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हैदराबाद : मुठभेड़ के बाद जश्न क्यों, क्यों बढ़ रही है भीड़तंत्र की मानसिकता?

हैदराबाद में बलात्कार और हत्या के चारों अभियुक्तों की पुलिस मुठभेड़ में मौत और उसके बाद वहाँ जश्न से कई सवाल खड़े हो गए हैं। ये सवाल पुलिस प्रशासन और उनके कामकाज के तौर-तरीकों ही नहीं, न्याय व्यवस्था और आम लोगों की बदलती मानसिकता पर भी सवाल उठाते हैं। बढ़ती भीड़ तंत्र वाली मानसिकता और किसी को न्याय दिलाने या न्याय पाने के लिए क़ानून हाथ में लेने की बढ़ती वारदात भी सवाल उठाते हैं कि आख़िर यह हो क्या रहा है, क्यों लोग ऐसा कर रहे हैं। 

हैदराबाद में पशु चिकित्सक के साथ कथित तौर पर  बलात्कार और उसके बाद हत्या करने वाले चारों अभियुक्त पुलिस मुठभेड़ में मारे गए, ऐसा दावा  पुलिस कर रही है। पुलिस का कहना है कि वह वारदात का संभावित दृश्य आँकने के लिए चारों अभियुक्तों को मौक-ए-वारदात पर ले गई, अभियुक्तों ने भागने की कोशिश की, नतीजतन पुलिस को गोलियाँ चलानी पड़ी। पुलिस का यह भी कहना है कि वह रात के अंधेरे में उस जगह अभियुक्तों को इसलिए ले गई कि उसे आम जनता के गुस्से से बचाया जा सके ताकि कोई अप्रिय घटना न हो जाए। 

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पर इसके बाद जो कुछ हुआ वह वाकई चौंकाने वाला है। इस मुठभेड़ पर लोग जश्न मना रहे हैं, पुलिस के समर्थन में नारे लगा रहे हैं। लोगों ने पुलिस अफ़सरों को सैल्यूट किया, भीड़ ने उन्हें गोद में ले कर ऊपर उछाला जैसा किसी टीम के जीतने पर उसके कप्तान या बड़े खिलाड़ियों के साथ किया जाता है। 

मृतका की पड़ोस में रहने वाली महिलाओं ने पुलिस अफ़सरों को मिठाइयां, खिलाईं, एक महिला ने उन्हें सैल्यूट दागा और दूसरी महिलाओं ने उनका स्वाग किया, उनकी तारीफ की। पुलिस के इन अफ़सरों ने इन महिलाओं के साथ से मिठाई लीं और खुशी-खुशी वह खाईं। 
वहाँ जमा लोगों ने पुलिस वालों पर फूल बरसाए। गुलाब फूल की पंखुड़ियों से वह इलाक़ा भर गया। 

इसके तुरन्त बाद देखते ही देखते उस जगह सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो गई। लोगों ने तेलंगाना ‘पुलिस जिन्दाबाद’ और ‘डीसीपी जिंदाबाद’ के नारे लगाए। इसके बाद लोगों ने पुलिस वालों को उठा लिया और उन्हें गोद में ले कर हवा में उछाला। ऐसा कई बार हुआ। ऐसा तब होता है जब कोई टीम कोई बहुत बड़ा कारनामा कर दिखाती है तो लोग उसके कप्तान, कोच या किसी बहुत बड़े खिलाड़ी को इस तरह का सम्मान देते हैं। दूसरी बार क्रिकेट विश्व कप जीतने के बाद स्टेडियम से भीड़ अंदर घुस गई थी और उन्होंने सचिन तेंदुलकर को इसी तरह हवा में उछाला था। लगभग ऐसा ही दृश्य हैदराबाद में तब देखा गया जब पुलिस मुठभेड़ में चार निहत्थे अभियुक्त मारे गए। 

