संविधान की प्रस्तावना से ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्दों पर आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के बयान से शुरू हुए विवाद पर बहस छिड़ गई है। बीजेपी के कई नेताओं और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इन शब्दों को हटाने के पक्ष में बयान दिया। इससे यह मुद्दा और सुर्खियों में आ गया। तो क्या यह मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में पहुँचेगा? और यदि यह पहुँचा तो क्या यह मामला अदालत में टिक पाएगा? आइए जानते हैं कि आख़िर सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में क्या रुख रहा है?
‘सेक्युलर, सोशलिस्ट’ हटाने की मांग क्या सुप्रीम कोर्ट में टिक पाएगी?
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- 29 Jun, 2025
Secularism, Socialism Controversy: संविधान की प्रस्तावना से 'सेक्युलर' और 'सोशलिस्ट' शब्द हटाने की बहस का क्या नतीजा निकलेगा? जानिए इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के अब तक के फैसले और राय क्या रहे हैं।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 1976 में ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्दों को 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था। यह संशोधन तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के कार्यकाल में आपातकाल के दौरान लागू किया गया था। इस संशोधन के तहत न केवल इन दो शब्दों को जोड़ा गया, बल्कि ‘अखंडता’ शब्द को भी प्रस्तावना में शामिल किया गया। इसका उद्देश्य भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और एकीकृत राष्ट्र के रूप में परिभाषित करना था।