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फ़ोटो साभार: फ़ेसबुक/सिटीज़न जर्नलिस्ट

पाक से लौटीं गीता को 20 साल बाद आख़िरकार माँ मिलीं!

पाकिस्तान से लौटीं गीता को आख़िरकार अपनी माँ मिल गई लगती हैं। यह वही मूक-बधिर गीता हैं जिन्हें पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज की पहल और कोशिशों से 2015 में भारत लाया गया था। उससे क़रीब 15 साल पहले वह अपने परिवार से बिछड़ गई थीं। 

अब जिस महिला ने गीता की माँ होने का दावा किया है उन्होंने कई निशान वही बताए हैं जो गीता के शरीर पर हैं और उन्होंने उस तरह की सटीक जानकारियाँ दी हैं जो उनकी माँ होने के दावे की पुष्टि करती लगती हैं। लेकिन डीएनए से यह पुष्टि करने के बाद ही कि असल माँ वही महिला हैं, गीता को उस महिला को सौंपा जाएगा।

डीएनए से पुष्टि इसलिए कि अब तक कई दंपतियों ने गीता को अपनी बेटी होने के दावे किए हैं, लेकिन डीएनए मैच नहीं हुआ। अब महाराष्ट्र से एक महिला सामने आयी हैं, जिन्होंने गीता का असली नाम और तमाम पहचान से जुड़े साक्ष्य पेश किये हैं। 

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यह महिला महाराष्ट्र की मीना पांद्रे हैं। वह अपने परिजनों के साथ गीता से गुरुवार को मिली हैं। औरंगाबाद शहर के वाजुल क्षेत्र में रहने वाली मीना पांद्रे ने गीता को अपनी बेटी बताया है। मीना का दावा है कि गीता का असली नाम राधा वाघमारे है। गीता के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनकी मृत्यु के बाद मीना ने दूसरी शादी कर ली थी। 

राधा (पाकिस्तान में मिली गीता) मीना पांद्रे से कैसे बिछड़ी इसकी पूरी और सही कहानी तो अभी सामने नहीं आ सकी है। मगर सूत्र बता रहे हैं कि मीना पांद्रे ने राधा के पेट पर जले के निशान होने का दावा किया। पहली पड़ताल में यह सही पाया गया।

यहाँ बता दें कि गीता को जब भारत लाया गया था तब उसने इशारों में बताया था कि वह महाराष्ट्र की रहने वाली है। औरंगाबाद में रहने संबंधी सूचनाएँ भी गीता के इशारों में मिली थी। अपने घर के आसपास का संकेतों में जो विवरण गीता ने दिया था, वही मीना पांद्रे द्वारा दी गई जानकारियों से मैच हो रहा है।

मीना पांद्रे द्वारा दी गई तमाम जानकारियों का बारीकी के साथ परीक्षण अभी होगा। इसके अलावा मीना और राधा के डीएनए के मिलान भी होगा। यदि डीएनए की रिपोर्ट मैच हो गई तो राधा को मीना एवं उसके परिजनों को सौंपने की कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा।

पाकिस्तान के रेलवे स्टेशन पर मिली थी गीता

मूक-बधिर गीता 12 साल की उम्र में पाकिस्तान के एक रेलवे स्टेशन पर पायी गई थी। पाकिस्तान के एक एनजीओ ने उसे अपने पास रख लिया था। ईधी वेलफेयर ट्रस्ट नामक एनजीओ से मिली सूचनाओं के बाद भारत सरकार ने गीता को भारत लाने के प्रयास आरंभ किये थे।

मोदी सरकार में विदेश मंत्री रहीं स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने पहल की। सफलता भी मिली। गीता को 26 अक्टूबर 2015 को भारत लाया गया था।

भारत पहुँचने के बाद गीता की मुलाक़ात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कराई गई थी। बाद में गीता को इंदौर की मूक-बधिरों की संस्था में रखा गया था। यहीं से उसके परिवार की तलाश भी आरंभ हुई थी। चूँकि गीता न तो बोल सकती थी और ना ही सुन पाती थी, लिहाजा काफ़ी परेशानियाँ आईं। गीता पढ़ी-लिखी भी नहीं थीं। ऐसे में उनसे कोई जानकारी निकलवा पाना मुश्किल होता रहा। बाद में गीता को महाराष्ट्र के परभणी पहुँचा दिया गया था। गीता की मां और परिजन होने का दावा करने वाले लोग वहीं उनसे मिले हैं।

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दो दर्जन दावे ग़लत साबित हुए हैं

गीता को 2015 में इंदौर लाए जाने के बाद क़रीब दो दर्जन दंपतियाँ पहुँचीं थीं। देश के अलग-अलग हिस्सों से पहुँची इन दंपतियों ने गीता के माता-पिता होने का दावा किया। लेकिन किसी का डीएनए मैच नहीं हुआ। बावजूद इसके संस्था और ज़िम्मेदार प्रशासन ने उसके माता-पिता की तलाश जारी रखी। वर्तमान में गीता महाराष्ट्र के परभणी में रह रही हैं। पाकिस्तान के ईधी वेलफेयर ट्रस्ट की पूर्व प्रमुख दिवंगत अब्दुल सत्तार ईधी की पत्नी बिलकिस ईधी को भी गीता के इस कथित परिवार से मिलने की जानकारी दी गई है। उन्होंने इस पर खुशी जताई है।

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संजीव श्रीवास्तव
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