सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई के दौरान केंद्र की दलीलों पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि यदि राज्यपालों को विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों को मंजूरी रोकने का खुली छूट है तो इसमें कुछ हद तक दिक्कतें हैं क्योंकि इससे मनी बिल सहित सभी प्रकार के बिलों को रोका जा सकता है। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या करते हुए यह बात कही। यह अनुच्छेद राज्यपालों को बिलों पर मंजूरी देने, रोकने या राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजने की शक्ति देता है।
यदि राज्यपाल बिलों पर वीटो कर सकते हैं, तो मनी बिल भी रोके जा सकते हैं: SC
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- 26 Aug, 2025
Presidential Reference Hearing: केंद्र के अनुसार यदि राज्यपाल बिल को रोकते हैं और वह बिल ख़त्म हो जाता है, तो मनी बिल का क्या होगा? क्या यह संवैधानिक प्रक्रिया को निष्प्रभावी नहीं कर देगा? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या क्या सवाल उठाए।

यह मामला राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई पर आया। प्रेसिडेंशियल रेफरेंस से राष्ट्रपति किसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की राय मांग सकते हैं। इस मौजूदा प्रेसिडेंशियल रेफरेंस में कोर्ट से पूछा गया है कि क्या राज्यपालों और राष्ट्रपति को बिलों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित की जा सकती है। यह प्रेसिडेंशियल रेफरेंस अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आया, जिसमें तमिलनाडु के मामले में कोर्ट ने राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए बिलों पर निर्णय लेने की समयसीमा निर्धारित की थी। कोर्ट ने तब कहा था कि राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते और राष्ट्रपति को अनुच्छेद 201 के तहत तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा।