राजस्थान के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत बहुत जल्द राहुल गाँधी की जगह कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन सकते हैं। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने इस बात के पुख़्ता संकेत दिए हैं कि बहुत जल्द कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिलने वाला है और वह नेहरू-गाँधी परिवार से नहीं होगा।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ महासचिव ने 'सत्य हिंदी' से बातचीत के दौरान कहा कि अशोक गहलोत के नाम पर सभी वरिष्ठ नेताओं के बीच सहमति बन गई है और उनका अगला कांग्रेस अध्यक्ष बनना लगभग तय है।
सूत्रों के मुताबिक़ पार्टी आलाकमान की तरफ़ से गहलोत से कोई बड़ी जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार रहने के लिए कह दिया गया है। हालाँकि इस बात पर अभी तसवीर साफ़ नहीं है कि गहलोत अकेले पार्टी की बागडोर संभालेंगे या उनकी मदद के लिए दो-तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए जाएँगे। इस बाबत अगले दो-चार दिन में तसवीर साफ़ हो सकती है। लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में मिली प्रचंड जीत के बाद सवाल यह उठ रहा है कि अगर गहलोत को कांग्रेस की कमान मिलती है तो क्या उनके नेतृत्व में कांग्रेस मोदी-शाह की बीजेपी से मुक़ाबला कर पाएगी।
कांग्रेस के वरिष्ठ महासचिव के मुताबिक़, बुधवार को कई वरिष्ठ नेता कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को उनके जन्मदिन की बधाई देने गए थे। अशोक गहलोत भी उनमें में शामिल थे। अशोक गहलोत और बाक़ी नेताओं ने राहुल गाँधी से पार्टी अध्यक्ष पद पर बने रहने की पुरज़ोर गुजारिश की थी। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद राहुल गाँधी ने यह गुज़ारिश ठुकरा दी थी। उन्होंने यह भी साफ़ कर दिया था कि उनकी जगह प्रियंका गाँधी के नाम पर भी विचार नहीं होना चाहिए।
कांग्रेस के इस वरिष्ठ महासचिव के मुताबिक़, राहुल गाँधी के रवैये से साफ़ है कि वह अब किसी भी सूरत में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नहीं लौटेंगे लिहाजा पार्टी ने उनकी जगह किसी नए व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने का फ़ैसला किया है। इस बारे में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी के साथ वरिष्ठ नेताओं की कई दौर की बातचीत हो चुकी है। सोनिया और राहुल दोनों की गहलोत के नाम पर सहमति है।
बता दें कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई वाली बीजेपी हमेशा से ही वंशवाद के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरते रही है। इसकी काट के लिए ही राहुल गाँधी गाँधी-नेहरू परिवार से अलग किसी को कांग्रेस की बागडोर सौंप कर हमेशा के लिए इस मुद्दे को ख़त्म करना चाहते हैं।
गुरुवार को संसद भवन में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद मीडिया से बात करते हुए राहुल गाँधी ने यह बात साफ़ कर दी कि वह किसी भी सूरत में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर दोबारा नहीं लौटेंगे। उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर नया अध्यक्ष चुनने की ज़िम्मेदारी डाल दी है। राहुल ख़ुद इस चयन प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है। क्योंकि उनके इस प्रक्रिया में शामिल होने से मामला जटिल हो सकता है। जब राहुल गाँधी से पूछा गया कि अध्यक्ष पद पर सस्पेंस की वजह से पार्टी में असमंजस की स्थिति बनी हुई है तो उन्होंने इशारों-इशारों में कहा कि इस पर बहुत जल्द फ़ैसला होगा और आपको बता दिया जाएगा।
पिछले महीने 28 मई को 'सत्य हिंदी' ने अपने पाठकों को बताया था कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष पिछड़े या दलित वर्ग से हो सकता है और इनमें अशोक गहलोत का नाम सबसे आगे हैं। गहलोत पिछड़े वर्ग से आते हैं।
दरअसल, अशोक गहलोत को संगठन चलाने का पुराना अनुभव है। साल 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव में उनके प्रभारी महासचिव रहते हुए ही कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। इन दो वजहों से कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उनका नाम बाक़ी नेताओं पर भारी पड़ा।
1998 में पहली बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही गहलोत 10 जनपथ के बेहद क़रीबी और भरोसेमंद बने हुए हैं। यही वजह है कि 2008 में दूसरी बार और 2018 में उन्हें तीसरी बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया।
गहलोत पिछड़ी जाति से आते हैं। कांग्रेस के सामने अपना खोया जनाधार वापस पाने की बड़ी चुनौती है। लिहाज़ा कांग्रेस नरेंद्र मोदी के पिछड़े कार्ड के मुक़ाबले गहलोत के रूप में पिछड़ा कार्ड खेल रही है।
राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत को जादूगर के नाम से जाना जाता है। बचपन में वह अपने पिता के साथ जादू दिखाया करते थे। सड़कों पर जादू दिखाते-दिखाते अशोक गहलोत ने पहले राजस्थान की राजनीति में अपनी पुख़्ता जगह बनाई और फिर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व में अपनी सांगठनिक क्षमता और सबको साथ लेकर चलने की कला के चलते अलग स्थान बनाया।
अपनी इसी ख़ूबी के चलते गहलोत आज कांग्रेस के अध्यक्ष पद तक पहुँच गए हैं। अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस जादू के सहारे वह तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने क्या कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद वह यह 'जादू' चला पाएँगे? क्या सत्ता से बेहद दूर हो चुकी कांग्रेस को दोबारा सत्ता की दहलीज़ तक लाकर खड़ा कर पाएँगे?
अशोक गहलोत के सामने कांग्रेस को सांगठनिक रूप से मजबूत करने की सबसे बड़ी चुनौती है। इसका असर अभी से दिखने लगा है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक़, गहलोत को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चाओं के बीच ही कांग्रेस में प्रदेश इकाइयों को भंग करने का सिलसिला शुरू हो चुका है। सबसे पहले कर्नाटक की इकाई को भंग कर दिया गया है। इसके बाद उत्तर प्रदेश और बिहार का नंबर है। दोनों की प्रदेश इकाई भी बहुत जल्द भंग की जा सकती हैं। सबसे पहले उन प्रदेशों के संगठन में आमूलचूल परिवर्तन किया जाएगा जहाँ कांग्रेस ने बेहद ख़राब प्रदर्शन किया है। सूत्रों के मुताबिक़, अशोक गहलोत के सुझाव पर ही कर्नाटक इकाई को भंग करके देशभर में कांग्रेस के संगठन में बड़े बदलाव की शुरुआत की गई है।
कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक़, इसी महीने के आख़िर में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाकर अशोक गहलोत को बाक़ायदा कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के फ़ैसले पर मुहर लगाई जा सकती है। इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इस बात पर भी आम राय कायम करेंगे कि क्या अशोक गहलोत की मदद के लिए दो-तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाएँ या नहीं।
इसके लिए राज्यसभा में कांग्रेस के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल, ए के एंटोनी और संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल जल्द ही यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गाँधी के साथ विचार-विमर्श करेंगे।
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