पीएम मोदी द्वारा नेहरू की लगातार आलोचना करते रहने पर कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी को दो टूक कहा है कि एक-एक कर उनकी 'ग़लतियाँ' गिनाने की बजाए एक बार में ही सब पर बहस कर हमेशा के लिए इसको ख़त्म करें। प्रियंका ने पीएम मोदी को संबोधित करते हुए कहा, 'नेहरू जी से जितनी भी शिकायतें हैं, जितनी भी गलतियां हैं, उन्हें जितना भी बुरा-भला कहना है, उसकी भी एक सूची बना लीजिए। 999 अपमान, 9999 अपमान- इसकी सूची बना दीजिए। फिर एक समय निर्धारित करिए- 10 घंटे, 20 घंटे, 40 घंटे- हम बहस कर लेंगे।' उन्होंने अंग्रेज़ी के एक कथन का ज़िक्र करते हुए कहा कि 'चलिए, इस मुद्दे को हमेशा के लिए ख़त्म करते हैं और फिर बेरोजगारी, महंगाई, महिलाओं की समस्याएँ... पीएमओ के अंदर बेटिंग ऐप, एप्स्टीन फाइल्स में मंत्रियों के नाम, इस पर भी चर्चा होनी चाहिए।'

प्रियंका गांधी संसद में राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' की 150वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री मोदी के उस हमले पर बोल रही थीं जिसमें उन्होंने नेहरू पर कई आरोप लगाए। प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने वंदे मातरम के टुकड़े टुकड़े किए और वंदे मातरम का जिन्ना ने विरोध किया तो नेहरू उनसे सहमत हो गए। उन्होंने आरोप लगाया कि नेहरू ने मुहम्मद अली जिन्ना की सांप्रदायिक चिंताओं को दोहराकर और राष्ट्रीय गीत को तोड़कर वंदे मातरम के साथ धोखा किया, जिससे भारत तुष्टीकरण की राजनीति के रास्ते पर चला गया और उसका बंटवारा हुआ।
संसद में प्रधानमंत्री के इस भाषण के बाद सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने नेहरू की आलोचना को लेकर पीएम को सलाह दी कि वे नेहरू से जुड़ी सभी शिकायतों की एक लिस्ट बनाएं, उस पर बहस कर लें और उसके बाद संसद का कीमती समय जनता की असली समस्याओं पर लगाएं।

इसरो, DRDO, IIT... नेहरू की उपलब्धियाँ गिनाईं

प्रियंका ने नेहरू की विरासत की उपलब्धियाँ गीनाईं। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी 12 साल से प्रधानमंत्री हैं, जबकि नेहरू ने देश की आजादी के लिए लगभग इतने ही समय (करीब 9 साल) जेल में बिताए। नेहरू स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नौ बार जेल गए और 3200 से ज्यादा दिन कैद रहे। उसके बाद उन्होंने 17 साल प्रधानमंत्री रहकर देश की सेवा की। प्रियंका ने कहा, 'आप नेहरू की बहुत आलोचना करते हैं, लेकिन अगर उन्होंने इसरो नहीं बनाया होता तो मंगलयान नहीं होता। डीआरडीओ नहीं बनाया होता तो तेजस नहीं होता। आईआईटी और आईआईएम नहीं बनाए होते तो आईटी में हम आगे नहीं होते। एम्स नहीं बनाया होता तो कोरोना जैसी चुनौती से कैसे निपटते? BHEL-SAIL जैसे PSUs नहीं बनवाए होते, तो विकसित भारत कैसे बनता?' उन्होंने जोर देकर कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के लिए जिए और देश की सेवा करते हुए मरे।
कांग्रेस नेता ने कहा, 'देश का ध्यान जरूरी मुद्दों से भटकाने के लिए सदन में 'वंदे मातरम' पर बहस की जा रही है। आज देश बेहद मुश्किल में है। ऐसे में बेरोजगारी, महंगाई, पेपरलीक जैसे मुद्दों पर सदन में चर्चा क्यों नहीं हो रही? आरक्षण के साथ खिलवाड़ और महिलाओं की स्थिति पर सदन में चर्चा क्यों नहीं हो रही है? सच यही है कि मोदी सरकार देश से वर्तमान की असलियत छिपाना चाहती है।'

पीएम को चुनौती

प्रियंका ने पीएम को सीधे चुनौती देते हुए कहा कि नेहरू से जुड़ी सभी शिकायतें, गलतियां या अपमान की एक लिस्ट बनाएं और जितने समय चाहें बहस करने को तैयार हैं। लेकिन संसद का कीमती समय जनता की समस्याओं पर लगाएं, जिनके लिए हमें चुना गया है। उन्होंने कहा कि देश इंदिरा जी, राजीव जी, वंशवाद की राजनीति और नेहरू की गलतियों के बारे में सुन लेगा, लेकिन उसके बाद बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर बात हो। इस बयान पर विपक्षी सांसदों ने जोरदार तालियां बजाईं।