मृतका के पिता ने कहा कि उनकी बेटी की आत्मा को इससे शांति मिली। दिल्ली में 2012 में हुई निर्भया बलात्कार-हत्या कांड की पीड़िता की माँ ने कहा कि वे इससे बेहद खुश हैं। उन्होंने कहा, 'बहुत खुश हूँ, न्याय मिल गया।'

समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सांसद जया बच्चन जब संसद पहुँची तो पत्रकारों ने उनकी प्रतिक्रिया लेनी चाही। उन्होंने कहा, ‘देर आए, दुरुस्त आए।’ पत्रकारों ने यह सवाल दुहराया, उन्होंने कहा, ‘देर आए, देर आए, बहुत देर आए।’
कांग्रेस के नेता और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह बघेल ने इस वारदात को उचित ठहराया। उन्होंने कहा, ‘जब अपराधी भागने लगते हैं, पुलिस के पास कोई विकल्प नहीं बचता है। यह कहा जा सकता है कि न्याय किया गया है।’ 
पुलिस मुठभेड़ को उचित ठहराने और अभियुक्तों की मौत को न्याय दिलाने की बात कहने वाले अकेले मुख्यमंत्री बघेल नहीं है। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री रबड़ी देवी ने भी इसे सही ठहराया है। उन्होंने कहा, ‘हैदराबाद में जो कुछ हुआ, उससे निश्चित रूप से अपराध पर रोक लगेगी। बिहार में भी महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध बढ़ रहे हैं। राज्य सरकार लापरवाह है और कुछ कर नहीं रही है।’  

वे चारों अभी अभियुक्त थे, इस मामले की जाँच बेहद शुरुआती स्थिति में है, अभी उन्हें अदालत में पेश भी नहीं किया गया था, कोई चार्जशीट तैयार नहीं की गयी थी, मामले की सुनवाई नहीं हुई थी। भारतीय दंड संहिता के हिसाब से जब तक अदालत से दोष साबित नहीं होता, हर कोई निर्दोष है। नियम के मुताबिक़, पूरे मामले की जाँच होनी चाहिए थी, अभियुक्तों को अदालत में पेश किया जाना चाहिए था, उन्हें अपनी सफ़ाई पेश करने का हक़ था। अदालत उन्हें जो सज़ा देती, वह सज़ा उन्हें मिलनी ही चाहिए थी। 

पर लोग खुश हैं कि सज़ा दे दी गई। एक राज्य के मुख्यमंत्री भी यही कहते हैं। सवाल यह है कि सज़ा देना पुलिस का काम है या अदालत का? यदि पुलिस ही सज़ा दे दे तो फिर अदालतों की ज़रूरत ही क्या है?इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि क्या इससे लोगों की निराशा नहीं झलकती है कि अदालत में तो न्याय मिलता नहीं, चलो, पुलिस ने ही ही न्याय कर दिया। क्या यह अदालतों पर से लोगों के उठते भरोसे का संकेत नहीं है। यदि ऐसा है तो यह बेहद ख़तरनाक स्थिति है। 

यह सवाल इसलिए भी अहम है कि तुरत-फुरत न्याय देने की मानसिकता बीते कुछ सालों में बढ़ी है। इसी वजह से भीड़ तंत्र की मानसिकता बढ़ी है और भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार डालने की वारदात भी। झारखंड के सरायकेला-खरसाँवा में चोरी के एक अभियुक्त को लोगों ने बुरी तरह पीटा था, बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी। उत्तर प्रदेश में बच्चा चोरी के शक में भीड़ के द्वारा पीट-पीट कर मार डालने की कई वारदात उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में हुई। देश के दूसरे कई हिस्सों से भी इस तरह की खबरें आई हैं। क्या अब न्याय लोग अपने हाथ में लेंगे और न्याय सड़कों पर ही होगा, ये सवाल भी लाज़िमी हैं। 
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क़मर वहीद नक़वी
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