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क्या बिना हथियार के भारतीय सैनिकों को चीनी सैनिकों के पास भेजा गया?

चीनी सैनिकों के साथ झड़प में 20 भारतीय सैनिक कैसे शहीद हो गए और वहाँ किस तरह का घटनाक्रम चला, इस पर आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है। लेकिन अलग-अलग जो रिपोर्टें आ रही हैं उन सभी में सामान्य बात उभरकर सामने आ रही है कि भारतीय जवानों की हत्या में चीनी सैनिकों ने अपना वहशी चेहरा दिखाया है। 

चीनी सैनिक हाथों में लोहे की छड़ें और कंटीले तार लपेटे हुए डंडे लिए हुए थे। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कुछ मृत सैनिकों के शव क्षत-विक्षत थे। एक अन्य रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर क्रूर हमला किया इसमें से कुछ बर्फीली नदी में गिर गए। एक तीसरी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी सैनिकों ने निहत्थे भारतीय सैनिकों पर अचानक हमला कर दिया। 

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चीनी सैनिकों के साथ झड़प के दौरान कथित तौर पर भारतीय सैनिकों के पास हथियार नहीं थे, इसको लेकर राहुल गाँधी ने भी सवाल किया है। उन्होंने पूछा है कि 'हमारे निहत्थे जवानों को वहाँ शहीद होने क्यों भेजा गया?' 

राहुल के सवाल पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर कहा है, 'आइये हम सीधे तथ्यों की बात करते हैं। सीमा पर सभी सैनिक हमेशा हथियार लेकर जाते हैं, ख़ासकर जब पोस्ट से जाते हैं। 15 जून को गलवान में उन लोगों ने ऐसा किया। फेसऑफ़ (झड़प) के दौरान हथियारों का उपयोग नहीं करना लंबे समय से चली आ रही प्रथा (1996 और 2005 के समझौते के अनुसार) रही है।'

सेना में पूर्व अफ़सर रहे और फ़िलहाल फ़ोर्स के एडिटर प्रवीण साहनी ने भी हाल ही में एक ऐसा ही ट्वीट किया है। उन्होंने ट्वीट किया, 'सेना के हलकों में बहस की जा रही है: सीओ के तहत 35 बेजोड़ सैनिकों को बिना हथियार के चीनी पक्ष के पास क्यों भेजा गया और उन्हें समझौते के अनुसार क्षेत्र खाली कराने को कहा गया। सैन्य अभ्यास के अनुसार IA को हथियार ले जाना चाहिए था।...'

अब रिपोर्टों में कहा गया है कि भारतीय सैनिक तो हथियार लेकर नहीं गए थे, लेकिन चीनी सैनिक लोहे की छड़ व नुकीली चीज़ों से लैस थे।

चीनी हमले में ज़िंदा बच गए गंभीर रूप से घायल जवानों ने इस घटनाक्रम को बयाँ किया है। हमले में ज़िंदा बच गए जवानों ने जो बयाँ किया है उससे लगता है कि चीनी सैनिकों ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं। ऐसा लगता है कि वे वहशी हत्याएँ करने के ही इरादे से आए थे। जबकि सैनिकों के लिए सामान्य रूप से यह प्रोटोकॉल होता है कि निहत्थे लोगों पर हमला नहीं किया जाए।

उन घायल सैनिकों के इस बयान से रूबरू एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के हवाले से 'न्यूज़18' ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी ने कहा, 'मृत लोगों में वे लोग भी शामिल हैं जो भागने के लिए एक हताशा भरे प्रयास में गलवान नदी में कूद गए थे।' चीनी सैनिकों का यह वहशीपन क़रीब 8 घंटे तक चला।

बता दें कि लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए। यह झड़प सोमवार यानी 15 जून को हुई थी। बताया गया है कि झड़प के दौरान पत्थरों, धातु के टुकड़ों का इस्तेमाल दोनों ओर से किया गया लेकिन गोली नहीं चली है। 

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'कुछ शव क्षत-विक्षत'

