सुप्रीम कोर्ट ने संदेसरा ब्रदर्स के स्टर्लिंग ग्रुप से जुड़े बहुचर्चित 14000 करोड़ रुपये से अधिक के बैंक कर्ज धोखाधड़ी मामले में बड़ा फ़ैसला सुनाया है। कोर्ट ने दो आरोपियों हेमंत एस. हाथी और चेतन जयंतीलाल संदेसरा के खिलाफ चल रहे सभी आपराधिक और दीवानी मुकदमे 17 दिसंबर 2025 तक 5100 करोड़ रुपये बैंकों को जमा करने की शर्त पर रद्द कर दिए।

जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने साफ़ किया कि यह फ़ैसला केवल इस मामले की 'अत्यंत विशेष परिस्थितियों' में सार्वजनिक धन की रक्षा करने के उद्देश्य से दिया गया है और इसे किसी भी अन्य मामले में मिसाल के रूप में नहीं लिया जा सकता है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'शुरू से ही इस कोर्ट का विचार था कि यदि याचिकाकर्ता वन-टाइम सेटलमेंट के अनुसार पूरी राशि जमा करने को तैयार हैं और बैंकों का सार्वजनिक पैसा वापस आ जाता है तो आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इस मामले की विशेषता यह है कि इसका मक़सद धोखे से निकाले गए पैसे को वापस लाना और सार्वजनिक हित की रक्षा करना है। इन परिस्थितियों में हम विवेक का प्रयोग करते हुए सभी मुकदमे रद्द करने का आदेश दे रहे हैं।'
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क्या था पूरा मामला?

स्टर्लिंग ग्रुप के प्रमोटर भाई नितिन संदेसरा और चेतन संदेसरा (दोनों फरार आर्थिक अपराधी घोषित) पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों के ज़रिए 17 बैंकों से 14000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज लिया और उसे भारत तथा विदेशों में सैकड़ों शेल कंपनियों के ज़रिए डायवर्ट कर दिया। इस मामले में सीबीआई, ईडी, एसएफ़आईओ और आयकर विभाग ने अलग-अलग जाँच की थी।

आरोपियों पर लगी धाराएँ

  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) और 13(1)(d)
  • IPC की धारा 120-B (आपराधिक षड्यंत्र), 420 (धोखाधड़ी), 467, 468, 471 (जालसाजी)
  • PMLA की धारा 3 (मनी लॉन्ड्रिंग)
  • फ्यूजिटिव इकोनॉमिक ऑफेंडर्स एक्ट
  • ब्लैक मनी एक्ट और कंपनीज एक्ट की धारा 447 (कंपनी फ्रॉड)
इनके अलावा संपत्तियों की कुर्की, जब्ती और फ्रीजिंग के आदेश भी जारी थे।
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कोर्ट में क्या-क्या हुआ?

  • 7 फरवरी 2020 : सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर नोटिस जारी किया और अंतरिम सुरक्षा दी।
  • 18 जनवरी 2022 : आरोपियों ने चार्जशीट में उल्लिखित पूरी राशि चुकाने की इच्छा जताई, कोर्ट ने सभी कार्यवाहियां स्थगित कर दीं।
  • 4 मार्च 2024 : आरोपियों ने 50 मिलियन डॉलर (लगभग 415 करोड़) और अगले तीन दिनों में इतनी ही राशि ट्रांसफर करने का वादा किया। आठ हफ्तों में 100 मिलियन डॉलर और देने की बात कही।
  • 18 नवंबर 2025 : कोर्ट ने रिकॉर्ड किया कि FIR में कुल राशि 5,383 करोड़ थी। भारतीय कंपनियों का वन टाइम सेटलमेंट यानी ओटीएस 3,826 करोड़ और विदेशी गारंटर कंपनियों का 2,935 करोड़ था यानी कुल ओटीएस 6,761 करोड़। अब तक 3,507.63 करोड़ जमा हो चुके थे, आईबीसी प्रक्रिया में 1192 करोड़ वसूल हुए, शेष बकाया 2,061.37 करोड़ रह गया।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीलबंद लिफाफे में प्रस्ताव रखा कि 5100 करोड़ रुपये लेकर सभी मुकदमे बंद कर दिये जाएँ। आरोपियों ने इसे स्वीकार कर लिया।

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश

शीर्ष अदालत ने अपने अंतिम आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता 17 दिसंबर 2025 तक 5100 करोड़ रुपये सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा करेंगे। यह किश्तों में भी जमा किया जा सकता है। यह राशि शॉर्ट-टर्म ब्याज वाली फिक्स्ड डिपॉजिट में रखी जाएगी। रजिस्ट्रार हर लेंडर बैंक का हिस्सा तय करके राशि वितरित करेगा। इसने कहा है कि राशि जमा होते ही सभी एफ़आईआर, चार्जशीट, ईसीआईआर, कुर्की आदेश, फ्यूजिटिव इकोनॉमिक ऑफेंडर्स एक्ट की कार्यवाही और कंपनीज एक्ट-ब्लैक मनी एक्ट के केस अपने आप रद्द हो जाएंगे।
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फ़ैसले पर प्रतिक्रिया

कई वकीलों ने इसे व्यावहारिक लेकिन असामान्य फ़ैसला बताया। उनका कहना है कि जब अपराधी पूरा पैसा लौटा रहा हो तो आपराधिक मुकदमा चलाकर टैक्सपेयर के पैसे से लंबी अदालती प्रक्रिया चलाने का कोई मतलब नहीं बचता। हालाँकि कुछ लोगों ने चिंता जताई कि इससे बड़े आर्थिक अपराधियों को 'पैसे से सजा खरीदने' का रास्ता मिल सकता है।