संवैधानिक संस्थाओं और केंद्रीय एजेंसियों की स्वतंत्रता पर लगातार सवाल उठाते रहने वाले लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को केंद्रीय पैनल प्रमुखों की नियुक्ति पर कड़ी असहमति जताई है। राहुल उस उच्चस्तरीय चयन समिति की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के सामने पहुंचे, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग यानी सीआईसी, केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी सहित कई अहम पारदर्शिता एवं निगरानी वाली संस्थाओं के प्रमुखों की नियुक्ति को अंतिम रूप दिया जाना था।

बैठक करीब डेढ़ घंटे चली। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि राहुल गांधी ने सरकार द्वारा प्रस्तावित सभी नामों पर कड़ी आपत्ति जताई और अपना असहमति-पत्र विधिवत दर्ज कराया। यह पहली बार नहीं है जब राहुल ने इन संस्थाओं की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए हों। पहले भी वे बार-बार आरोप लगा चुके हैं कि सरकार जानबूझकर इन निगरानी वाली संस्थाओं की स्वायत्तता को कमजोर कर रही है।
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बैठक में मौजूद अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि राहुल गांधी ने कहा कि केंद्रीय पैनल प्रमुखों के लिए जिन नामों को सरकार ने शॉर्टलिस्ट किया है, उनमें पारदर्शिता और निष्पक्षता का अभाव है तथा इन नियुक्तियों से संस्थाओं की स्वतंत्रता पर गंभीर आघात पहुंचेगा। हालाँकि चयनित उम्मीदवारों के नाम या राहुल की आपत्तियों की ज़्यादा जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है।

चुनाव आयोग को 'वोट चोरी का हथियार' बताया

राहुल गांधी ने इससे पहले बुधवार को ही दिन में चुनाव आयोग पर कब्जा किए जाने का आरोप लगाया है। उन्होंने चुनाव सुधारों पर अपने मंगलवार के लोकसभा भाषण का एक अंश एक्स पर साझा करते हुए सरकार और चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला। उन्होंने तीन सवाल उठाए-
  • चुनाव कानूनों में हाल के संशोधनों का मकसद क्या है?
  • चुनाव आयोग चयन समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को क्यों हटाया गया?
  • 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयुक्तों को लगभग पूरी कानूनी छूट क्यों दी गई और सीसीटीवी फुटेज 45 दिन में नष्ट करने का नियम क्यों लाया गया?
राहुल ने लिखा, 'तीनों सवालों का एक ही जवाब है- भाजपा चुनाव आयोग को वोट चोरी का हथियार बना रही है।'
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लोकसभा में दिया था विस्फोटक भाषण

चुनावी सुधारों पर हुई चर्चा में मंगलवार को राहुल गांधी ने बीजेपी और चुनाव आयोग पर सीधा आरोप लगाया था कि दोनों मिलकर भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को तबाह करने पर तुले हैं। उन्होंने कई सुझाव भी दिए थे-
  • सभी दलों को मतदान से एक महीना पहले मशीन-रीडेबल मतदाता सूची उपलब्ध कराई जाए।
  • सीसीटीवी फुटेज 45 दिन में नष्ट करने का नियम तुरंत वापस लिया जाए।
  • ईवीएम तक सभी दलों को पूरी पहुंच दी जाए।
  • चुनाव आयुक्तों को मिली असीमित कानूनी छूट देने वाले प्रावधानों को बदला जाए।

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बीजेपी और चुनाव आयोग की ओर से राहुल के इन ताज़ा आरोपों पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि संस्थागत नियुक्तियों पर राहुल गांधी का यह लिखित विरोध विपक्ष की नई आक्रामक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वे हर उस मंच पर सरकार को घेरने की तैयारी में हैं जहां लोकतंत्र और संस्थाओं की स्वतंत्रता दांव पर है।