पहलगाम हमले की वजह से कश्मीर घाटी के तेजी से बढ़ते पर्यटन उद्योग को नुकसान पहुंचा है। 26 पर्यटकों की मौत और 20 से ज़्यादा घायल होने के साथ सुरक्षा, पर्यटन और आर्थिक विकास को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा हो गई हैं।
कश्मीर आने वाले टूरिस्ट सीजन के लिए तैयार हो रहा था। 2023/24 में 2 करोड़ से ज़्यादा सैलानियों ने इसकी खूबसूरती का आनंद उठाया था। 2025 और भी खूबसूरत हो सकता था। अभी ट्यूलिप खिलने शुरू ही तो हुए थे कि उससे पहले ही प्रदेश के पूरे पर्यटन उद्योग पर आतंक की काली छाया पसर गई।
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र के बैसरन घाटी में हुआ आतंकी हमला न केवल प्रदेश की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है बल्कि यह अर्थव्यवस्था के लिए भी समस्याप्रद साबित हो सकता है। इस हमले में 28 पर्यटकों की मौत हो गई और 20 से अधिक लोग घायल हुए। हमले की ज़िम्मेदारी 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' नाम के आतंकवादी संगठन ने ली है, जो लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ माना जाता है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हमलावर सेना की वर्दी में थे। वे जंगल से बाहर निकले और निहत्थे पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं।
पहलगाम के जिस इलाके में यह हमला हुआ वहाँ 2000 से ज़्यादा लोग मौजूद थे। यह ऐसा समय है जब जम्मू-कश्मीर का पर्यटन उद्योग पूरे उभार पर होता है। पिछले कुछ सालों में राज्य के पर्यटन उद्योग में तेज़ी आई थी। 2022 में राज्य में 1.88 करोड़ पर्यटक आए थे और 2023 में यह संख्या 2.25 करोड़ के पार हो गई थी। सरकार की 'होमस्टे स्कीम', नई टूरिस्ट साइट्स, और बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर ने स्थानीय लोगों को रोजगार और व्यवसाय के नए मौके दिए थे। इसके अलावा सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में 75 नए पर्यटन स्थलों को विकसित भी किया था।
इन तमाम बदलावों के साथ 2024 में, जम्मू-कश्मीर ने 2.36 करोड़ पर्यटकों की मेजबानी की, जो अब तक का एक रिकॉर्ड है।
अगर राज्य की अर्थव्यवस्था को देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर के आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के मुताबिक राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 7.06% की दर से बढ़त हुई थी। इसमें पर्यटन का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में योगदान लगभग 6% से 7% के बीच का है। इससे पहले के वित्तीय वर्ष में भी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की डर लगभग बराबर ही थी। कोविड के बाद राज्य में हालत बेहतर हुए हैं। इस स्थिर होती आर्थिक वृद्धि में पर्यटन उद्योग की अहम भूमिका रही है। इस बढ़ते रुझान को देखते हुए, सरकार ने अगले चार से पांच वर्षों में पर्यटन के योगदान को GDP में 15% तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
लेकिन इस एक हमले ने पूरे पर्यटन कारोबार को ठहराव की कगार पर ला दिया है। यदि हालिया आतंकी घटनाओं के चलते पर्यटन प्रभावित होता है, तो यह GSDP की गति को धीमा कर सकता है। इसलिए अब राज्य के सामने बड़ी चुनौती यह है कि वह सुरक्षा को मज़बूत करे और पर्यटन में लोगों का भरोसा फिर से कायम करे।
