिनी यादव शामिल हैं, से पिछले कुछ महीनों में पूछताछ की है। इनमें से कई लोगों से सीबीआई ने भी पूछताछ की है। ईडी ने मार्च महीने में पूछताछ के बाद लालू परिवार और उनसे जुड़े लोगों के 15 ठिकानों पर छापे मारे थे।

इस मामले में कांग्रेस भी नहीं बची है। केंद्रीय एजेंसियों ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी पूछताछ की थी। तब काफ़ी हंगामा हुआ था।

कर्नाटक में चुनाव से पहले कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने दावा किया था कि बीजेपी सरकार ने कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए निकाली गई उम्मीदवारों की सूची में शामिल पार्टी नेताओं और उम्मीदवारों के खिलाफ छापेमारी करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों को भेजा है।

तमिलनाडु में मंत्री के ख़िलाफ़ आज की कार्रवाई को लेकर एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने कहा है कि अख़बारों में आए आँकड़े बताते हैं कि ईडी और सीबीआई के 95 फ़ीसदी केस विपक्षी दलों के नेताओं से जुड़े होते हैं।

दरअसल, वह पिछले साल सितंबर महीने में आई एक रिपोर्ट के संदर्भ में यह आरोप लगा रही थीं। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि यूपीए सरकार के 10 साल के शासन में यानी 2004 से 2014 तक अलग-अलग राजनीतिक दलों के 72 नेता सीबीआई के शिकंजे में आए थे। इसमें से 43 नेता विपक्षी दलों के थे। इस हिसाब से यह आंकड़ा 60 फीसदी होता है। लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की दूसरी सरकार के 2014 से पिछले साल सितंबर तक यानी 8 साल के शासन में ही 124 नेताओं के खिलाफ सीबीआई ने कार्रवाई की थी। इसमें से 118 नेता विपक्षी राजनीतिक दलों के थे और यह आंकड़ा 95 फीसदी था। 

इससे पता चलता है कि यूपीए सरकार के 10 सालों के शासन की तुलना में वर्तमान एनडीए सरकार के 8 साल के शासन में ही कहीं ज्यादा विपक्षी नेताओं पर सीबीआई ने अपना शिकंजा कसा है। द इंडियन एक्सप्रेस ने तमाम आंकड़ों की पड़ताल कर यह रिपोर्ट प्रकाशित की थी।

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कांग्रेस के नेतृत्व में चौदह विपक्षी दलों ने अपने नेताओं के खिलाफ सीबीआई और ईडी के कथित मनमाने इस्तेमाल को लेकर इस साल मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। द्रमुक, राजद, बीआरएस और तृणमूल कांग्रेस सहित 14 याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया था कि 14 राजनीतिक दल याचिका का हिस्सा हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा दर्ज किए गए 95 प्रतिशत मामले विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ थे। उन्होंने यह भी कहा था कि भाजपा में शामिल होने के बाद नेताओं के खिलाफ मामलों को अक्सर हटा दिया जाता है या ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। हालाँकि भाजपा इन आरोपों का खंडन करते हुए कहती रही है कि एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम करती हैं। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। 

वैसे, केंद्रीय एजेंसी सीबीआई को लेकर 2013 में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि 'सीबीआई पिंजरे में बंद ऐसा तोता बन गई है जो अपने मालिक की बोली बोलता है। यह ऐसी अनैतिक कहानी है जिसमें एक तोते के कई मालिक हैं।'

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क़मर वहीद नक़वी
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