सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड चुनाव आयोग पर जुर्माना लगाया तो कांग्रेस ने बीजेपी पर 'वोट चोरी' का बड़ा आरोप लगा दिया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एक से अधिक मतदाता सूचियों में नामों को सही ठहराने की कोशिश के लिए उत्तराखंड चुनाव आयोग पर 2 लाख रुपये का जुर्माना ठोक दिया। इस फ़ैसले के बाद कांग्रेस ने कहा है कि बीजेपी वोट चोरी में पंचायत चुनाव को भी नहीं छोड़ा। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा ने कहा है कि 'जब पंचायत चुनाव तक भाजपा बिना वोट चोरी के नहीं लड़ पाती तो विधानसभा और लोकसभा चुनावों में ये किस स्तर तक लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करते होंगे।'

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला तब सामने आया जब एक याचिका के माध्यम से उत्तराखंड में मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों की शिकायत की गई। याचिका में दावा किया गया कि कई व्यक्तियों के नाम एक से अधिक मतदाता सूचियों में दर्ज थे। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्रथा न केवल चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को कमजोर करती है, बल्कि इससे फर्जी मतदान की संभावना भी बढ़ती है। 
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सुनवाई के दौरान उत्तराखंड चुनाव आयोग ने अपने बचाव में कहा कि कई मतदाता सूचियों में नामों का होना तकनीकी त्रुटि या प्रशासनिक चूक हो सकती है और यह जानबूझकर नहीं किया गया। आयोग ने यह भी तर्क दिया कि ऐसी त्रुटियों को ठीक करने के लिए उनके पास पहले से ही तंत्र मौजूद है और इस तरह की गलतियां सामान्य हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के इस रुख को स्वीकार नहीं किया और इसे गंभीर लापरवाही करार दिया।

मतदाता सूची में हेरफेर के आरोप

यह विवाद उत्तराखंड में जनवरी 2025 में हुए शहरी स्थानीय निकाय चुनावों से शुरू हुआ। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने अपने समर्थकों को ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी मतदाता सूचियों में स्थानांतरित करवाया ताकि फर्जी वोटिंग के जरिए चुनावों में अनुचित लाभ लिया जा सके। 

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने दावा किया कि म्युनिसिपल चुनावों के बाद बीजेपी ने अपने समर्थकों को फिर से ग्रामीण मतदाता सूचियों में स्थानांतरित करने की कोशिश शुरू की, ताकि मई-जून 2025 में होने वाले पंचायत चुनावों में भी अनुचित लाभ उठाया जा सके।

वोटर लिस्ट नियमों का उल्लंघन

उत्तराखंड पंचायती राज एक्ट 2016 के अनुसार किसी व्यक्ति का नाम एक ही मतदाता सूची में होना चाहिए। इसके अलावा मतदाता सूची में नाम स्थानांतरित करने के लिए कम से कम छह महीने तक उस पते पर निवास करने का नियम है। कांग्रेस ने बार-बार राज्य चुनाव आयोग को पत्र लिखकर इस नियम की याद दिलाई और कहा कि बीजेपी समर्थकों ने छह महीने से कम समय में अपने नाम स्थानांतरित करने की कोशिश की, जो नियमों का उल्लंघन है।

जब बीजेपी समर्थकों को ग्रामीण मतदाता सूचियों में नाम स्थानांतरित करने में बाधा आई तो उन्होंने नया तरीका अपनाया। उन्होंने अपने नाम नई मतदाता सूचियों में दोबारा जोड़ लिए जिसके परिणामस्वरूप कई लोग दो-दो जगह मतदाता बन गए। जब इन लोगों को पंचायत चुनावों में उम्मीदवार के रूप में टिकट मिला तो कांग्रेस ने आयोग से मांग की कि ऐसे उम्मीदवारों के नामांकन रद्द किए जाएं, क्योंकि यह नियमों का साफ़ उल्लंघन है।
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चुनाव आयोग की अनदेखी

कांग्रेस के विरोध और सबूतों के बावजूद उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग ने अपने ही नियमों का पालन करने से इनकार कर दिया। आयोग ने उन उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी, जिनके नाम दो या अधिक मतदाता सूचियों में शामिल थे। इस फैसले ने न केवल नियमों की अवहेलना की, बल्कि लोकतंत्र की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए।

हाई कोर्ट के निर्देश की भी अनदेखी

कांग्रेस और अन्य याचिकाकर्ताओं ने इस मामले को उत्तराखंड हाई कोर्ट में उठाया। हाई कोर्ट ने साफ़ निर्देश दिए कि उत्तराखंड पंचायती राज एक्ट 2016 की धारा 9(6) और 9(7) के तहत ऐसे उम्मीदवारों के नामांकन रद्द किए जाएं, जिनके नाम एक से अधिक मतदाता सूचियों में हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक व्यक्ति का नाम केवल एक मतदाता सूची में होना चाहिए और दोहरे मतदाता होने की स्थिति में नामांकन अवैध माना जाएगा।

हाई कोर्ट के इन निर्देशों के बावजूद चुनाव आयोग ने बीजेपी के उन उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने दिया, जिनके नाम दो मतदाता सूचियों में थे। इस अवहेलना ने न केवल हाई कोर्ट के अधिकार को चुनौती दी, बल्कि पंचायत चुनावों की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े किए।

सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख

हाई कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग के रवैये पर कड़ा रुख अपनाते हुए दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि आयोग ने न केवल हाई कोर्ट के आदेशों की अवमानना की, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को 'वोट चोरी' का एक गंभीर उदाहरण माना और आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।

कांग्रेस का 'वोट चोरी' का आरोप

कांग्रेस ने इस पूरे प्रकरण को 'वोट चोरी' का संगठित षड्यंत्र करार दिया है। कांग्रेस नेता कुमारी सैलजा ने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा, 'बीजेपी की वोट चोरी देशभर में उजागर हो रही है। उत्तराखंड पंचायत चुनाव में दोहरी वोटर लिस्ट वाले बीजेपी प्रत्याशियों को बचाने के लिए हाई कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग पर ₹2 लाख का जुर्माना लगाया है। सोचिए, जब पंचायत चुनाव तक बीजेपी बिना वोट चोरी के नहीं लड़ पाती तो विधानसभा और लोकसभा चुनावों में ये किस स्तर तक लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करते होंगे।'
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने कहा, 'बीजेपी ने पहले म्युनिसिपल चुनावों में फर्जी वोटिंग के लिए अपने समर्थकों को शहरी मतदाता सूचियों में स्थानांतरित किया। अब पंचायत चुनावों में लाभ लेने के लिए उन्होंने दोहरी मतदाता सूची बनाई। यह लोकतंत्र पर हमला है।' माहरा ने यह भी बताया कि उनकी पार्टी ने इस मामले को पकड़ लिया और आयोग को बार-बार पत्र लिखकर नियमों का पालन करने की मांग की, लेकिन आयोग ने बीजेपी के दबाव में काम किया।

गुरदीप सिंह सप्पल ने कहा है कि 'आज सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग पर ही पेनल्टी लगा दी है। वोट चोरी की इस दास्तान पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपनी मुहर लगा दी है।'
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इस फ़ैसले के बाद कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की जीत बताया है। करण माहरा ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी और चुनाव आयोग की मिलीभगत को बेनकाब कर दिया है। हम 2027 के विधानसभा चुनावों में इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाएंगे और दो-तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाएंगे।'

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की ज़रूरत को भी रेखांकित करता है। 'वोट चोरी' के इस मामले ने बीजेपी और चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि आयोग इस फ़ैसले के बाद क्या कदम उठाता है और क्या पंचायत चुनावों में पारदर्शिता बहाल हो पाती है।