'इंडिया टुडे' की रिपोर्ट के अनुसार, मारे गए 20 लोगों में से कुछ मृत सैनिकों के शव क्षत-विक्षत थे। यह क्षेत्र में तैनात इकाइयों में ग़ुस्सा के सबसे बड़े कारणों में से एक बन गया है। 

समाचार एजेंसी एएफ़पी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा लगता है कि मारे गए लोगों में से कई को एक रिज से धक्का दिया गया था जो चट्टानों पर टकराए और बर्फीली नदी में गिर गए। एएफ़पी को एक अधिकारी ने बताया, 'मारे गए लोगों के पोस्टमॉर्टम में पता चला है कि 'मौत का प्राथमिक कारण डूबना रहा है और ऐसा लग रहा है कि वे सिर की चोटों के कारण ऊँचाई से पानी में गिर गए।' 

'न्यूज़18' की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी सूत्रों का कहना है कि कम से कम दो दर्जन और सैनिक जानलेवा चोटों से जूझ रहे हैं और 110 से ज़्यादा लोगों को इलाज़ की ज़रूरत पड़ी है।

चीनी सैनिकों की यह हरकत तब हुई है जब पूर्वी लद्दाख में तनाव के बाद 6 जून को सैनिक स्तर की बैठक हुई थी। उस बैठक में 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और दक्षिण शिनजियांग सैन्य ज़िला कमांडर मेजर जनरल लियू लिन शामिल थे। उस बातचीत के बाद दोनों देशों ने तय किया है कि वे मौजूदा समस्या का समाधान पहले हुए समझौतों के आधार पर करेंगे।

इसी के तहत तय हुआ था कि दोनों पक्ष उस क्षेत्र में तनाव को कम करने के लिए डिसइंगेज करेंगे। तब रिपोर्ट यह भी आई थी कि चीनी सेना वहाँ से पीछे हटने लगी है।

लेकिन इस डिसइंगेजमेंट के दो दिन के भीतर फिर तनाव बढ़ गया। 'न्यूज़18' की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह तब हुआ जब चीनी सेना ने भारत के पेट्रोल प्वाइंट 14 पर भारतीय क़ब्ज़े वाले क्षेत्र में फिर से टेंट लगा लिया। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि कर्नल संतोष बाबू को उस चीनी टेंट को हटवाने के लिए आदेश दिया गया था। लेकिन चीनी सेना ने वहाँ से टेंट हटाने से इनकार कर दिया। जबकि 6 जून के समझौते के अनुसार चीनी सेना को वहाँ से टेंट हटाकर पीछे जाना था। जब चीनी सैनिक टेंट हटाने को राज़ी नहीं हुए तो झड़प हुई और उस टेंट को भारतीय सेना ने जला दिया।

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रिपोर्ट के अनुसार, इसी को लेकर चीनी सेना ने आरोप लगाया कि उस घटना के लिए भारतीय सैनिक ज़िम्मेदार थे। सूत्रों के अनुसार चीनी सेना ने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय सेना ने बफर ज़ोन का उल्लंघन किया और बॉर्डर मैनेजमेंट प्रोटोकॉल का भी उल्लंघन किया।

'न्यूज़18' के अनुसार, चीनी सेना के टेंट को जलाए जाने के बाद रविवार को दोनों देशों की सेनाओं के बीच पत्थरबाज़ी भी हुई थी। इसके बाद सोमवार रात को भारतीय सेना पर अचानक हमला कर दिया गया। रिपोर्टों में कहा गया है कि कुछ भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हथियारों को छीनकर ही संघर्ष किया, बाक़ी अपना बचाव करने के लिए भी निहत्थे थे।

ये हत्याएँ 1999 के करगिल युद्ध के बाद से भारतीय सेना की सबसे बड़ी क्षति हैं। यह 1967 के बाद से भारत और चीन के बीच सबसे गंभीर लड़ाई की ओर इशारा करती है जब नाथू ला और चो ला पासेस के पास तीव्र झड़पों के दौरान 88 भारतीय सैनिक और शायद 340 चीनी सैनिक मारे गए थे।

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अमित कुमार सिंह
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