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संसद सुरक्षा भेदने में 'नौसिखिए' ही, या कोई हैंडलर भी? 

संसद। देश की सबसे ज़्यादा सुरक्षित जगहों में से एक। देश भर के जनप्रतिनिधियों की बैठने की जगह। कम से कम चार स्तर की सुरक्षा। कई मेटल डिटेक्टर्स से गुजरने की ज़रूरत। एक सिक्का तक ले जाने की मनाही। और दो युवा संसद में रंगीन धुआँ फेंकने वाले डिब्बे (बम) लेकर पहुँच गए। अब कहा जा रहा है कि इन दो युवाओं का साथ चार और लोग दे रहे थे। यानी कुल छह लोग थे और इनमें से पाँच पकड़े जा चुके हैं। ललित झा नाम का आरोपी अभी भी गिरफ़्त से दूर है। तो क्या इन छह नौसिखियों ने देश की सबसे सुरक्षित जगहों में से एक संसद की सुरक्षा को भेद दिया? क्या संसद की सुरक्षा इतनी कमजोर है या फिर उस सुरक्षा को भेदने वाली कोई ताक़त मज़बूत थी? इसके पीछे क्या ये छह लोग ही हैं या फिर कोई ताक़तवर हैंडलर भी इनके पीछे है?

इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह जान लें कि संसद में बुधवार को क्या हुआ और संसद की सुरक्षा कैसी है। संसद में बुधवार को तब अफरा-तफरी का माहौल बन गया जब दो लोग सुरक्षा को भेदते हुए लोकसभा में घुस गए और आँसू गैस जैसी कोई चीज छोड़ी। इससे धुआँ निकल रहा था। टेलीविज़न फ़ुटेज में वे एक डेस्क से दूसरे डेस्क पर कूदते हुए और सदन की वेल की ओर जाते हुए दिखे थे। दोनों को आख़िरकार पकड़ लिया गया। उनके पास से विजिटर पास बरामद हुआ जिसको बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा के कार्यालय द्वारा जारी किया गया था। बाद में पता चला कि संसद परिसर में दो लोग और पकड़े गए हैं। फिर एक और की गुरुग्राम से गिरफ़्तारी हुई। ललित झा नाम का एक आरोपी फरार है।

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ये सभी छह देश के अलग-अलग हिस्सों से हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक़ बुधवार को संसद के अंदर और बाहर से गिरफ्तार किए गए चारों लोग करीब डेढ़ साल पहले फेसबुक पर मिले थे और भगत सिंह के नाम पर बने समूह का हिस्सा थे। पुलिस सूत्रों ने कहा कि दर्शक दीर्घा से लोकसभा कक्ष में कूदने वाले मनोरंजन डी और सागर शर्मा तथा संसद के बाहर धुएं का गुबार खोलने वाले नीलम आजाद और अमोल शिंदे पिछले कुछ दिनों से अलग-अलग समय पर राजधानी पहुंचे थे। ललित झा नाम के एक अन्य आरोपी इन्हें गुरुग्राम में विशाल शर्मा उर्फ विक्की के घर ले गया था। विक्की को बाद में उसके आवास से पुलिस ने उठाया।

मनोरंजन डी कर्नाटक के मैसूर से, सागर शर्मा यूपी के लखनऊ से, अमोल शिंदे महाराष्ट्र के लातूर से और नीलम आज़ाद हरियाणा के जिंद की हैं। फरार आरोपी ललित झा बिहार का बताया जा रहा है। संसद भवन में घुसने का काम इतना अनाड़ी वाला काम तो नहीं हो सकता है कि कहीं से भी पाँच-छह लोग इकट्ठे हुए और संसद में हंगामा कर आएँ। ऐसा इसलिए क्योंकि वहाँ की सुरक्षा व्यवस्था बेहद कड़ी है और कई स्तर की जाँच के बाद ही अंदर जाया जा सकता है। 