प्रियंका ने पीएम के दावे को खारिज किया

भाषण के दौरान प्रियंका गांधी ने नेहरू और सुभाष चंद्र बोस के बीच पत्रों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि बोस ने नेहरू को पत्र लिखकर 'वंदे मातरम' के कुछ छंदों को विवादास्पद बताते हुए राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाने की सलाह दी थी। प्रियंका ने पीएम पर तंज कसा कि वे 'वंदे मातरम' की असली क्रोनोलॉजी नहीं समझते। उन्होंने आरोप लगाया कि यह चर्चा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर आयोजित की गई है, ताकि वर्तमान की हकीकत से ध्यान हटाया जा सके। उन्होंने कहा कि यह सरकार मौजूदा वास्तविकता को छिपाना चाहती है।

'वंदे मातरम की क्रोनोलॉजी'

प्रियंका ने वंदे मातरम की क्रोनोलॉजी भी समझाई। उन्होंने कहा, '1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी ने इस गीत के पहले दो अंतरे लिखे, जो आज हमारा राष्ट्रगीत है। 1882 में 7 साल बाद बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी का आनंदमठ उपन्यास प्रकाशित हुआ और इसमें यही गीत प्रकाशित किया और उसमें 4 अंतरे जोड़ दिए गए। 1896 में कांग्रेस के अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने यह गीत गाया। 1905 में बंगाल के विभाजन के खिलाफ आंदोलन के समय वंदे मातरम जनता की एकता की गुहार बनकर गली-गली से उठा और रवीन्द्रनाथ टैगोर जी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी गीत को खुद गाते हुए बंगाल की सड़कों पर उतरे। छात्रों से किसान तक, व्यापारी से लेकर वकीलों तक हर किसी ने ये गीत गाया। इस गीत को सुनकर ब्रिटिश हुकूमत कांपती थी।'
उन्होंने कहा, 'हमारे देशवासी इस गीत को सुनकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सत्य और अहिंसा के नैतिक हथियारों को लेकर शहीद होने की तैयारी करते थे। यह गीत मातृभूमि के लिए मर मिटने की भावना को जगाता है।' उन्होंने कहा कि 1930 के समय जब देश में सांप्रदायिक राजनीति उभरी, तब ये गीत विवादित होने लगा। उन्होंने नेहरू द्वारा नेता जी को लिखी चिट्ठी के अलावा नेता जी द्वारा नेहरू को लिखी चिट्ठी का ज़िक्र किया।

प्रियंका ने कहा, "फिर नेहरू जी कलकत्ता जाते हैं और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी से मिलते हैं और उसके अगले दिन गुरुदेव जी एक चिट्ठी लिखते हैं, जिसमें वो कहते हैं- .... उन्होंने यह भी कहा कि 'बाद में जोड़े गए अंतरों का सांप्रदायिक मायना निकाला जा सकता है और उस समय के माहौल में उनका इस्तेमाल अनुचित होगा'।"

'श्याप्रसाद मुखर्जी ने भी आपत्ति नहीं की'

उन्होंने आगे कहा, "इसके बाद, 28 अक्टूबर 1937 में कांग्रेस की कार्यसमिति ने अपने प्रस्ताव में 'वंदे मातरम' को राष्ट्रगीत घोषित किया। उन्हीं दो अंतरों पर कार्यसमिति की बैठक में महात्मा गांधी जी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी, पंडित नेहरू जी, आचार्य नरेंद्र देव जी, सरदार पटेल जी, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी ने सहमति जताई। भारत की आजादी के बाद जब इसी गीत के इन्हीं दो अंतरों को 1950 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी ने संविधान समिति में भारत का राष्ट्रगीत घोषित किया, आंबेडकर जी समेत तब भी लगभग यही महापुरुष वहां मौजूद थे। बीजेपी के साथियों के नेता श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी मौजूद थे। वहां भी किसी ने कोई आपत्ति जाहिर नहीं की।"

बंगाल चुनाव और विपक्ष की एकजुटता

कहा जा रहा है कि संसद में वंदे मातरम पर यह चर्चा बंगाल चुनाव को ध्यान में रखकर की गई, जहां 'वंदे मातरम' जैसे राष्ट्रीय प्रतीकों का मुद्दा वोटरों को प्रभावित कर सकता है। प्रियंका ने आरोप लगाया कि सरकार वर्तमान की हकीकत छिपाने के लिए इतिहास का सहारा ले रही है। विपक्ष ने इसे नेहरू की विरासत पर हमले के रूप में देखा। संसद में यह बहस नेहरू-मोदी की तुलना को फिर से गर्मा दिया है।