कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। और इस बार निशाना है भारत की विदेश नीति। उनके सवाल तीखे हैं, आरोप गंभीर हैं, और मंशा साफ़ है- सरकार को वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति और राष्ट्रीय सम्मान को लेकर जवाबदेह ठहराना। उन्होंने सवाल पूछे हैं, भारत को पाकिस्तान के साथ क्यों जोड़ा जा रहा है, पाकिस्तान की निंदा में एक भी देश साथ क्यों नहीं, और ट्रंप को मध्यस्थता के लिए किसने बुलाया? राहुल के इन सवालों ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। क्या राहुल का यह हमला सरकार की कूटनीतिक कमजोरियों को उजागर करता है, या यह सिर्फ एक राजनीतिक दाँव है?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति पर सीधा और तीखा हमला बोला है। राहुल के सवालों ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान संबंधों, अंतरराष्ट्रीय समर्थन की कमी और ट्रंप के मध्यस्थता वाले विवाद को सुर्खियों में ला दिया है।

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भारत को पाकिस्तान के साथ क्यों जोड़ा जा रहा है?

राहुल का यह सवाल भारत की वैश्विक छवि पर एक करारा हमला है। भारत ने पिछले एक दशक में खुद को एक उभरती महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है, चाहे वह जी20 की मेजबानी हो, क्वाड में सक्रियता हो, या फिर वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना। दूसरी ओर, पाकिस्तान को अक्सर आतंकवाद और आर्थिक अस्थिरता के लिए जाना जाता है। फिर भी, कुछ अंतरराष्ट्रीय चर्चाओं में भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौलने की कोशिश होती है, खासकर कश्मीर जैसे मुद्दों पर। राहुल का यह सवाल सरकार से पूछता है कि आखिर भारत की कूटनीति इतनी कमजोर क्यों दिख रही है कि वह इस 'हाइफनेशन' को रोक नहीं पा रही?

भारत ने हाल के वर्षों में अपनी स्थिति मज़बूत की है, लेकिन कुछ पश्चिमी देशों और मीडिया का रवैया भारत-पाकिस्तान को एक साथ जोड़ने का रहा है।

यह भारत की कूटनीतिक विफलता कम और वैश्विक भू-राजनीति का हिस्सा ज्यादा है, जहां कुछ देश अपने हितों के लिए तटस्थता अपनाते हैं। फिर भी, सरकार की ओर से इस धारणा को तोड़ने के लिए क्या ठोस क़दम उठाए गए?

पाकिस्तान की निंदा में एक भी देश का समर्थन क्यों नहीं?

भारत ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक मंचों पर कई बार समर्थन हासिल किया है, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र में एफ़एटीएफ़ के ज़रिए पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखना। हालाँकि, यह सच है कि कुछ मौक़ों पर कई पश्चिमी देशों ने तटस्थ रुख अपनाया है, जो भारत के लिए निराशाजनक रहा है। राहुल का यह सवाल सरकार की उस कूटनीति पर चोट करता है, जो वैश्विक समुदाय को एकजुट करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाई।

भारत ने आतंकवाद के खिलाफ मज़बूत आवाज़ उठाई है, लेकिन कुछ देश पाकिस्तान के साथ अपने रक्षा या आर्थिक संबंधों के कारण खुलकर भारत का साथ देने से हिचकते हैं। यह सवाल सरकार को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या भारत की कूटनीति में अभी और आक्रामकता की ज़रूरत है।

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ट्रंप को मध्यस्थता के लिए किसने बुलाया?

राहुल का यह सवाल उस विवाद को फिर से ज़िंदा करता है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि वह कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता कर सकते हैं। भारत ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। राहुल का यह सवाल उस पुराने घाव को कुरेदने की कोशिश है, जिससे सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया जा सके।

ट्रंप का बयान भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाने वाला था, और सरकार ने साफ़ किया है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है, जिसमें किसी तीसरे पक्ष की ज़रूरत नहीं।

हालांकि, इस घटना ने भारत की कूटनीति पर सवाल उठाए थे, क्योंकि ट्रंप जैसे नेता का ऐसा बयान देना भारत की स्थिति को कमजोर करता है। राहुल ने इस मुद्दे को फिर से उठाकर सरकार को असहज करने की कोशिश की है।

विदेश नीति का पतन?