जानिए, कैसी है संसद की सुरक्षा

राज्यसभा और लोकसभा सचिवालय की संसदीय सुरक्षा सेवा संसद भवन परिसर में सुरक्षा व्यवस्था देखती है। संसद के सुरक्षा तंत्र के केंद्र में संयुक्त सचिव (सुरक्षा) होता है। उस पर संसद सुरक्षा सेवाओं, दिल्ली पुलिस, संसद ड्यूटी समूह और इससे जुड़ी सुरक्षा एजेंसियों की देखरेख की जिम्मेदारी होती है।

संसद में बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था है, जिसमें अत्याधुनिक तकनीकों और पारंपरिक सुरक्षा उपायों, दोनों को शामिल किया गया है। टायर किलर और सड़क पर अवरोधक हैं। इसके अलावा एक सिक्योरिटी पावर फेंस भी है। बेहतर समन्वय के लिए एक संयुक्त कमान और नियंत्रण केंद्र भी है।

किस स्तर की जाँच से गुजरना होता है?

विजिटर पास जारी करने से पहले बैकग्राउंड की जाँच अनिवार्य है। विजिटर को संसद सदस्य द्वारा हस्ताक्षरित प्रवेश की अनुशंसा करते हुए पत्र दिखाना होता है। जगह-जगह गहन तलाशी होती है और उनके सामानों की जाँच होती है। फोन, बैग, पेन, पानी की बोतलें और यहाँ तक कि सिक्कों को ले जाने की भी अनुमति नहीं है और उन्हें अपना आधार कार्ड भी दिखाना होता है। कम से कम तीन फुल-बॉडी स्कैनर भी पार करने होते हैं। इस प्रक्रिया के बाद ही विजिटर को पास दिए जाते हैं।

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पास मिलने के बाद लोहे के गेट से संसद क्षेत्र में प्रवेश होता है। सुरक्षा शस्त्रागार में डोर-फ्रेम मेटल डिटेक्टर से गुजरना होता है। सुरक्षा जांच के दूसरे स्तर में कर्मचारी यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी विजिटर को वैध प्रवेश परमिट के आधार पर ही प्रवेश की अनुमति है। कर्मचारी यह भी सुनिश्चित करते हैं कि विजिटर के सभी बैग/ब्रीफकेस की बैगेज स्कैनर द्वारा जांच की जाए। दर्शक दीर्घा में प्रवेश से पहले एक और सुरक्षा जांच की जाती है। पब्लिक गैलरी चेकिंग पोस्ट पर तैनात सुरक्षा कर्मचारी यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी विजिटर की डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर/हैंड हेल्ड मेटल डिटेक्टर के माध्यम से तलाशी ली जाए। यहाँ पर कर्मचारी विजिटर के कार्ड की भी सावधानीपूर्वक जांच करते हैं और उन्हें दी गई मंजूरी वाली सूची से मिलान करते हैं।

पब्लिक गैलरी में प्रवेश करते ही सुरक्षा कर्मचारियों द्वारा विजिटर के पास की फिर से जाँच की जाती है। इसके बाद भी विजिटर पर कड़ी निगरानी रखी जाती है।

तो सवाल है कि इतनी गहन जाँच से क्या नौसिखिए युवा बचकर संसद में प्रवेश भी कर सकते हैं और क्या ऐसा हंगामा कर सकते हैं? वो भी तब जब सभी आरोपी अलग-अलग जगहों से हों?

सवाल है कि आख़िर इनके बीच में मुलाक़ात कैसे हुई और इनको इस काम के लिए राजी किसने किया? क्योंकि संसद के भीतर जाकर ऐसे हंगामा करने का अंजाम उन्हें भी पता होगा। उन्हें पता होगा कि संसद भवन में अंदर जाने का रास्ता तो होगा लेकिन बाहर आने का कोई रास्ता नहीं होगा। क्या यह 'सुसाइड' करने जैसा क़दम नहीं होगा? यह सब जानते हुए ऐसा क़दम उठाने की हिम्मत कौन कर सकता है? क्या यह आरोपियों के ब्रेनवाश जैसी प्रक्रिया के बिना संभव है? या फिर किसी ताक़तवर हैंडलर के बिना ऐसा मुमकीन किया जा सकता है? 

