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संसद में हंगामा: विपक्ष में रहते हुए क्या तर्क देती थी बीजेपी?

संसद के मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा और राज्यसभा से कई विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया है। इसके पीछे तर्क यह दिया गया है कि इन सांसदों का व्यवहार बेहद खराब था और वे सदन में हंगामा कर रहे थे। 

यह बात सही है कि संसद में हंगामे की वजह से बहुत कीमती समय बर्बाद होता है और पैसे की भी बर्बादी होती है। लेकिन जब बीजेपी विपक्ष में थी तब वह संसद में जमकर हंगामा करती थी, इसे बाधित करती थी और इसके बचाव में क्या तर्क देती थी, इस बारे में जानना जरूरी है।

जनवरी, 2011 में राज्यसभा में विपक्ष के तत्कालीन नेता अरुण जेटली ने रांची में कहा था कि संसद का काम चर्चा कराना है लेकिन कई बार मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया जाता है और ऐसे हालात में संसद में गतिरोध होना लोकतंत्र के पक्ष में होता है। जेटली ने कहा था कि इसलिए संसद का बाधित होना अलोकतांत्रिक नहीं है।

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अगस्त, 2012 में जेटली ने एक बार फिर इसी विषय पर बात करते हुए कहा था कि कुछ ऐसे मौके होते हैं जब संसद के बाधित होने से देश को फायदा होता है। जेटली ने कहा था कि हमारी रणनीति हमें इस बात की इजाजत नहीं देती है कि सरकार को संसद का उपयोग उसे जवाबदेह बनाए बिना करने दिया जाए। उन्होंने कहा था कि हम सरकार को बहस के जरिए बचने का रास्ता नहीं देना चाहते हैं।

Parliament Monsoon Session 19 Opposition MPs suspended unruly behaviour - Satya Hindi

उस दौरान संसद के मॉनसून सत्र में जमकर हंगामा हुआ था और सितंबर 2012 में लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था कि संसद को न चलने देना भी अन्य रूपों की तरह ही लोकतंत्र का एक रूप है। 

सुषमा स्वराज ने यह बात तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान पर कही थी जिसमें मनमोहन सिंह ने कहा था कि बीजेपी द्वारा संसद को ठप करना लोकतंत्र को नकारने जैसा था। उस वक्त बीजेपी ने तत्कालीन यूपीए सरकार पर कोल ब्लॉक बंटवारे को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।

सुषमा स्वराज ने कहा था कि बीजेपी को संसद को इसलिए बाधित करना पड़ा क्योंकि वह सरकार के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करना चाहती थी। उन्होंने यह भी कहा था कि संसद को चलाना सरकार का काम है ना कि विपक्ष का।
जिस दिन सुषमा स्वराज ने यह बात कही थी उसी दिन अरुण जेटली ने भी मॉनसून सत्र को लगातार बाधित किए जाने का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था, “इससे पहले भी संसद का एक सत्र 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर बर्बाद हो चुका है। इससे देश के टेलीकॉम सेक्टर को साफ करने में मदद मिली है। उम्मीद है कि संसद के इस सत्र से मिले फायदों से आने वाली सरकारों को प्राकृतिक संसाधनों के बंटवारे की प्रक्रिया को और साफ-सुथरा बनाने में मदद मिलेगी।”
Parliament Monsoon Session 19 Opposition MPs suspended unruly behaviour - Satya Hindi

पैंफलेट बांटने तक पर रोक 

लेकिन आज की स्थिति ऐसी है कि बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के वक्त संसद परिसर में प्ले कार्ड ले जाने, पैंफलेट बांटने तक पर रोक लगा दी गई है। मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले लोकसभा सचिवालय ने एडवाइजरी जारी कर कहा था कि कोई भी लिटरेचर, प्रश्नावली, पैंफलेट, प्रेस नोट, लीफलेट या अन्य कोई प्रकाशित सामग्री स्पीकर की अनुमति के बिना संसद भवन के परिसर में नहीं बांटी जानी चाहिए। 

यह भी आदेश दिया गया था कि सांसद किसी भी तरह के प्रदर्शन, धरना, हड़ताल, उपवास या फिर कोई धार्मिक कार्यक्रम करने के उद्देश्य से संसद भवन के परिसर का इस्तेमाल ना करें। कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने ट्वीट कर इस पर तंज कसा था और कहा था कि धरना (डरना) मना है।

उससे पहले लोकसभा सचिवालय की ओर से जारी किए गए बुलेटिन में कुछ शब्दों को असंसदीय करार दिए जाने को लेकर अच्छा-खासा हंगामा हुआ था। तब सवाल उठा था कि सरकार आखिर कुछ शब्दों से इतना डरती क्यों है।  

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संसद के अमूमन सभी सत्रों में हंगामा होता रहा है और सांसद तमाम मुद्दों से जुड़ी अपनी मांगों को लेकर सदन में प्लेकार्ड, पैंफलेट आदि दिखाते रहे हैं। संसद परिसर में सांसद धरना भी देते रहे हैं। ऐसे में इस तरह की रोक लगाने का मतलब समझ नहीं आता। 

सवाल यह है कि बीजेपी जब विपक्ष में थी तो वह संसद को बाधित किए जाने के अपने क़दमों का खुलकर बचाव करती थी लेकिन आज जब विपक्ष जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करना चाहता है, उन्हें लेकर आवाज उठा रहा है, प्रदर्शन कर रहा है तो खराब व्यवहार को वजह बताकर विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया जा रहा है।

विपक्षी सांसदों का निलंबन एक तरह से उन्हें संसद में उनकी बात को मुखरता से ना उठाने देने की कोशिश है। संसद बहस के लिए ही बनी है, जहां पर नए विधेयकों और तमाम मुद्दों पर पक्ष और विपक्ष में जमकर तू-तू, मैं-मैं तकरार होती है और उसके बाद विधेयक पास या रद्द होते हैं। 

अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए संसद बनी है और विपक्षी सांसद जब जीएसटी की दरों में बढ़ोतरी, महंगाई, अग्निपथ योजना, जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप को लेकर संसद परिसर में चर्चा करना चाहते हैं तो सरकार को इस पर चर्चा करानी चाहिए। चर्चा ना होने पर विपक्षी सांसद इसके विरोध में नारेबाजी करते हैं, संसद परिसर में प्रदर्शन करते हैं तो इस पर उन्हें निलंबित कर दिया जाता है। 

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निश्चित रूप से लोकसभा और राज्यसभा में बीजेपी के फ्लोर लीडर्स और नेताओं को अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के पुराने बयानों को जरूर पढ़ लेना चाहिए। 
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क़मर वहीद नक़वी
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