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वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण।

जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना मात्र अवमानना का आधार नहीं: प्रशान्त भूषण

‘भ्रष्टाचार का आरोप मात्र लगाना अवमानना का आधार नहीं बन सकता है, भ्रष्टाचार की परिभाषा में केवल पैसा लेना ही नहीं शामिल है, भ्रष्टाचार की परिभाषा में भाई-भतीजावाद, पक्षपात, निर्णय लेने के अधिकार का ग़लत प्रयोग करना आदि बातें भी शामिल होती हैं।’ यह कहना है जाने माने वकील प्रशान्त भूषण का। साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट के 16 में से आधे मुख्य न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के अवमानना के मामले में उनकी यह सफ़ाई आई है। इनको हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट पर ट्वीट करके बदनाम करने के मामले में दोषी ठहराया है।

साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट के 16 में से आधे मुख्य न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले वकील प्रशान्त भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के जारी नोटिस पर जवाब दाखिल किया। इसमें उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये हैं। प्रशान्त भूषण की तरफ़ से जवाब दाखिल करते हुए कामिनी जायसवाल ने अपने हलफ़नामे में कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस पी भरुचा ने कहा है कि न्यायपालिका में 20 फ़ीसदी जज भ्रष्ट हैं जबकि पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सथासिवम ने एक अख़बार को इंटरव्यू देते हुए कहा कि मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि न्यायपालिका भ्रष्टाचार से अछूती नहीं है।

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जवाब देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिया था समय 

10 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने साल 2009 में प्रशान्त भूषण के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को भ्रष्ट बताने वाले आरोप पर संज्ञान लेते हुए इसकी विस्तृत सुनवाई करने का फ़ैसला किया। इस पर जस्टिस अरुण मिश्रा, बी आर गवई और कृष्ण मुरारी की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने प्रशान्त भूषण को नोटिस जारी करते हुए कहा कि जजों को भ्रष्ट कहने के आरोप पर अवमानना की कार्यवाही शुरू करने से पहले इस मामले पर विस्तृत सुनवाई की ज़रूरत है।

भ्रष्टाचार पर संसदीय समिति की रिपोर्ट का दिया हवाला

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में प्रशान्त भूषण ने 1964 की उस संसदीय समिति के बयान का उल्लेख किया है जिसमें संसदीय समिति ने कहा था कि पूरे भारत में निचली अदालतों में भ्रष्टाचार व्याप्त है जो कि ऊपरी अदालतों तक पहुँच गया है। संसदीय समिति के बयान को आधार बनाते हुए प्रशान्त भूषण का कहना है कि जजों पर केवल भ्रष्टाचार का आरोप लगाना मात्र ही अदालत की अवमानना नहीं हो सकती। 

हालाँकि प्रशान्त भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में 4 अगस्त के दाखिल अपने जवाब का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व न्यायाधीशों को भ्रष्ट कहने का मतलब केवल आर्थिक लाभ लेने का नहीं था, इस भ्रष्ट की परिभाषा में पूर्व न्यायाधीशों के अनुचित कार्य/व्यवहार भी शामिल हैं।

प्रशान्त भूषण ने कहा कि उनकी बात को ग़लत दृष्टिकोण में लेकर अगर पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और उनके परिजनों को दुख हुआ हो तो उन्हें ख़ेद है।

भ्रष्टाचार शब्द का अर्थ बहुत व्यापक: प्रशान्त भूषण 

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में प्रशान्त भूषण ने कहा कि भ्रष्टाचार शब्द का बड़ा व्यापक अर्थ है। भ्रष्टाचार शब्द को बड़ी बहस करने व तर्क की कसौटी पर कसने के बाद, वाद-विवाद करके विभिन्न महत्त्वपूर्ण क़ानूनी दस्तावेज़ों में परिभाषित किया गया है। भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम, 1988, यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन एगेंस्ट करप्शन, लॉ कमीशन की तमाम रिपोर्टों, ब्रिटिश, अमेरिकन लॉ समेत भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार शब्द को अपने आदेशों में परिभाषित किया है।

प्रशान्त भूषण का कहना है कि संविधान और न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम के अंतर्गत किसी जज के महाभियोग के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जाँच अतिआवश्यक होती है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि केवल जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना अपने आप में अवमानना नहीं हो सकती। 

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सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए प्रशान्त भूषण कहते हैं कि भ्रष्टाचार के आरोप लगाने मात्र से अवमानना नहीं होती क्योंकि अवमानना कार्यवाही में सच्चाई अपने आप में ही बचाव होता है। बचाव के इस नियम को सुप्रीम कोर्ट की मान्यता है इसलिए कोई भी अदालत आरोप लगाने भर से अवमानना के अंतर्गत दोषी नहीं करार दे सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण को कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट (अवमानना) मामले में माफ़ी देने से इनकार कर दिया था। प्रशांत भूषण ने 2009 में तहलका मैगज़ीन को दिए इंटरव्यू में कहा था कि 16 पूर्व चीफ़ जस्टिस (सीजेआई) में से क़रीब आधे भ्रष्ट थे।

जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा कि यह देखा जाएगा कि प्रशांत भूषण का कमेंट कोर्ट की अवमानना के दायरे में आता है या नहीं?

इस मामले की पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि फ्री स्पीच और कंटेम्प्ट के बीच बहुत बारीक लाइन है। अब मुद्दा यह है कि सिस्टम के सम्मान को बचाते हुए यह मामला कैसे निपटाया जाए?

कोर्ट ने प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन से कहा कि आप ही रास्ता बताइए। क्या आप इस तरह की अनाप-शनाप बातों को रोकने का तरीक़ा बता सकते हैं? जवाब में धवन ने कहा कि प्रशांत भूषण पहले ही सफ़ाई दे चुके हैं।

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट पर दो ट्वीट करने के मामले में पहले ही वकील प्रशांत भूषण दोषी करार दिए जा चुके हैं। 20 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण को सज़ा सुनाएगा। 

क़ानून के जानकार मानते हैं कि सज़ा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पास बहुत शक्ति है। प्रशांत भूषण को चेतावनी देकर छोड़ा जा सकता है, उनके लाइसेंस को रद्द करने के लिए बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया को निर्देश जारी किया जा सकता है, या 6 महीने या जुर्माने की सज़ा भी दी जा सकती है। 

हालाँकि सुप्रीम कोर्ट से दोषी ठहराये जाने के बाद से वकील प्रशान्त भूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई वरिष्ठ वकीलों ने खुलकर समर्थन करना भी शुरू कर दिया है।

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विप्लव अवस्थी
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