क्या ऐसा काम संसद की पूरी सुरक्षा को क़रीब से जाने बिना संभव है? संसद में रंगीन धुआँ फेंकने वाले डिब्बे (बम) लेकर घुस जाना क्या बड़े से बड़े शातिर अपराधी के लिए भी आसान हो सकता है, यदि उसे संसद की सुरक्षा व्यवस्था की पूरी जानकारी नहीं हो?

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वैसे, जो अब तक पकड़े गए हैं उनके बारे में शातिर अपराधी होने की ख़बर नहीं आई है। मनोरंजन डी कर्नाटक का रहने वाला है। वह इंजीनियरिंग का स्टूडेंट है। मनोरंजन के माध्यम से ही मैसूर के बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा के कार्यालय के ज़रिए अपना विजिटर पास जारी कराया गया था। मनोरंजन का साथी सागर शर्मा की मां ने कहा है कि दो दिन पहले वह यह कहकर घर से निकला था कि वह कुछ काम के लिए दोस्तों के साथ दिल्ली जा रहा है। वह ई-रिक्शा चलाता था। पुलिस के मुताबिक, सागर शर्मा का परिवार किराए के मकान में रहता है। उसके पिता रोशन लाल बढ़ई का काम करते हैं।

नीलम की मां सरस्वती ने कहा कि मेरी लड़की बेरोजगारी से तंग थी। उन्होंने कहा कि हमें पता था कि वो हिसार में पढ़ाई कर रही है। नीलम बीए, एमए, बीए़ड और कैट क्लाईफाइड हैं। वह बेरोजगारी का मुद्दा उठाती रही हैं। पुलिस का कहना है कि अमोल ग्रेजुएट है। अमोल ने पुलिस और सेना की भर्ती परीक्षाओं की तैयारी के दौरान दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम भी किया है। अमोल के दो भाई और माता-पिता भी दिहाड़ी मजदूरी करते हैं।

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एक अन्य आरोपी ललित झा पर आरोप है कि घटना के दौरान वह संसद भवन के बाहर मौजूद था। जब पुलिस ने नीलम और अमोल को पकड़ा तो ललित मौके से फरार हो गया। ललित ने अमोल और नीलम का संसद परिसर के बाहर कैन से धुआं फैलाने वीडियो बनाया था। बाद में उसने वीडियो को इंस्टाग्राम पर अपलोड कर दिया था। पुलिस ने कहा कि ललित ने ही नीलम, अमोल, सागर और मनोरंजन के मोबाइल फोन भी अपने पास रख लिए थे। रिपोर्ट है कि क़रीब डेढ़ साल पहले वे फ़ेसबुक पर संपर्क में आए थे। महीनों से वे इसकी तैयारी में थे। पुलिस सूत्रों के अनुसार आरोपियों ने जनवरी से ही सुरक्षा भेदने की प्लानिंग शुरू कर दी थी। मनोरंजन ने तो रेकी भी की थी और मानसून सत्र के दौरान संसद भवन का दौरा भी किया था।

तो सवाल वही है कि क्या इनके बैकग्राउंड से कहा जा सकता है कि वे अपने दम पर भारत की संसद की सुरक्षा को भेद सकते हैं? आख़िर ऐसे 'आम लोगों' के पास संसद की पूरी सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी कैसे हो सकती है और यह भी कि कैसे इसे भेदा जा सकता है? सवाल यह भी है कि क्या इनके पीछे कोई ताक़तवर हैंडलर था? कहा जा रहा है कि सुरक्षा व्यवस्था में चूक की कुछ वजहें रहीं- कम सुरक्षा कर्मचारी, नए संसद भवन में सदन के फर्श से दर्शक दीर्घा की कम ऊंचाई, हाल ही में विजिटर की संख्या में वृद्धि, और जूतों की जाँच नहीं किया जाना। सवाल है कि क्या ये सब जानकारी पाना आम बात है?

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क़मर वहीद नक़वी
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