लेकिन इस एक हमले ने पूरे पर्यटन कारोबार को ठहराव की कगार पर ला दिया है। यदि हालिया आतंकी घटनाओं के चलते पर्यटन प्रभावित होता है, तो राज्य के विकास की गति को धीमा कर सकता है। यह ठीक वैसा ही होगा जब 1989 से बाद कश्मीर में हुआ था। 1989 में कश्मीर जाने वाले सात लाख से ऊपर लोग थे लेकिन जैसे ही राज्य में आतंकवाद शुरू हुआ, सैलानियों की संख्या घट गई। हालात इतने खराब हो गये 1996 में कुछ हज़ार लोग ही कश्मीर पहुंचे थे। कश्मीर नाम का डर सैलानियों के सिर पर चढ़कर बोल रहा था। इससे राज्य का पूरा पर्यटन उद्योग प्रभावित हो रहा था। 1989 में टूरिज़म कश्मीर की जीडीपी का 9% था। 1991 में पर्यटन से जुड़े लोग भूखे मर रहे थे। 1989 से 1996 तक लगातार सैलानियों की संख्या घटती गई। 1989 से2000 के बीच राज्य में पौने तीन करोड़ पर्यटक कम आये। इससे 3.6 अरब डॉलर की कमाई का नुक़सान हुआ। कश्मीर का मशहूर कार्पेट उद्योग चौपट हो गया। एक हज़ार से ज़्यादा हाउसबोट तबाह हो गईं। इससे न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को धक्का पहुँचा, रोज़गार के मौके भी घटते चले गये। इसका असर राज्य के युवाओं पर भी पड़ा। बेरोजगार युवा आतंकवादी संगठनों के लिए आसान शिकार थे।
अगर 2022, 2023 के रिकार्ड को देखा जाए तो सबसे अधिक पर्यटक अप्रैल से जुलाई के बीच कश्मीर पहुंचे थे। इस साल भी बुकिंग रफ्तार यूं ही चल रही थी। लाखों के आने की उम्मीद थी मगर इस हमले के बाद स्थानीय होटल मालिकों, ट्रैवल एजेंट्स, टूर गाइड्स और टैक्सी ड्राइवरों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।
कई पर्यटकों ने डर की वजह से अपनी बुकिंग्स रद्द कर दी हैं। जो सैलानी वहाँ हैं ताबड़तोड़ लौटने की तैयारी में लगे हुए हैं। एक हमला और चहकते-महकते कश्मीर के नामी टुरिस्ट इलाके सन्नाटे में डूब गये। वैली के प्रसिद्ध स्थलों पर इस वक़्त सन्नाटा है और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
गौर करने वाली बात है कि पर्यटन उद्योग जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। लाखों स्थानीय लोग इसी पर निर्भर हैं। पर्यटन उद्योग कई अन्य स्थानीय उद्योगों से जुड़ा हुआ है मसलन शॉल, सेब, अखरोट, केसर और सजावटी सामान बनाने वाले लोग। पर्यटन से सीधे तौर पर जुड़ा टैक्सी, होटल, रेस्टोरेंट व्यवसाय तो है।
हमला होते ही राज्य में ऐसा माहौल बना है जिसमें न केवल पर्यटक, बल्कि निवेशक भी असमंजस में हैं। पहले जहां होटलों और रेस्टोरेंट्स में रौनक थी, वहीं अब इस हमले के बाद फटाफट बुकिंग्स बंद हो रही हैं। राज्य सरकार के अनुसार, दिसंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर को ₹1.63 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिल चुके थे। इनमें से बड़ी हिस्सेदारी हॉस्पिटैलिटी, टूरिज़्म और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों की थी। लेकिन अब निवेशकों की प्राथमिक चिंता सुरक्षा बन गई है।
यह घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा के बीच घटी, जिसे बीच में छोड़कर उन्होंने दिल्ली लौटकर उच्च स्तरीय बैठक बुलाई। गृह मंत्री अमित शाह ने श्रीनगर पहुँचकर स्थिति की समीक्षा की और सख्त कदमों की बात कही। इस घटना की अंतरराष्ट्रीय रूप से निंदा भी हुई। अमेरिका, रूस और इटली सहित कई देशों ने हमले की निंदा की और भारत के साथ एकजुटता जताई।
घाटी के लोगों ने भी एक जुट होकर इस घटना का विरोध किया। कई व्यापारियों और पर्यटन व्यवसायियों ने सरकार से अपील की है कि वे जल्द सुरक्षा व्यवस्था बहाल करें ताकि पर्यटक वापस लौटें। यदि हालात जल्द सामान्य नहीं हुए तो नुकसान लंबे समय तक झेलना पड़ सकता है। राज्य की पूरी अर्थ व्यवस्था पर असर पड़ सकता है।
इस हमले ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पर्यटन जैसी सकारात्मक गतिविधियों को सफल बनाने के लिए केवल प्रचार या योजनाओं से काम नहीं चलेगा। मजबूत और भरोसेमंद सुरक्षा तंत्र की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।