राहुल का सबसे बड़ा आरोप है कि भारत की विदेश नीति पूरी तरह चरमरा गई है। यह एक व्यापक और गंभीर आरोप है, जो सरकार की वैश्विक मंचों पर प्रभावशीलता, पड़ोसी देशों के साथ संबंधों और राष्ट्रीय हितों की रक्षा पर सवाल उठाता है। राहुल का यह बयान सरकार की उस छवि को चुनौती देता है, जिसमें भारत को एक उभरती शक्ति के रूप में पेश किया जाता है।

भारत की विदेश नीति ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, जैसे कि जी20 की सफल मेजबानी, क्वाड में बढ़ती भूमिका और रूस-यूक्रेन युद्ध में तटस्थ लेकिन प्रभावशाली रुख। लेकिन पड़ोसी देशों, खासकर चीन और पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंध और कुछ वैश्विक मंचों पर अपेक्षित समर्थन की कमी ने सरकार की कूटनीति को सवालों के घेरे में ला दिया है। राहुल का यह दावा अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह सरकार को अपनी कमियों पर विचार करने के लिए मजबूर करता है।

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राहुल गांधी का यह हमला केवल विदेश नीति तक सीमित नहीं है; यह एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। उनके सवाल न केवल सरकार की कूटनीति पर सवाल उठाते हैं, बल्कि जनता के बीच यह धारणा बनाने की कोशिश करते हैं कि मोदी सरकार राष्ट्रीय सम्मान और हितों की रक्षा में नाकाम रही है। 'भारत को पाकिस्तान के साथ जोड़ा जाना' और 'ट्रंप के सामने झुकना' जैसे भावनात्मक मुद्दे जनता को प्रभावित कर सकते हैं।

केंद्र सरकार के लिए राहुल के ये सवाल एक चुनौती हैं। सरकार ने विदेश नीति में कई सफलताओं के दावे किए हैं, जैसे कि वैश्विक मंचों पर भारत की बढ़ती साख और कोविड-19 के दौरान वैक्सीन डिप्लोमेसी। लेकिन कुछ मोर्चों पर कमियाँ भी उजागर हुई हैं, जैसे कि चीन के साथ सीमा विवाद में आक्रामक रुख की कमी और कुछ पश्चिमी देशों से अपेक्षित समर्थन न मिलना।

एक दिन पहले राहुल ने पीएम मोदी पर बड़ा हमला किया था। पीएम मोदी ने अपना 'ख़ून गर्म' होने की दहाड़ लगाई तो राहुल गांधी भी टूट पड़े थे। राहुल ने पूछा कि 'आपका ख़ून सिर्फ़ कैमरों के सामने ही क्यों गर्म होता है?'

इसके साथ ही राहुल ने पीएम मोदी के भाषण को खोखला क़रार दिया। उन्होंने आतंकवाद और भारत-पाक सीजफायर को लेकर ट्रंप के दावों को लेकर भी सवाल पूछे। राजस्थान के बीकानेर में पीएम मोदी के भाषण के बाद राहुल ने उनसे तीन सवाल पूछे हैं। 

'भारत के सम्मान' से समझौता करने का आरोप लगाते हुए राहुल ने ट्वीट कर पूछा है, 'मोदी जी, खोखले भाषण देना बंद कीजिए। सिर्फ इतना बताइए... आतंकवाद पर आपने पाकिस्तान की बात पर भरोसा क्यों किया? ट्रंप के सामने झुककर आपने भारत के हितों की कुर्बानी क्यों दी? आपका ख़ून सिर्फ़ कैमरों के सामने ही क्यों गर्म होता है?"

विदेश नीति का असली इम्तिहान

राहुल गांधी के सवाल भले ही राजनीतिक रंग लें, लेकिन वे भारत की विदेश नीति की कुछ वास्तविक कमियों को सामने लाते हैं। क्या भारत को वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति और मज़बूत करने की ज़रूरत नहीं है, खासकर पड़ोसी देशों के साथ तनाव को कम करने और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर वैश्विक समुदाय को एकजुट करने में? क्या सरकार को इन सवालों को केवल विपक्ष की आलोचना के रूप में खारिज करने के बजाय, अपनी कूटनीति को और प्रभावी बनाने पर ध्यान नहीं देना चाहिए?