संचार साथी को लेकर कांग्रेस का सरकार पर हमला

फ़ोन निर्माताओं को केंद्र के निर्देश पर विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया आई है। कांग्रेस ने सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा की प्रतिक्रिया जारी की है। प्रियंका ने कहा- संचार साथी एक जासूसी ऐप है। नागरिकों को प्राइवेसी का अधिकार है। सभी को निजता का अधिकार होना चाहिए ताकि वे सरकार की नज़रों से बचकर अपने परिवार और दोस्तों को संदेश भेज सकें। यह सिर्फ़ टेलीफ़ोन पर जासूसी नहीं है। वे इस देश को हर तरह से तानाशाही में बदल रहे हैं। संसद इसलिए नहीं चल रही है क्योंकि सरकार किसी भी विषय पर चर्चा करने से इनकार कर रही है। विपक्ष को दोष देना बहुत आसान है, लेकिन वे किसी भी विषय पर चर्चा नहीं होने दे रहे हैं, और यह लोकतंत्र नहीं है। एक स्वस्थ लोकतंत्र चर्चा की माँग करता है, और हर किसी के अलग-अलग विचार होते हैं, और आप उनकी बात सुनते हैं।

प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा- धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने और भारत का हर नागरिक अपने फ़ोन पर क्या कर रहा है, यह देखने के बीच एक बहुत ही महीन रेखा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने के लिए एक प्रभावी प्रणाली होनी चाहिए। हमने साइबर सुरक्षा के संदर्भ में इस पर विस्तार से चर्चा की है। साइबर सुरक्षा की ज़रूरत है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह आपको हर नागरिक के फ़ोन में घुसने का बहाना दे देती है। मुझे नहीं लगता कि कोई भी नागरिक इससे खुश होगा।



वरिष्ठ कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा है कि यह कदम "असंवैधानिकता से ज्यादा खतरनाक" है। उन्होंने एक्स पर कहा, "बिग ब्रदर हम पर नज़र नहीं रख सकता। निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का अभिन्न अंग है।" उन्होंने आगे कहा, "एक प्री-लोडेड सरकारी ऐप जिसे अनइंस्टॉल नहीं किया जा सकता, हर भारतीय पर नज़र रखने का एक मनहूस उपकरण है। यह हर नागरिक की हर गतिविधि, बातचीत और फैसले पर नज़र रखने का एक ज़रिया है। हम इस निर्देश को अस्वीकार करते हैं और इसे तुरंत वापस लेने की मांग करते हैं।"  संचार साथी की पहली खबर सोमवार को सत्य हिन्दी ने प्रकाशित की थी। आप उसे भी इस लाइन को क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
शिवसेना (यूबीटी) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि यह कदम और कुछ नहीं बल्कि "एक और बिग बॉस निगरानी का मामला" है। उन्होंने कहा, "व्यक्तिगत फ़ोनों में सेंध लगाने के ऐसे छद्म तरीकों का विरोध किया जाएगा और अगर आईटी मंत्रालय को लगता है कि मज़बूत निवारण प्रणालियाँ बनाने के बजाय वह निगरानी प्रणालियाँ बनाएगा, तो उसे विरोध के लिए तैयार रहना चाहिए।"
केंद्र सरकार के एक ताजा आदेश ने देश भर में गोपनीयता और निगरानी को लेकर हंगामा मचा दिया है। सरकार ने सभी स्मार्टफोन निर्माता कंपनियों को निर्देश जारी किया है कि वे अपने नए फोन में 'संचार साथी' ऐप को पूर्व-स्थापित (प्री-इंस्टॉल) करें। पुराने फोन के लिए सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए इस ऐप को अनिवार्य रूप से डालना होगा। सबसे विवादास्पद बात यह है कि यूजर्स इस ऐप को न तो डिलीट कर सकेंगे, न ही डिसेबल या मॉडिफाई। विपक्षी नेता इसे 'पेगासस प्लस प्लस' बता रहे हैं, जबकि सरकार का दावा है कि यह फर्जी हैंडसेट से नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी है।
संचार साथी ऐप, जो एक सरकारी साइबर सिक्योरिटी टूल है, मुख्य रूप से 'फोन फाइंडर' के रूप में काम करता है। इसका उद्देश्य उपयोगकर्ताओं को नकली या गैर-मौलिक मोबाइल डिवाइस खरीदने से बचाना बताया जा रहा है। लेकिन विशेषज्ञों और जागरूक नागरिकों के मुताबिक, ऐप के व्यापक परमिशन इसकी सतही उपयोगिता से कहीं ज्यादा चिंताजनक हैं। ऐप डाउनलोड करने के बाद आपसे कैमरा एक्सेस, कॉल और मैसेज की निगरानी, नेटवर्क स्टेट मॉनिटरिंग (जो डिवाइस की लोकेशन ट्रैकिंग की अनुमति देता है) जैसे अधिकार मांगता है। 
इंडिया टुडे टेक्नोलॉजी डेस्क के विश्लेषण के अनुसार, ये परमिशन फोन ढूंढने के काम के लिए जरूरी हो सकता है, लेकिन वे एक 'गोपनीयता भंग करने' (प्राइवेसी नाइटमेयर) को जन्म दे रही हैं, क्योंकि इससे यूजर की पूरी गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है।विपक्ष ने इस आदेश को सीधे तौर पर जासूसी का हथियार करार दिया है। 
कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने सोशल मीडिया पर तीखा प्रहार किया, "यह पेगासस प्लस प्लस है। बिग ब्रदर हमारा फोन ले लेगा और हमारी पूरी निजी जिंदगी पर कब्जा कर लेगा।" उनकी मां और राज्यसभा सांसद प्रियंका चिदंबरम ने इसे "बिग बॉस निगरानी का एक और पल" बताया। राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला ने चेतावनी दी, "हर नए फोन में इसे जबरन डालना, अनइंस्टॉल न करने देना, 'सुरक्षा' के नाम पर कॉल, मैसेज और लोकेशन पर जासूसी की ताकत देना, यह निगरानी का सबसे बुरा रूप है।"
सोशल मीडिया पर #SancharSaathiSpyware और #Pegasus2 जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जहां यूजर्स और एक्टिविस्ट इसे 'स्वदेशी जासूसी' बता रहे हैं। पेगासस स्पाइवेयर, जो इसराइली कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित एक एडवांस जासूसी टूल है, पहले भी भारत में विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के फोन हैक करने के आरोपों से चर्चा में रहा था। सरकार की ओर से इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। 
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि यह नागरिकों को फर्जी डिवाइस से बचाने का कदम है, लेकिन आलोचक पूछ रहे हैं। क्या गोपनीयता की कीमत पर सुरक्षा संभव है?यह विवाद तब और गहरा गया है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में डिजिटल गोपनीयता पर सख्त रुख अपनाया था। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह ऐप वाकई निगरानी के लिए इस्तेमाल होता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन हो सकता है। 
फिलहाल, स्मार्टफोन कंपनियां जैसे सैमसंग, एप्पल और चीनी ब्रांड इस आदेश का पालन करने की तैयारी में जुटी हैं, लेकिन उपभोक्ता संगठन कानूनी चुनौती की योजना बना रहे हैं।क्या यह सुरक्षा का नया कदम है या जासूसी का खुला खेल? आने वाले दिनों में इस बहस का और तेज होना तय है।